सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रही है। जिसमें 79 साल की एक बूढ़ी महिला लखनऊ की गलियों और सड़कों पर पैंफलेट बांटती नजर आ रही है। वीडियो के वायरल होने के बाद जब उनकी पहचान की गई तो पता चला कि वह प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा है। वह अपनी क्षमता के अनुसार क्रांति को जगाए रखने में लगी हुई है। वह लखनऊ यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर रह चुकी हैं।
क्रांति की भावना को रख रही हैं जिंदा
प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा को लखनऊ की सड़कों पर लोगों को पैंफलेट देते हुए देखा जा सकता है। यह पैंफलेट की आजादी की लड़ाई पर प्रकाश डालती है। पेंफलेट्स को बांटने का केवल एक ही मकसद है की आजादी की क्रांति को लोगों में जिंदा रखा जा सके और लखनऊ के इतिहास के बारे में उन्हें जानकारी मिले।
लखनऊ सीज भारतीय सिपाहियों और अंग्रेजी प्रशासन के बीच हुए युद्ध की कहानी है जो 1857 में अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए लड़ी गई थी।
प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा: आज़ादी के लिए लड़ाई
वीडियो के वायरल होने के बाद लोग प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा की देशभक्ति की सराहना कर रहे हैं। लोगों ने उनके जज्बे को देखकर कहा कि अगर हमारा इतिहास अभी तक दुनिया में जिंदा है तो वह केवल रूपरेखा वर्मा जैसे लोगों की वजह से। एक फेसबुक पोस्ट में किसी ने रूपरेखा की प्रशंसा करते हुए लिखा कि उनकी उम्र 77 साल है।
महिलाओं के बारे में ऐसे स्टीरियोटाइप है कि उनसे उनकी उम्र नहीं पूछनी चाहिए और वह भी अपनी उम्र को छुपा कर रखना पसंद करती हैं। लेकिन रूपरेखा ने इस पोस्ट का हंसते हुए रिप्लाई किया आपका मेरी 3 साल उम्र कम बताने के लिए शुक्रिया। मुझे अब 70 साल वाली फीलिंग आ रही है।
कौन हैं रुप रेखा वर्मा, महिला क्रांतिकारी?
रूपरेखा वर्मा महिलाओं के हक के लिए लड़ने वाली एक फेमिनिस्ट है। उन्होंने लखनऊ यूनिवर्सिटी में फिलॉसफी के प्रोफेसर और डिपार्टमेंट के हेड के रूप में भी काम किया। वह एक जानी-मानी लेखिका भी है और वह 50 से भी ज्यादा रिसर्च पेपर पब्लिश कर चुकी हैं। प्रोफेसर वर्मा की फिलॉसफी, सोशल फिलोसॉफी, मेटा फिजिक्स, आदि में काफी रूचि है।
उन्होंने लखनऊ यूनिवर्सिटी के अलावा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और महिला सामाख्या यूनिवर्सिटी में भी काम किया है। वह एक प्रसिद्ध एक्टिविस्ट भी है जो महिलाओं पर होने वाली हिंसा के विरोध में काम करती हैं। उन्हें कम्युनल हार्मनी के लिए बेगम हजरत महल अवार्ड और 2006 में लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड भी मिल चुका है।
रिटायर होने के बाद उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करना शुरू कर दिया। वह महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर अपने विचार भी रखती हैं। उन्होंने साझी दुनिया नाम की एक ऑर्गेनाइजेशन की शुरुआत भी की है जिसे नागरिक धर्म समाज भी कहा जाता है।