Know the importance of these things on Karva Chauth: करवाचौथ महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है, खासकर उत्तर भारत में। यह दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए निर्जला उपवास रखती हैं। करवाचौथ का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व तो है ही, इसके साथ कुछ विशेष वस्तुएं और रिवाज भी इस पर्व के प्रमुख अंग होते हैं। इन वस्तुओं और रिवाजों का न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। आइए जानें करवाचौथ पर इस्तेमाल होने वाली कुछ महत्वपूर्ण चीजों का क्या महत्व है।
जानें करवाचौथ पर इन चीजों का महत्व
1. करवा (मिट्टी का पात्र)
करवाचौथ के नाम में ही 'करवा' का उल्लेख होता है, जो इस त्योहार का एक प्रमुख प्रतीक है। करवा एक मिट्टी का छोटा बर्तन होता है जिसका इस्तेमाल पूजा के दौरान किया जाता है। इसमें पानी भरकर भगवान शिव और पार्वती की पूजा की जाती है और इसे चांद को अर्घ्य देने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। करवा समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता है और इसके माध्यम से महिलाएं अपने परिवार की भलाई की कामना करती हैं।
2. चांद और चांद की पूजा
करवाचौथ का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा चांद की पूजा है। पूरे दिन निर्जला व्रत रखने के बाद, महिलाएं रात को चांद के दर्शन कर उसे अर्घ्य देती हैं और फिर अपने पति का चेहरा देखकर व्रत तोड़ती हैं। चांद को जीवन, सुख और शांति का प्रतीक माना जाता है और उसकी पूजा करने से पति की लंबी उम्र की प्रार्थना की जाती है।
3. सोलह श्रृंगार
करवाचौथ के दिन विवाहित महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं। सोलह श्रृंगार में बिंदी, सिंदूर, काजल, चूड़ियाँ, बिछुआ, कर्णफूल, मांग टीका और अन्य आभूषण शामिल होते हैं। यह श्रृंगार सुहागन महिलाओं की सुंदरता और उनके पति के प्रति प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। यह रिवाज उस पवित्र बंधन को और मजबूत करता है जो पति-पत्नी के बीच होता है।
4. थाली सजाना
करवाचौथ पर पूजा की थाली का विशेष महत्व होता है। इस थाली में दीया, चंदन, फल, मिठाई और अन्य पूजन सामग्री होती है। महिलाएं इस थाली को सजाकर भगवान शिव, पार्वती और गणेश की पूजा करती हैं। इसके अलावा, इसी थाली से चांद को अर्घ्य दिया जाता है और फिर पति की आरती उतारी जाती है। पूजा की थाली का महत्व इसलिए है क्योंकि यह त्योहार की पवित्रता और समर्पण को दर्शाती है।
5. सीवे की मिठाई (सरगी)
सरगी वह विशेष भोजन है जो महिलाएं सुबह सूर्योदय से पहले अपनी सास से प्राप्त करती हैं और इसे खाकर व्रत की शुरुआत करती हैं। सरगी में फल, मिठाई और अन्य पौष्टिक खाद्य पदार्थ होते हैं जो उन्हें दिन भर उपवास के लिए ऊर्जा प्रदान करते हैं। यह न केवल शारीरिक रूप से व्रत के लिए तैयारी का प्रतीक है, बल्कि सास और बहू के रिश्ते की गहराई और परस्पर सम्मान को भी दर्शाता है।