Bollywood Films On Abortion: एबॉर्शन आज भी सेंसिटिव टॉपिक है एक तरफ इसे वोमेन चॉइस की तरह देखा जाता है तो दूसरी तरफ इसे पति और पत्नी का जॉइंट फैसला समझा गया है। "बच्चे पर जितना हक़ माँ का है पिता का भी होना चाहिए" इसके कारण पिता का भी एबॉर्शन पर ओपिनियन इम्पोर्टेन्ट समझा जाता है। हलाकि इस पर कानून बने हुए है पर फिर भी यह डिबेटबल टॉपिक है और डिबेट में बॉलीवुड अपनी इमेजिनरी स्टोरी और वन साइडेड ओपिनियन पेश करता नज़र आया है जिसके कारण एबॉर्शन को नेगटिवेली देखा जा रहा है। आईए जानते है ऐसी ही कुछ एबॉर्शन पर बेस्ड फिल्में जिन्होंने एबॉर्शन का मतलब ही कुछ अलग और गलत लोगों को प्रस्तुत किया है।
1. राज़ी
2018 में आई वुमन स्पाई थ्रिलर फिल्म ब्लॉकबस्टर हिट रही पर जब इसमें एबॉर्शन कराने की बात आई तो वह आखरी डयलॉग थोड़ी कंट्रोवर्सी क्रिएट करते है। अलिया यानि सहमत अली खान के किरदार का आखरी डयलॉग- "मुझसे एक और क़त्ल नहीं होगा"। इन स्ट्रांग वर्ड्स ने लीगल एबॉर्शन को क्राइम दिखा दिया जो गलत था और नेगेटिव इम्पैक्ट क्रिएट करता है।
2. ज़हर
2005 की शमिता शेट्टी व इमरान हाशमी स्टार्रर फिल्म में जब शमिता ने कहा- किल्ड माय चाइल्ड बिकॉज़ ऑफ़ यू। सिद्धार्थ यानि इमरान का किरदार पोस्सेसिव व एग्रेसिव इंडियन मेल को दर्शाता है जिसके लिए पत्नी को काबू करने का रास्ता उसे प्रेग्नेंट करके है और सोनिया यानि शमिता का एबॉर्शन की खुद की चॉइस को किल्लिंग कहना गलत था।
3. ऐतराज़
इस फिल्म ने एक अम्बिशयस वुमन की एबॉर्शन की चॉइस पर सवाल उठाया है जब वह अपने करियर के लिए बच्चा अबो्र्ट करती है तो उसे बुरा व दुष्ट औरत करार दिया है। प्रियंका चोपड़ा का नेगेटिव किरदार काफी स्ट्रांग था पर उसमें एक औरत की एबॉर्शन की चॉइस पर सवाल उठाना, एबॉर्शन को किलिंग कहना गलत था।
4. तेरे संग
रोमांटिक, कोर्ट रूम, टीन प्रेगनेंसी पर बेस्ड यह फिल्म काफी सेंसिटिव थी और हमारे समाज की रियलिटी को कहीं ना कहीं भी प्रेजेंट करती है। एबॉर्शन लीगल होने के बाद भी औरत को असुरक्षित प्रोसीजर, जबरदस्ती से एबॉर्शन को दर्शाती फिल्म रेवोलुशरी है पर एक 15 साल की बच्ची का बच्चे की रिस्पांसिबिलिटी लेने को तैयार दिखाना अलग मोड़ देता है।
5. मिमी
यह कॉमेडी ड्रामा फिल्म जिसमें मिमी का किरदार कृति सेनन ने निभाया है। IVF के सेफ प्रोसीजर के साथ फॉरेन कपल मुंबई मिमी से बच्चा चाहते है पर चेकउप के दौरान बच्चे को डाउन सिंड्रोम होने का पता चलता है तो उसे एबॉर्शन कराने को कहते है। पर मिमी को बच्चे से अटैचमेंट हो जाती है और वह मना कर देती है। मिमी के इस फैसले की तारीफ करना और एबॉर्शन की गाइडलाइन्स का मिसइंटरप्रेटशन करती फिल्म का स्टेप सही नहीं था।