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गुजराती व्यापारी दंपत्ति ने 200 करोड़ दान कर संन्यास लिया

गुजरात के एक व्यापारी और उनकी पत्नी ने जैन मुनि बनने से पहले अपना पूरा 200 करोड़ रुपये का दान कर दिया। उनकी कहानी, जैन धर्म में संयम के मार्ग और जैन धर्म में दीक्षा के महत्व को जानें।

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Vaishali Garg
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Gujarati Business Couple Donates ₹200 Crore Wealth to Become Monks

Gujarati Business Couple Donates ₹200 Crore Wealth to Become Monks : गुजरात में एक धनाढ व्यापारी दंपत्ति ने भौतिक सुखों को त्याग कर संन्यास लेने का अनोखा फैसला किया है। भावेश भंडारी और उनकी पत्नी ने फरवरी महीने में दीक्षा लेने के लिए पूरे 200 करोड़ रुपये दान कर दिए। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो में उन्हें रथ पर सवार होकर धन की वर्षा करते हुए देखा जा सकता है।

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गुजराती व्यापारी दंपत्ति ने 200 करोड़ दान कर संन्यास लिया

कौन हैं भावेश भंडारी?

भावेश भंडारी गुजरात के जाने-माने व्यापारी हैं, जो निर्माण क्षेत्र से जुड़े थे। वे अपनी पत्नी के साथ संन्यासी बनने और अपना सारा धन दान करने के फैसले के लिए चर्चा में हैं। यह दंपत्ति हिम्मतनगर का रहने वाला है और जैन समुदाय को भारी दान देने के लिए भी सम्मानित है।

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बच्चों के नक्शेकदम पर चलते हुए संन्यास

निर्माण क्षेत्र से जुड़े हिम्मतनगर के व्यापारी भावेश भंडारी ने 2022 में अपने 19 वर्षीय बेटी और 16 वर्षीय बेटे के नक्शे कदमों पर चलते हुए संन्यासी बनने का फैसला किया। समुदाय के सदस्यों का कहना है कि भावेश और उनकी पत्नी को उनके बच्चों द्वारा "भौतिक मोह त्यागने और वैराग्य के मार्ग पर चलने" की प्रेरणा मिली।

सभी दैनिक उपयोग की वस्तुओं का दान

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भावेश भंडारी दंपत्ति ने 35 अन्य लोगों के साथ निकाली गई चार किलोमीटर लंबी शोभायात्रा में अपने सभी सामान, जिनमें एयर कंडीशनर और मोबाइल फोन भी शामिल थे, दान कर दिए। जुलूस के वीडियो में दंपत्ति को रथ पर शाही पोशाक पहने हुए देखा जा सकता है।

जैन धर्म में दीक्षा का महत्व

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जैन धर्म में दीक्षा लेना एक महत्वपूर्ण प्रतिबद्धता है, जहां व्यक्ति भौतिक सुखों और पारिवारिक संबंधों के बिना जीवन व्यतीत करता है। दीक्षा लेने के बाद व्यक्ति का लक्ष्य अपने पिछले जन्मों में किए गए सभी पापों (कर्मों) को खत्म करना होता है और उसके बाद ही मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त की जा सकती है।

एक कठिन पर सार्थक रास्ता

एक कहावत है कि - "दीक्षा मोम के दांतों से धातु की चने खाने के समान है।" हर कोई जीवन भर इतनी कठोर जीवनशैली का पालन करने में सक्षम नहीं होता है। लेकिन भावेश भंडारी और उनकी पत्नी का यह कदम निश्चित रूप से त्याग और आध्यात्मिकता की एक प्रेरक कहानी है।

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