Heggodu: एक कर्नाटक का गाँव जहाँ किसान शेक्सपियर के जानकार हैं

हैग्गोडु, कर्नाटक का गाँव जहाँ किसान शेक्सपियर पढ़ते हैं और रंगमंच जीते हैं। यहाँ कला, साहित्य और संस्कृति का अनोखा संगम है, जो ग्रामीण जीवन को समृद्ध बनाता है।

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Vaishali Garg
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Photograph: (Instagram/Alia Bhatt)

कर्नाटक के हृदयस्थल में स्थित शिमोगा जिले का हॆग्गोडु गाँव पहली नजर में किसी साधारण ग्रामीण इलाक़े जैसा लगता है। मिट्टी के रास्ते, खेतों की हरियाली और शांति से भरी जिंदगी यहाँ की खासियत है। लेकिन इस पारंपरिक गाँव के भीतर छुपा है एक अनूठा कलात्मक क्रांतिकारी विचार, जो इस गाँव को बाकी गांवों से बिल्कुल अलग बनाता है।

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Heggodu: एक कर्नाटक का गाँव जहाँ किसान शेक्सपियर के जानकार हैं

गाँव जो सिनेमा और रंगमंच का गढ़ है

हॆग्गोडु सिर्फ एक सामान्य गाँव नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक क्रांति है। जहाँ अधिकतर गाँव आधुनिकता के दबाव या तकनीक के कारण अपनी पुरानी संस्कृति छोड़ रहे हैं, वहीं हॆग्गोडु ने साहित्य, नाटक और संवाद को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बना लिया है। यहाँ नाटक सिर्फ शहरी या शिक्षित लोगों तक सीमित नहीं है, बल्कि किसान, दर्जी और बच्चे भी इस कला के समर्थक हैं।

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हॆग्गोडु का रंगमंच: निनासम

इस क्रांति की शुरुआत 1949 में के.वी. सुब्बन्ना ने की, जो इसी गाँव के रहने वाले थे। उन्होंने नाटक और साहित्य को गाँव की सांस लेने जैसा बना दिया। उनके प्रयासों से स्थापित हुआ निनासम (नीलकंठेश्वर नाट्यसेवा संघ) एक ऐसा मंच जिसने हजारों छात्रों को अभिनय, आलोचना और साहित्य की शिक्षा दी। निनासम ने पूरे गाँव में सीखने और विचार-विमर्श की संस्कृति स्थापित की।

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खेतों में शेक्सपियर

हॆग्गोडु में खेतों में काम करने वाले किसान भी शेक्सपियर की कहानियाँ पढ़ते और समझते हैं। कोई किसान ‘मैकबेथ’ के महत्वाकांक्षा पर चर्चा करता है, तो दर्जी ‘एंटिगोन’ के अनुवाद पर बहस करता है। स्कूल के बच्चे ब्रेख्ट के संवाद याद रखते हैं। यहाँ विश्व साहित्य को कन्नड़ में अनूदित करके सबके लिए आसान बनाया गया है।

अक्षर प्रकाशना: साहित्य का घर

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हॆग्गोडु में अक्षर प्रकाशना नामक एक कन्नड़ प्रकाशन संस्था भी है, जो दार्शनिक, नाट्य और आलोचनात्मक साहित्य प्रकाशित करती है। यह संस्था स्थानीय और वैश्विक साहित्य को गाँव तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभाती है। अंग्रेज़ी साहित्य को यहाँ अस्वीकार नहीं किया जाता, बल्कि कन्नड़ में अनूदित करके उसे अपनाया जाता है।

हॆग्गोडु: एक विचारों का स्कूल

इस गाँव की सबसे बड़ी ताकत है उसकी सोच। हॆग्गोडु संस्कृति के लिए किसी बाहरी मदद का इंतजार नहीं करता, बल्कि स्वयं उसे पैदा करता और संजोता है। यहाँ ग्रामीण होने पर कोई शर्म नहीं, बल्कि इस बात पर गर्व है कि यह गाँव पढ़ता है, देखता है, प्रस्तुत करता है और आलोचना करता है। यहाँ का हर शान्त पल भी कविता या नाटक के अगले दृश्य पर सोचने का अवसर है।

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हॆग्गोडु से हम क्या सीख सकते हैं?

आज के व्यस्त शहरों में जहां शोर और व्यस्तता है, हॆग्गोडु हमें सिखाता है कि शांति में भी विचार, कला और संवाद फल-फूल सकते हैं। यह साबित करता है कि शिक्षा सिर्फ डिग्रियों या संस्थानों तक सीमित नहीं होती। एक गाँव भी विश्वविद्यालय बन सकता है यदि उसके लोग जिज्ञासु, खुले विचारों वाले और एक-दूसरे की रचनात्मकता को पोषित करने वाले हों।

हॆग्गोडु पूर्ण नहीं है, इसे भी ग्रामीण समुदायों जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन यह एक मिसाल है कि कैसे सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता के माध्यम से कला को जीवन का हिस्सा बनाया जा सकता है।

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