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Marital Rape को अपराध नहीं मानती केंद्र सरकार, सुप्रीम कोर्ट में कहा- यह कानून से ज्यादा सामाजिक मुद्दा

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इसके लिए अन्य "उपयुक्त रूप से तैयार किए गए दंडात्मक उपाय" मौजूद हैं।

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Priya Singh
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Supreme Court(Punjab Kesari)

Centre Told Supreme Court There Is No Need To Criminalise Marital Rape: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इसके लिए अन्य "उपयुक्त रूप से तैयार किए गए दंडात्मक उपाय" मौजूद हैं। केंद्र ने कहा कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करना सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। केंद्र ने कहा कि वैवाहिक बलात्कार का मुद्दा कानूनी मुद्दे से ज़्यादा सामाजिक मुद्दा है, क्योंकि इसका समाज पर सीधा असर होगा।

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Marital Rape को अपराध नहीं मानती केंद्र सरकार, सुप्रीम कोर्ट में कहा- यह कानून से ज्यादा सामाजिक मुद्दा

केंद्र सरकार ने कल यानी कि गुरूवार को सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिला किया। इस हलफनामे में केंद्र सरकार ने वैवाहिक बालात्कार को अपराध घोषित किये जाने की मांग वाली याचिकाओं पर विरोध जाहिर किया गया है। केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा कि पति-पत्नी के बीच का रिश्ता सिर्फ शारीरिक संबंधों तक ही सीमित नहीं है। इससे और भी कई बातें जुड़ी होती हैं और यह कानूनी से कहीं अधिक एक सामाजिक मुद्दा है।

हालांकि केंद्र सरकार ने यह भी स्वीकार किया कि सिर्फ शादी से महिला की सहमति ख़त्म नहीं हो जाती है और किसी भी गलत प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप दंड की प्रक्रिया होनी चाहिए, लेकिन यह भी कहा कि विवाह के भीतर इस तरह के उल्लंघन के परिणाम विवाह के बाहर उल्लंघन से अलग होते हैं। संसद ने पहले ही विवाह के भीतर विवाहित महिला की सहमति की रक्षा के लिए उपाय प्रदान किए हैं। केंद्र ने कहा कि इन उपायों में विवाहित महिलाओं के साथ क्रूरता को दंडित करने वाले कानून शामिल हैं। घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 एक और कानून है जो विवाहित महिलाओं की मदद कर सकता है।

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पति-पत्नी के संबंधों पर गहरा असर 

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा कि यदि पुरुषों को अपनी पत्नी के साथ सम्बन्ध बनाने को एक दुष्कर्म करार दिया गया तो यह पति-पत्नी के बीच संबंधों पर गहरा असर डालेगा। इसलिए वैवाहिक बालात्कार को अपराध घोषित नहीं किया जाना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो संबंधों पर असर पड़ेगा। 

याचिकाओं का विरोध

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केंद्र सरकार ने उन याचिकाओं का विरोध किया है जिनमे यह कहा गया है कि क्या किसी पुरुष का अपनी पत्नी की इच्छा के विरुद्ध यौन सम्बन्ध स्थापित करना अपराध मुक्त होना चाहिए? सुप्रीम कोर्ट ऐसी कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है जो वैवाहिक बालात्कार को अपराध घोषित करने की मांग कर रहे हैं। 

कानून के अनुसार पत्नी की इच्छा के विरुद्ध यौन सम्बन्ध अपराध नहीं

केंद्र ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत अपवाद स्वरुप दिए गये क्लाज को हटाया गया है और उसके स्थान पर (बीएनएस) भारतीय न्याय संहिता के तहत ऐसी पत्नी जो बालिग है के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करना कोई अपराध नहीं है। नए कानूनों की धारा 63 के तहत भी यही कहा गया है। 

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समाज पर पड़ेगा असर

केंद्र सरकार ने वैवाहिक बालात्कार से जड़ी याचिकाओं पर अपनी बात रखते हुए कहा कि यदि इन याचिकाओं पर फैसला आता है तो यह समाज पर गहरा असर डालेगा। कहा गया कि यदि इन याचिकाओं का परिणाम आता है तो भारत में विवाह की अवधारणा प्रभावित होगी साथ ही यह सिर्फ पति पत्नी के संबंधों को प्रभावित न करके परिवार और समाज पर भी असर डालेगा। इसलिए इस मामले पर सभी मुद्दों को ध्यान में रखकर विचार किया जाना चाहिए ना कि सिर्फ कानून को ध्यान में रखकर।

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