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Maternity Leave Laws: भारत में मैटरनिटी लीव से सम्बंधित लॉज़

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Swati Bundela
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कई बार ऐसा होता है कि निजी सेक्टरों में काम करने वाली महिलाएं जिन्हें अपने अधिकारों के बारे में जानकारी नहीं है, वो गर्भावस्था में अक्सर शोषण की शिकार होती हैं। ऐसे में महिलाओं को अपने हक़ और कानून के बारें में पता होना आवश्यक है।

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Maternity Leave Laws: मैटरनिटी लीव से सम्बन्धित कानून - 

*विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार नवजात को अगले 6 महीने तक मां का दूध अनिवार्य होता है, जिससे शिशु मृत्यु दर में गिरावट हो। इसके लिए महिला कर्मचारी को छुट्टी दी जाती है।

*मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 के तहत पहले 24 हफ्तों की छुट्टी दी जाती थी, लेकिन अब इसे बढ़ाकर 26 हफ्तों में तब्दील कर दिया गया है।

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*यह कानून सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं पर लागू होता है, जहां 10 या उससे अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं।

*महिला चाहे तो डिलीवरी के 8 हफ्ते पहले से ही छुट्टी ले सकती है। पहले और दूसरे बच्चे के लिए 26 हफ्ते की मैटरनिटी लीव का प्रावधान है।

*अगर कोई संस्था या कंपनी इस कानून का पालन नहीं कर रही है, तब कंपनी के मालिक को सजा का प्रावधान भी है। गर्भवती महिला को छुट्टी न देने पर 5000 रुपए का ज़ुर्माना लग सकता है।

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*अगर किसी भी संस्था द्वारा गर्भावस्था के दौरान महिला को मेडिकल लाभ नहीं दिया जाता है तब 20000 रुपए का ज़ुर्माना लग सकता है।
*किसी महिला को छुट्टी के दौरान काम से निकाल देने पर 3 महीने जेल का भी प्रावधान है।

*इसके अलावा पत्नी और नवजात बच्चे के लिए पिता भी पेड लीव ले सकते हैं। पितृत्व अवकाश 15 दिनों का होता है। जिसका फायदा पुरुष पूरी नौकरी के दौरान दो बार ले सकता है।

*विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार नवजात को अगले 6 महीने तक मां का दूध अनिवार्य होता है, जिससे शिशु मृत्यु दर में गिरावट हो। इसके लिए महिला कर्मचारी को छुट्टी दी जाती है। इस दौरान महिला कर्मचारियों को पूरी सैलरी दी जाती है।

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