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Namita Thapar Shared LinkedIn Post On "Adolescence" Series: हाल ही में नेटफ्लिक्स पर "एडोलिसेंस" सीरीज रिलीज हुई है जो चर्चाओं का विषय बनी हुई है। 7 अप्रैल, 2025 को "शार्क टैंक इंडिया" की जज और एमक्योर फार्मास्यूटिकल्स की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर नमिता थापर ने LinkedIn पर इस सीरीज से जुड़ा एक पोस्ट लिखा। इसमें उन्होंने नेटफ्लिक्स पर ब्रिटिश सीरीज "एडोलसेंस" को देखने के बाद पेरेंटिंग को लेकर अपने विचार शेयर किए हैं। चलिए पूरी खबर जानते हैं-
जानें Shark Tank की Namita Thapar ने Adolescence देखने के बाद पेरेंट्स को क्या सुझाव दिया?
नमिता थापर की LinkedIn पोस्ट से वर्क लाइफ बैलेंस और पेरेंटिंग को लेकर बातचीत छिड़ चुकी है। दरअसल उन्होंने एडोलिसेंस सीरीज देखने के बाद अपने विचार शेयर किए। उन्होंने बताया कि बच्चे बहुत नाजुक होते हैं और पेरेंट्स को अपना आइडल मान लेते हैं। थापर ने पोस्ट में बताया, "मैं दो किशोरों (19 और 14 साल के लड़के) की मां हूं, और इस शो ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया।"
माता-पिता की अपेक्षाओं का बोझ
थापर ने कहा कि जब बच्चे को लगता है कि वे अपने माता-पिता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते हैं, तो उनका आत्मविश्वास कम हो जाता है। उन्होंने लिखा, "अगर उन्हें लगता है कि वे माता-पिता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे और उनके माता-पिता उनसे "शर्मिंदा" हैं, तो उनके अंदर बहुत सारी नकारात्मकता जमा हो जाती है।"
उन्होंने आगे बताया कि "ये नकारात्मकता, दोस्तों के ताने-Bulling के साथ मिलकर, दो तरीके से फट सकती है। पहला बच्चा खुद पर गुस्सा निकाले, खुद से नफरत, कम आत्मसम्मान, और मानसिक परेशानियां और दूसरा बच्चा दूसरों पर गुस्सा निकाले।"
एडोलिसेंस के साथ जोड़ा
नमिता थापर ने सीरीज से उदाहरण पेश किया, "शो में, जेमी अपने पिता को बहुत मानता था। उसके पिता उसे फुटबॉल और बॉक्सिंग से "मजबूत" बनाना चाहते थे। जेमी दोनों में अच्छा नहीं था। उसे लगा कि उसके पिता उससे शर्मिंदा हैं और नजरें फेर लेते हैं। पिता ने कभी खुलकर बात नहीं की कि ऐसा नहीं था।"
अपना अनुभव साँझा किया
नमिता थापर ने पोस्ट में अपना भी अनुभव साझा किया। उन्होंने याद किया कि युवावस्था के दौरान उनके माता-पिता ने भी उन्हें गलत समझा था। उन्होंने लिखा, "मेरे मामले में, मेरी आवाज भारी थी, चेहरे पर बाल थे, मैं बहुत लड़कों जैसी थी, मुझे रस्में या नाखून पॉलिश, मेहंदी जैसी "लड़कियों वाली" चीजें पसंद नहीं थीं। मेरी मां चिंतित हुईं, मुझे गाना, कथक, और किताब सिर पर रखकर चलना सिखाया ताकि मैं "लड़की जैसी" बनूं। उनकी इरादा सही थी, लेकिन इसने मेरे मन पर निशान छोड़े। मेरे पिता को लगता था कि मेरा स्कूल अच्छा नहीं है, उन्होंने मुझे बेहतर स्कूल में डालने की कोशिश की, कामयाब नहीं हुए, और मुझे लगा कि वे मुझसे "शर्मिंदा" हैं। ऐसी कई बातें हैं, पर मैं बोर नहीं करूंगी। नतीजा - दो अच्छे माता-पिता, अच्छी नीयत, लेकिन उनके कदमों से मेरा आत्मसम्मान कम हुआ और मैं भावनात्मक तौर पर खत्म होती चली। मैं ठीक हुई, मजबूत बनी। पर हर कोई ऐसा नहीं कर पाता।
"The Self-Driven Child" किताब को इसका उपाय बताया
उन्होंने "The Self-Driven Child" किताब का हवाला देते हुए बताया कि है कि "माता-पिता को बच्चों को अपने फैसले खुद लेने देना चाहिए, उनकी अपनी राह चुनने देनी चाहिए।"
पेरेंट्स को उन्होंने सलाह दी कि "ये बताओ कि तुम उन पर गर्व करते हो और हमेशा उनके साथ हो। "मुझे तुम पर गर्व है" - ये सबसे जरूरी है।" इसके साथ ही Namita ने अपने आत्मविश्वास के ऊपर जोर दिया कि कैसे पेरेंट्स को अपने बच्चों के अंदर आत्मविश्वास पैदा करना चाहिए और अगर आत्मविश्वास की कमी दिखाई देती है तो ऐसे में प्रोफेशनल मदद लेने से भी पीछे नहीं हटना चाहिए
70-90 घंटे काम करने का असर
एडोलिसेंस सीरीज के हवाले से नमिता थापर ने लिखा, "जेमी मिलर के मामले में दुखद सच ये था कि उसे कमरे में बंद कर दिया गया, और उसके पिता 70-90 घंटे काम करने लगे। इन संकेतों को कोई नहीं देख पाया।"
पेरेंट्स के लिए बच्चों को समय देना जरूरी
उन्होंने लिखा, "अगर हम बच्चे को इस दुनिया में लाते हैं, तो हमें उन्हें वक्त देना होगा। काम और जिंदगी में संतुलन रखो ताकि इन संकेतों को जल्दी पकड़ा जा सके और ठीक किया जा सके। 70 घंटे के हफ्ते को ना कहो, या अगर ऐसी जिंदगी चाहिए तो माता-पिता बनने को ना कहो! मेरा पक्ष यही है... उम्मीद है कि 70-90 घंटे काम के समर्थक ये शो देखें।"