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Kanjivaram Saree: भारत के सबसे समृद्ध और प्राचीन हथकरघा पारंपरिक वस्त्रों में से एक है कांजीवरम साड़ी। इसकी कला और परंपरा सातवीं शताब्दी के पल्लव वंश से जुड़ी हुई है। कांजीवरम की विशेषता इसकी हाथ से बुनी हुई सिल्क साड़ियाँ हैं, जिनमें सोने और चांदी के जरी का समृद्ध उपयोग होता है। कांजीवरम का इतिहास न केवल कला का, बल्कि हिंदू मिथक और संस्कृति का भी हिस्सा है।
Kanjivaram Saree: सातवीं सदी की प्राचीन हस्तकला जो आज भी स्लो फैशन की पहचान है
कांजीवरम की पौराणिक कथा
कहा जाता है कि ऋषि मार्कण्डेय ने कांजीपुरम के जंगलों में एक दिन देवी पार्वती को रेशमी साड़ी बुनते देखा। उनकी बुनाई की जटिलता और सुंदरता देखकर उन्होंने यह कला सीखने का आग्रह किया। वर्षों की मेहनत के बाद, ऋषि मार्कण्डेय सिल्क बुनाई के मास्टर बन गए और देवताओं के लिए उत्कृष्ट वस्त्र तैयार करने लगे। यही कारण है कि कांजीवरम साड़ियों पर अक्सर मंदिर, देवताओं के चित्र और पवित्र प्रतीकों की डिजाइन देखने को मिलती है।
कांजीवरम साड़ी की खासियत: मंदिर की बॉर्डर डिज़ाइन
कांजीवरम साड़ियों की सबसे खास पहचान है उनका 'मंदिर बॉर्डर' जो दक्षिण भारतीय मंदिरों के गोपुरम की नक्काशी की तरह दिखता है। यह डिज़ाइन सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व से भरपूर है और इसे पहनने वाली महिलाओं के लिए गौरव का विषय है।
आज के दौर में कांजीवरम का महत्व
दक्षिण भारत की हर महिला के लिए कांजीवरम साड़ी विरासत और पारंपरिक सुंदरता का प्रतीक है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी स्नेहपूर्वक संजोई जाती है। हाल ही में, कर्नाटक की अभिनेत्री और सोशल मीडिया स्टार दिशा मदान ने कान्स फिल्म फेस्टिवल में 70 वर्ष पुरानी कांजीवरम साड़ी को आधुनिक कॉकटेल गाउन के रूप में पहनकर नया आयाम दिया।
उन्होंने बताया कि इस साड़ी को बनवाने में लगभग 240 घंटे का काम लगा है और इसे एकदम सही तरीके से संरक्षित किया गया है। दिशा ने कहा, "यह केवल एक आउटफिट नहीं, बल्कि हमारे शिल्पकारों और मेरी मां के लिए सम्मान है। इस ग्लोबल मंच पर अपनी संस्कृति को प्रदर्शित करने की जिम्मेदारी मेरे लिए गर्व की बात है।"
कांजीवरम: सदाबहार फैशन
चाहे पुरानी पारंपरिक साड़ियाँ हों या आधुनिक डिजाइन, कांजीवरम साड़ी भारत की विरासत का प्रतीक बनी हुई है। यह शादी, त्योहार और खास अवसरों पर पहनी जाती है और इसे सौभाग्य और समृद्धि का संदेश माना जाता है। कंटेंट क्रिएटर श्रीमयी रेड्डी कहती हैं, "दक्षिण भारतीय महिलाओं के लिए कांजीवरम साड़ी परंपरा का प्रतीक है, जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी संभाल कर रखा जाता है। इसकी टिकाऊपन और सोने-चांदी के जरी के कारण यह हमेशा फैशन में रहती है।"
आधुनिक युग में कांजीवरम का स्वरूप
कोस्की ब्रांड के को-फाउंडर हारून राशिद के अनुसार, कांजीवरम साड़ी की खासियत इसकी टिकाऊ बनावट और पारंपरिक रंग-डिजाइन हैं। हालांकि आज के जमाने में हल्की सिल्क, नए रंग, ज्यामितीय डिज़ाइन और डिजिटल प्रिंट के साथ कांजीवरम को नई पहचान मिल रही है। फिर भी इसकी शान और पारंपरिक आकर्षण कभी फीका नहीं पड़ता।
स्लो फैशन की मिसाल: कांजीवरम के बुनकर
आज के तेजी से बदलते फैशन के दौर में जहां पावरलूम सिल्क की मांग बढ़ रही है, कांजीवरम की हस्तशिल्प परंपरा धीरे-धीरे कम होती जा रही है। हर एक हाथ से बुनी कांजीवरम साड़ी को तैयार करने में लगभग 15-20 दिन लगते हैं, जो मशीन द्वारा बनाए गए डिजाइनों से काफी अधिक समय है।
फिर भी, हाथ से बुनी कांजीवरम साड़ी का अनुभव, उसका वजन और उसकी चमक मशीन से बनी सिल्क में नहीं मिलती। यही वजह है कि इसे खास अवसरों पर पसंद किया जाता है। यह पारंपरिक वस्त्र न केवल शिल्पकारों की मेहनत और कौशल का प्रतीक है, बल्कि यह स्थिरता, संस्कृति और धीमी फैशन का प्रतिनिधित्व भी करता है।
कांजीवरम साड़ी न केवल भारतीय हस्तशिल्प का गौरव है, बल्कि यह पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही सांस्कृतिक विरासत की जिंदा कहानी भी है। इसकी बुनाई में छिपा प्रेम, धैर्य और परंपरा हमें हमारी जड़ों से जोड़ती है। जैसे-जैसे दुनिया तेजी से बदल रही है, कांजीवरम का slow fashion हमें सिखाता है कि गुणवत्ता, परंपरा और प्रकृति के साथ जुड़ाव ही असली सुंदरता है।