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Photograph: (PIB & ANI)
भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सबरीमाला मंदिर का दौरा कर इतिहास रच दिया। 2025 में यह पहली बार हुआ जब कोई महिला राष्ट्रपति इस मंदिर में पूजा-अर्चना करने पहुंचीं। सबरीमाला मंदिर भगवान अय्यप्पा को समर्पित है और अपने धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है। आमतौर पर यहाँ महिलाओं का जाना वर्जित है लेकिन राष्ट्रपति मुर्मू ने ये पहल कर बदलाव की ओर एक नई शुरुआत की है।
President Sabarimala Visit: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सबरीमाला मंदिर में पूजा कर रचा इतिहास, बनी पहली महिला राष्ट्रपति
मंदिर दर्शन और स्थानीय स्वागत
राष्ट्रपति मुर्मू का ये दौरा ना केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, बल्कि महिलाओं के लिए प्रेरणा का भी संकेत माना जा रहा है। मंदिर में उन्होंने भगवान अय्यप्पा के दर्शन किए और पूजा-अर्चना की। इस अवसर पर मंदिर प्रशासन और स्थानीय श्रद्धालुओं ने उनका स्वागत किया। राष्ट्रपति का यह कदम मंदिर में आस्था और शांति का संदेश भी लेकर आया। लोग उनके दर्शन और पूजा के तरीके को देखकर प्रेरित महसूस कर रहे थे।
महिलाओं के धार्मिक अधिकारों का प्रतीक
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर लंबे समय से चर्चा और बहस होती रही है। राष्ट्रपति मुर्मू का यह कदम इस बहस में एक पॉज़िटिव संदेश के रूप में देखा जा रहा है। उनके दौरे से महिलाओं के धार्मिक अधिकार और समानता को लेकर मजबूत संदेश गया। कई लोग इसे महिलाओं के लिए धर्म और आस्था में समान अवसर के प्रतीक के रूप में मान रहे हैं। यह ऐतिहासिक पल दिखाता है कि धार्मिक स्थलों पर महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है।
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया
राष्ट्रपति के मंदिर दर्शन की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहे हैं। देशभर में लोग इस ऐतिहासिक पल की चर्चा कर रहे हैं। कई लोग इस कदम की सराहना कर रहे हैं और इसे महिलाओं के अधिकार की दिशा में प्रेरणादायक उदाहरण मान रहे हैं। सोशल मीडिया पर लोग राष्ट्रपति के दर्शन करने और उनके संदेश को शेयर कर रहे हैं।
#WATCH | President Droupadi Murmu offers prayers at Sabarimala Temple in Kerala
— ANI (@ANI) October 22, 2025
(Source: PRD, Kerala) pic.twitter.com/HnX0ITjYFA
रिलीजियस और कल्चरल इम्पोर्टेंस
कुछ धार्मिक और सांस्कृतिक विशेषज्ञों के अनुसार, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का यह दौरा केवल उनके आधिकारिक कर्तव्यों का हिस्सा नहीं था, बल्कि यह महिलाओं के धार्मिक अधिकार और समानता के प्रतीक के रूप में भी खास है। राष्ट्रपति के इस कदम से देश की सभी महिलाओं तक यह संदेश गया कि महिलाओं को सभी धार्मिक जगहों पर समान अवसर मिलना चाहिए।
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