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Live-In Relationship में महिला को भरण-पोषण का अधिकार: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का फैसला

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने शनिवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। अदालत ने माना कि अगर कोई महिला किसी पुरुष के साथ लंबे समय तक लिव-इन रिलेशनशिप में रही है, तो कानूनी शादी न होने के बावजूद अलग होने पर वह भरण-पोषण भत्ता पाने की हकदार है।

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Vaishali Garg
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Relationship Problem(freepik)

MP HC Grants Allowance To Woman in Live In Relationship After Split: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने शनिवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। अदालत ने माना कि अगर कोई महिला किसी पुरुष के साथ लंबे समय तक लिव-इन रिलेशनशिप में रही है, तो कानूनी शादी न होने के बावजूद अलग होने पर वह भरण-पोषण भत्ता पाने की हकदार है।

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लिव-इन रिलेशनशिप में महिला को भरण-पोषण का अधिकार: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का फैसला

यह फैसला उन महिलाओं के अधिकारों को मान्यता देने की दिशा में एक बड़ा कदम है जो लिव-इन रिलेशनशिप में रहती हैं। हाईकोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले में कहा गया है कि अगर कोई महिला किसी पुरुष के साथ लंबे समय तक लिव-इन रिलेशनशिप में रही है, तो कानूनी शादी न होने के बावजूद अलग होने पर वह अपने साथी से भरण-पोषण का दावा कर सकती है।

यह फैसला एक याचिकाकर्ता की चुनौती के जवाब में आया था। याचिकाकर्ता ने निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे अपनी लिव-इन पार्टनर को मासिक 1500 रुपये भरण-पोषण भत्ता देने का आदेश दिया गया था। गौरतलब है कि दोनों साथ रहते थे और उनका एक बच्चा भी था। हाईकोर्ट ने इस फैसले में यह भी स्पष्ट किया है कि अगर किसी कपल के बीच लंबे समय तक सह-अभिवास (cohabitation) साबित हो जाता है तो भले ही उनकी शादी न हो, उन्हें भरण-पोषण से वंचित नहीं रखा जा सकता।

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लिव-इन रिलेशनशिप में महिलाओं के अधिकार (Rights of Women in Live-in Relationships)

लिव-इन रिलेशनशिप की आज के समय में बढ़ती स्वीकृति को देखते हुए, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस जेएस अहलूवालिया ने एक प्रगतिशील फैसला सुनाया। उन्होंने उस व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी, जो निचली अदालत के आदेश को चुनौती दे रहा था। निचली अदालत ने उस व्यक्ति को उस महिला को मासिक भरण-पोषण देने का आदेश दिया था, जिसके साथ वह लंबे समय तक लिव-इन रिलेशनशिप में रहा था। गौरतलब है कि दोनों का एक बच्चा भी था।

अदालत ने माना कि लंबे समय तक चलने वाला लिव-इन रिलेशनशिप दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के प्रावधानों के तहत भरण-पोषण का दावा करने के लिए "विवाह के स्वरूप वाला संबंध" माना जा सकता है।

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अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसी साझेदारी में महिलाएं अलग होने के बाद वित्तीय सहायता की हकदार हैं, खासकर अगर उन्होंने लंबे समय तक सह-अभिवास के साथ रिश्ते में आर्थिक या घरेलू योगदान दिया हो। साथ ही, अदालत ने रिश्ते में बच्चे के जन्म को देखते हुए भी महिला को मासिक भत्ता पाने के हक को सही माना।

यह फैसला लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं के अधिकारों को मान्यता देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। भारत में लिव-इन रिलेशनशिप अब आम हो रही हैं। हालाँकि, भारतीय कानून के तहत लिव-इन रिलेशनशिप को औपचारिक रूप से विवाह के रूप में मान्यता नहीं दी गई है, लेकिन यह फैसला उन महिलाओं के लिए बहुत जरूरी वित्तीय सुरक्षा प्रदान करता है, जिन्होंने संभावित रूप से रिश्ते के लिए सालों लगा दिए होंगे और अपने कैरियर के अवसरों को छोड़ा हो या आर्थिक रूप से त्याग किया हो और साथ ही भावनात्मक रूप से भी जुड़ी हों।

यह फैसला कानूनी अधिकारों की बात करते हुए लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले व्यक्तियों के अधिकारों के बारे में एक महत्वपूर्ण चर्चा को जन्म देता है। इस फैसले के बारे में कई लोगों की राय है। कुछ सोशल मीडिया यूजर्स का मानना है कि भत्ता केवल तभी दिया जाना चाहिए जब दंपत्ति का कोई बच्चा हो। एक यूजर ने लिखा: "अगर उनका एक साथ बच्चा होता तो मैं समझ सकता था, लेकिन इसके अलावा कुछ भी अस्वीकार्य है।"

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वहीं कई अन्य लोगों ने सवाल किया कि "क्या महिलाएं खुद कमा नहीं सकतीं?" एक अन्य यूजर ने कमेंट किया: "महिलाएं अपना भरण-पोषण क्यों नहीं कर सकतीं? क्या वे बच्चे हैं?" इस कमेंट को अब तक 517 लाइक्स मिल चुके हैं।

यह फैसला अभी सिर्फ एक हाईकोर्ट का फैसला है और हो सकता है कि यह पूरे भारत में कानूनी मिसाल के रूप में स्वतः स्थापित न हो। आने वाले समय में इस फैसले के कानूनी निहितार्थों को देखना होगा।

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का यह फैसला लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है। यह फैसला महिलाओं को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करता है और रिश्तों में उनके योगदान को मान्यता देता है। हालांकि, इस फैसले के सामाजिक और कानूनी प्रभावों पर बहस जारी रहने की संभावना है।

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