4 अप्रैल, आज डॉ बीआर अंबेडकर की जयंती (इस वर्ष 130 वीं) जो सभी दलितों के साथ पूरे भारत के लिए विशेष है क्योंकि वह भारतीय संविधान के पिता के रूप में भी जाने जाते है। उन्होंने दलितों के लिए सम्मान और समानता का जीवन सुनिश्चित करने के साथ स्वतंत्र भारत में महिलाओं के अधिकारों की शुरुआती नींव भी रखी।
BR Ambedkar Work For Women
सावित्रीबाई फुले जैसे अन्य दलित लीडर्स के साथ मिलकर नारीवाद को रूप दिया। वीमेन एजुकेशन, राइट तो वोट के साथ 1920 के दशक में विशेष तौर पर मैटरनिटी लीव को महत्व दिया। तब ऐसा समय था जब महिलाओं, विशेष रूप से मैनुअल मजदूरों को पोस्ट और प्री-मैटरनिटी लीव में अधिक काम किया जाता था। उन्होंने हिंदू विवाह एक्ट (1955) बनाते समय हिंदू कोड बिल में महिलाओं के तलाक लेने के अधिकार, गोद लेने, अपनी पसंद से शादी करने, संपत्ति पर समान अधिकार करने से लेकर फाइनेंसियल सिक्योरिटी सुनिश्चित करने के अधिकार को शामिल कर अहम भूमिका निभाई ।
देश के पहले कानून मंत्री बन महिला और अल्पसंख्यक के मताधिकार के लिए भी प्रयास किए, जिसका परिणाम आज महिलाओं को मतदान का अधिकार मिलना है। इन सब बातों से वह औरतों को समझने वाले, उनका सही मायने में साथ देने वाले साथ ही में उनके हक़ के लिए खड़े होने वाले फेमिनिस्ट होने का पता चलता है।
1947 में जब आंबेडकर साहब संविधान लिख रहे थे उस दौरान इनकी तबियत बहुत ख़राब हुआ करती थी। आंबेडकर साहब को शुगर और डायबिटीज दोनों की दिक्कत थी। इसके चलते इलाज के लिए इन्हें मुंबई ले जाया गया था। वहीँ यह पहली बार डॉक्टर शारदा कबीर से मिले थे और फिर करीब आ गए थे ।
इनका जन्म के बाद का नाम शारदा कबीर था और आंबेडकर से शादी के बाद ही इनका नाम सविता आंबेडकर रख दिया गया था। सविताबाई को माई और माईसाहेब कहकर बुलाया जाता था और यह BR आंबेडकर की दूसरी बीवी थी। यह पेशे से एक डॉक्टर थी और सामाजिक कार्यकर्ता भी थी। आंबेडकर ने एक किताब लिखी थी जिसका नाम है The Buddha and His Dhamma। इस किताब में इन्होंने उनके जीवन के 8 से 10 साल बढ़ाने का श्रेय सविता जी को दिया था।