बच्चों में बढ़ रहा मायोपिया का खतरा: हाल ही में हुए चीन के रिसर्च और आंकड़ों में पाया गया है कि बच्चों में मयोपपिया का खतरा पिछले कुछ सालों कि तुलना में ज्यादा बढ़ गया है। दरअसल, बच्चों के बीच मायोपिया के नए मामलों की दर 2019 के मुकाबले 2020 और 2021 में लगभग दोगुनी पहुँच गयी है। शोधकर्ताओं ने इसकी असली वजह कोविड-19 महामारी और इसके चलते लाइफस्टाइल में आये बदलाव को ठहराया है।
बच्चों में बढ़ रहा मायोपिया का खतरा: दोगुनी हुई रफ़्तार
बच्चों में बढ़ रहा मायोपिया का खतरा के बारे में सुन यात सेन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने जानकारी दी। उनका मानना है कि कोविड-19 की वजह से लाइफस्टाइल में आए बदलाव से बच्चों की आँखों को नुक्सान पहुंचा है। कोरोना महामारी में बच्चों को पढ़ने के लिए स्कूल-कॉलेज तो बंद कर दिए गए लेकिन ऑनलाइन क्लासेज का न्य दौर शुरू हो गया। घंटों लैपटॉप और मोबाइल स्क्रीन के सामने बैठे रहने से बच्चों की आँखों पर बहुत बुरा असर पड़ा है। महामारी से जुड़े लाइफस्टाइल बदलावों का बच्चों पर देर तक नकारात्मक असर हो सकता है, जैसे मेन्टल हेल्थ के मामलों में बढ़ोत्तरी।
ऑनलाइन क्लासेज के पड़ रहा आँखों पर बुरा असर
महामारी के दौरान पढ़ाई चालू रखने के लिए ऑनलाइन माध्यम को अपनाया गया, जो पहले पहले तो ठीक था,लेकिन ज्यादा आंबे समय तक स्क्रीन पर वक़्त बिताते-बिताते बच्चों की पास की नज़र पर बुरा असर होने लगा। अगर बीते कुछ सालों के आंकड़ों को देखें तो पता चलेगा कि मायोपिया की समस्या कितनी तेज़ी से बच्चों के बीच बढ़ रही है।
2018 में एक हजार से ज्यादा बच्चों पर जांच की गई थी। उन्होंने फिर 2019 और 2020 में एक-एक बार बच्चों के ग्रेड 3 में पहुंचने पर मायोपिया की जांच की। चीन के वुहान में 2019 के अंत पर कोरोना महामारी शुरू हो चुकी थी, और 2020 की शुरुआत तक लॉकडाउन लगाया गया। 2020 के अंत में शोधकर्ताओं ने पाया कि महामारी से पहले के ग्रुप में 7.5 फीसद बच्चों को मायोपिया नहीं था, लेकिन दो सालों में ये दर बढ़ कर 15 फीसदी हो गयी।
कोरोना महामारी में बच्चों को मायोपिया का खतरा
शोधकर्ताओं के आंकड़ों के अनुसार ये अनुमान लगाना तो आसान है कि लॉकडाउन में बच्चों कोविड-19 के कारण वर्चुअल क्लास की तरफ मोड़ने को मजबूर कर दिया गया। एक दिन में कई-कई घंटे स्क्रीन पर बिताने से न सिर्फ आँखों पर प्रेशर पड़ा बल्कि मेन्टल हेल्थ भी काफी एफेक्ट हुई। कोविड-19 के कारण स्कूलों की बंदी से सोशल डिस्टैन्सिंग ने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं जैसे डिप्रेशन, चिंता को बढ़ा दिया है।