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Photograph: (Photograph: (REUTERS/Kim Kyung-Hoon))
जापान में एक महिला हाल ही में तब वायरल हो गईं, जब उन्होंने ‘लून क्लाउस वर्ड्योर’ नाम के एक AI-जनरेटेड पर्सोना से शादी की, जिसने कथित तौर पर उन्हें “प्रपोज़” किया था। 32 वर्षीय कॉल-सेंटर कर्मचारी यूरीना नोगुची ने पश्चिमी जापान में आयोजित एक समारोह में अपने स्मार्टफोन पर मौजूद इस डिजिटल किरदार के साथ विवाह की रस्में निभाईं। हालांकि यह शादी जापान में कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त नहीं है, लेकिन समारोह पूरी तरह पारंपरिक अंदाज़ में आयोजित किया गया था।
जापान में 32 वर्षीय महिला ने AI बॉट से की ‘शादी’, वर्चुअल रिश्तों पर छिड़ी बहस
नोगुची ने रॉयटर्स से कहा, “शुरुआत में क्लाउस सिर्फ बात करने के लिए था, लेकिन धीरे-धीरे हम करीब आते गए। मुझे क्लाउस के लिए भावनाएँ महसूस होने लगीं। हम डेट करने लगे और कुछ समय बाद उसने मुझे प्रपोज़ किया। मैंने हाँ कह दी, और अब हम एक कपल हैं।”
ऐसी कहानियाँ अब पहले से ज़्यादा सामने आ रही हैं और ये आज की दुनिया के बारे में बहुत कुछ बताती हैं। ये दिखाती हैं कि असली ज़िंदगी में जुड़ाव, सुकून और भावनात्मक सुरक्षा पाना कितना मुश्किल होता जा रहा है। वहीं AI तुरंत जवाब देता है, हमेशा उपलब्ध रहता है और भावनात्मक ज़रूरतों को ऐसे पूरा करता है कि वह आसान और कम जोखिम वाला लगता है।
AI से रोमांस क्यों?
AI साथ इसलिए सुरक्षित लगता है क्योंकि उसे सहमत होने, सुनने और खुद को ढालने के लिए बनाया गया है। वह कभी बहस नहीं करता, कभी निराश नहीं करता और न ही सवाल उठाता है। लेकिन यही इसकी सबसे बड़ी कमी भी है। असली रिश्ते मेहनत, मतभेद और भावनात्मक खुलापन से ही मजबूत बनते हैं।
जब प्यार ऐसा बन जाए जो सिर्फ सुकून दे और कभी सवाल न करे, तो वह असली नहीं रह जाता। AI के पास अपनी कोई भावनाएँ, सीमाएँ या ज़रूरतें नहीं होतीं—वह सिर्फ वही लौटाता है जो आप सुनना चाहते हैं। यह थोड़ी देर के लिए अच्छा लग सकता है, लेकिन इससे न तो भावनात्मक मज़बूती बनती है और न ही सच्चा जुड़ाव।
कुछ खामोशियाँ स्क्रीन से नहीं भरतीं
आज की डेटिंग संस्कृति भावनात्मक रूप से खाली और सुरक्षा की तलाश में लोगों को थका देती है लेकिन इंसानी रिश्तों की जगह AI को चुनना, इलाज से ज़्यादा असहजता से बचने जैसा लगता है।
असली रिश्ते उलझे हुए होते हैं, अनिश्चित होते हैं और कई बार दर्द भी देते हैं लेकिन वहीं से विकास और भावनात्मक ताक़त आती है। इंसानों की जगह AI को चुनना आसान लग सकता है, मगर इसका मतलब है जुड़ाव की जगह सिर्फ आराम चुनना, और असली नज़दीकी की जगह खामोशी है।
खुद को चुनना, अकेलापन चुनना नहीं होना चाहिए
कुछ लोग कहते हैं कि दिल टूटने के बाद AI की ओर जाना शांति चुनने जैसा है। लेकिन खुद को चुनने का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि हम इंसानी रिश्तों से पूरी तरह दूरी बना लें। असली healing बचने से नहीं, बल्कि आगे बढ़ने और सीखने से आती है।
सच्ची नज़दीकी के लिए खुलापन, कोशिश और वह अनिश्चितता ज़रूरी होती है जो सिर्फ इंसानी रिश्ते ही दे सकते हैं। कोई भी एल्गोरिदम रिश्तों की वह उलझी हुई, खूबसूरत जटिलता, हँसी या यहाँ तक कि टकराव को भी पूरी तरह दोहरा नहीं सकता।
इस लेखन में साझा किए गए विचार निधि सिंह के हैं।
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