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तो आइये जानते हैं बॉलीवुड के ऐसे 5 रील लाइफ फेमिनिस्ट डैड्स के बारे में:
बरेली की बर्फी में नरोत्तम मिश्रा
बरेली की बर्फी में नरोत्तम मिश्रा उनकी बेटी बिट्टी के सबसे बड़े चीयरलीडर हैं। एक ऐसे शहर में रहना जहाँ लड़कियों को सिर्फ लड़को की बात माननी के लिए कहा जाता है, बिट्टी के पापा उसे ज़िन्दगी देने के लिए हर मुश्किल का सामना करते हैं और सपोर्ट भी करते हैं। वह अपनी बेटी को ओपिनियनएटेड वीमेन बनाते हैं और उसपे तब भी भरोसा करते हैं जब उसके साथ कोई नहीं होता है। वह अपनी patni का ये कहना कि एक बेटी केवल "पराया धन" है को कभी भी नहीं मानते। जब उनकी बेटी की नौकरी लगती है तब वो पूरे परिवार के लोगों में से सबसे ज़्यादा खुश होते हैं, अब ये चीज़ तो बॉलीवुड में हमें बहुत कम देखने को मिलती है। नरोत्तम मिश्राके रूप में पंकज त्रिपाठी, बिट्टी के पिता एक मिसाल कायम करते हैं कि फादर - डॉटर का रिलेशन असल में कैसा होना चाहिए।
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थप्पड़ में सचिन संधू
जब परिवार की महिलाएं अमृता से कहती हैं, "थोडा बर्दाश करना सीखना चाहिए औरत को", तब सिर्फ अमृता के पापा ही उसका सपोर्ट करते हैं। अमृता के पापा सचिन संधू का रोल कुमुद मिश्रा ने निभाया है। वह अपनी बेटी को समझाते हैं की उसे वो करना चाहिए जो उसका दिल कहता है। यहां तक कि जब बेटी प्रेगनेंट होने के बाद भी डाइवोर्स लेने का फैसला लेती है, तब भी वो उसके साथ खड़े होते हैं । वह जेंटल और केयरिंग हैं, हमेशा अपने बच्चों को हर चीज के बारे में ओपन कन्वर्सेशन करने के लिए एंकरेज करते हैं। जब उनका बेटा अपनी गर्लफ्रेंड से बुरा बेहव करता है तब वो अपने बेटे को डाटते भी हैं और सॉरी भी बुलवाते हैं। वह इंट्रोस्पेक्ट करने के लिए भी ओपन हैं और ये भी एक्सेप्ट करते हैं कि वो अपनी शादी के शुरुआती वर्षों के दौरान अपनी पत्नी के लिए खड़े नहीं हुए थे। एक पिता अपनी गलतियों को मानने के लिए तैयार है - ऐसे ही लोग हमे इस दुनिया में और चाहिए।
दिल धड़कने दो में कमल महरा
इनकी शुरुआत एक बहुत ही ज़्यादा गुस्सा करने वाले आदमी के रोल से होती है। वह अपने बेटे को, उसके ना चाहते हुए भी, फॅमिली बिज़नेस में लगा देते हैं । उनकी बेटी शादी में ना खुश होने की वजह से डाइवोर्स लेना चाहती है, पर वो उसका सपोर्ट नहीं करते हैं। वह एक इंसेन्सिटिव हस्बैंड भी हैं जो अपनी पत्नी की तरफ भी बहुत कम ध्यान देते है। लेकिन इस मूवी एक ऐसा टर्न लेती है जिसमें उनको अपनी गलतियों का एहसास है। कमल महरा का रोल अनिल कपूर ने निभाया है । हम उसके बाद एक ऐसा पिता को देखते हैं जो बहुत सेंसिटिव और केयरिंग होते हैं और अपने बच्चों को समझते हैं और उनके लिए स्टैंड भी लेते है।
बधाई हो में जीतेन्द्र कौशिक
समाज की चिंता न करते हुए अपनी पत्नी की डिग्निटी की ज़्यादा रेस्पेक्ट करना, इसमें जीतेंद्र कौशिक का रोल एक परफेक्ट एक्साम्प्ल है। वह अपने दो यंग लड़कों को अपनी माँ की प्रेगनेंसी के बारे में बताते है। साथ ही, वह उन्हें उनकी सिचुएशन की डिफीकल्टी के बारे में भी बताते है। वह अपने बच्चों को समझाते हैं की मर्दानगी का मतलब सिर्फ स्ट्रांग होना या कभी न रोना नहीं होता बल्कि मर्दानगी सेंसिटिव और इमोशनल होने में भी होती है। उनकी पत्नी के लिए उनका डिवोशन ही उनके बेटे नकुल (आयुष्मान खुराना) को लव और अफेक्शन की वैल्यू का एहसास करता है। इतना कि वह <नकुल> अपनी गर्लफ्रेंड की माँ से गलत बिहेवियर के लिए क्षमा माँगने जाता है। अब अगर वह प्रेरणा नहीं है , तो क्या है?
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पीकू में भास्कर बनर्जी
इस फिल्म में पिकू के सबसे बड़ा सुप्पोर्टर उसके पिता यानी भास्कर बनर्जी होते हैं। वो अपनी बेटी की अचीवमेंट्स को प्रेज़ करते कभी नहीं थकते है। प्यार और सेक्स को लेकर अपनी बेटी के फैसले के बारे में ओपन , वह ऐसे स्टीरियोटिपिकल पिता नहीं है जो अपने बच्चों के डिसिशन तय करते है। एक सिंगल पैरेंट के रूप में, उन्हें एक बेटी की परवरिश करने पर गर्व है। वो अपनी बेटी को इस काबिल बनाते हैं की वो खुद के ओपिनियन बना सके और सबके सामने उन्हें रख भी सके। वह अपनी बेटी को शादी से आगे देखने और सोचने के लिए लगातार एंकरेज करते रहते हैं। अमिताभ बच्चन द्वारा निभाया गया भास्कर बनर्जी का रोल वास्तव में हर पिता की प्रेरणा होनी चाहिए!
इन सभी फिल्मों में इन पिताओं के ऑन-स्क्रीन बच्चों को इंडिपेंडेंट दिखाया गया है। उनके पिता उनके लिए एक परफेक्ट एक्साम्प्ल सेट करते हैं। हमें ऑन-स्क्रीन ऐसे और डैड्स की जरूरत है जो अपने बच्चों को फादरहुड का एक दूसरा पहलु भी दिखते हैं - एक ऐसा साइड जो टॉक्सिक नहीं है ।