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Photograph: (Live Law/X)
Justice Nagarathna Advocates for 30% Female Representation Among Govt Lawyers: सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बी.वी. नागरत्ना का बयान आया है जहां पर उन्होंने कहा कि सरकारी लाॅ अधिकारियों में महिलाओं की संख्या कम से कम 30% तो जरूर होनी चाहिए। इस तरह उन्होंने लॉ के क्षेत्र में महिलाओं की संख्या के उपर अपनी चिंता व्यक्त की और साथ ही लैंगिक विविधता पर जोर दिया। चलिए पूरी खबर जानते हैं-
"If male advocates can be appointed even though they are less than 45 years to HCs, then why not competent women advocates?" she asked.
— Live Law (@LiveLawIndia) March 17, 2025
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Justice BV Nagarathna का बयान: "सरकारी लॉ अधिकारियों में कम से कम 30% महिलाएं होनी चाहिए"
शनिवार को मुंबई यूनिवर्सिटी और भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (Indian Council of Social Science Research)द्वारा "ब्रेकिंग द ग्लास सीलिंग: वूमेन हू मेड इट" विषय पर सेमिनार आयोजित किया गया। यह भारत की पहली महिला वकील कॉर्नेलिया सोराबजी के प्रैक्टिस शुरू करने के 100 साल पूरे होने की खुशी में था।
30% प्रतिनिधित्व
इस विषय पर बात करते हुए जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने कहा, केंद्र या राज्य सरकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले सरकारी लीगल अधिकारियों और सभी लीगल सलाहकारों में महिलाओं संख्या कम से कम 30% जरूर होनी चाहिए। आगे उन्होंने कहा कि इसी तरह सभी राज्य संस्थाओं और एजेंसियों में भी होना चाहिए।
महिलाओं को हाई कोर्ट में नियुक्ति
जस्टिस बीवी ने इस सेमिनार में न्यायपालिका में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, हाई कोर्ट में सक्षम महिला वकीलों की प्रमोशन से बेंच में अधिक विविधता लाने के लिए एक जरूरी समाधान हो सकता है। उन्होंने यह भी सवाल खड़ा किया कि अगर 45 साल से कम उम्र होने के बावजूद पुरुष वकीलों को हाई कोर्ट में अप्वॉइंट किया जा सकता है तो सक्षम महिला अधिवक्ताओं को क्यों नहीं?
शिक्षा और वर्कफोर्स में महिलाओं की भागीदारी जरूरी
जस्टिस बी.वी. ने महिलाओं की शिक्षा और वर्कफोर्स में उनकी भागीदारी बहुत अहम है। उन्होंने कहा कि एक लड़की के शिक्षा के अधिकार के साथ उसे बड़े सपने देखने, अपने जुनून को आगे बढ़ाने और अपनी पूरी क्षमता हासिल करने का भी हक मिलता है। उन्होंने कहा, इसके बावजूद कि लड़की का बैकग्राउंड या सामाजिक आर्थिक स्थिति क्या है, हर एक लड़की को क्वालिटी एजुकेशन मिलनी चाहिए।
रूढ़िवादी सोच और स्टीरियोटाइप को खत्म करने की जरूरत
उन्होंने महिलाओं को पीछे खींचने वाली रूढ़िवादी सोच और स्टीरियोटाइप के बारे में बात की उन्होंने कहा कि समाज में इनकी जड़ बहुत गहरी है और इन्हें खत्म करना बहुत जरूरी है इसका समाधान बताते हुए उन्होंने कहा कि हमें अपनी सोच बदलनी होगी, लैंगिक समानता को बढ़ाना होगा और एक ऐसा समाज बनाना होगा जो सबको साथ ले चले और सबके साथ न्याय करे। इसके लिए हमें मेहनत करनी होगी।
समावेशिता के बारे में कहा, "लोग अक्सर सोचते हैं कि सबको शामिल करना मतलब योग्यता को भूल जाना है—यह गलत सोच है। समावेशिता का मतलब योग्यता को कम करना नहीं है, बल्कि पुरानी और गलत धारणाओं को तोड़ना है"।
संसद में महिलाओं की कमी
जस्टिस बीवी नगरत्न ने संसद में महिलाओं की कमी के ऊपर बात की उन्होंने कुछ आंकड़े पेश किए। 2024 तक भी लोकसभा में महिलाओं की सिर्फ 14% सीटें थीं, राज्यसभा में 15%, और मंत्रियों के पदों में 7% से भी कम महिलाएँ थीं। उन्होंने कहा, "हमें महिलाओं की प्रतिभा को पहचानना चाहिए और उन्हें अपनी काबिलियत दिखाने के लिए पर्याप्त मौके देने चाहिए"। उन्होंने यह भी कहा कि "हालाँकि, संसद ने महिलाओं के लिए 33% आरक्षण का कानून बनाया है, लेकिन अभी तक इसे लागू नहीं किया गया है"।
VIDEO | Speaking at Mumbai University earlier today, Supreme Court judge Justice BV Nagarathna says, "We must recognise talent in women and give them sufficient opportunities to demonstrate their talent. Although, the Parliament has enacted a law to give 33 pc reservation for… pic.twitter.com/9f2KTSf0ts
— Press Trust of India (@PTI_News) March 15, 2025
इस सेमिनार में उन्होंने महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों और उनकी भागीदारी के बारे में काफी अहम बातें कहीं हैं। इसके साथ ही उन्होंने ऐसी महिलाओं को हाईलाइट किया जिन्होंने बाधाओं को तोड़कर अपना अहम योगदान दिया जैसे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से सिविल लॉ में ग्रेजुएशन करने पहली महिला 'कॉर्नेलिया सोराबजी' की उपलब्धियो की चर्चा की। इसके साथ ही उन्होंने रेजिना गुहा, जस्टिस अन्ना चांडी और जस्टिस फातिमा बीवी के बारे में बात की।