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Supreme Court Slams Bombay High Court For Using Misogynistic Language: हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायिक निर्णयों में महिला विरोधी भाषा के प्रयोग के विरुद्ध कड़ा रुख अपनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य रूप से बॉम्बे हाई कोर्ट के एक फैसले पर आलोचना की जिसमें तलाक के मामले में एक महिला का वर्णन करने के लिए "नाजायज पत्नी" और "वफादार मालकिन" जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया था। चलिए इस पूरे मामले के बारे में जानते हैं-
सुप्रीम कोर्ट ने जजमेंट में 'नजायज पत्नी' जैसे शब्द बोलने पर बॉम्बे हाई कोर्ट को लगाई फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर फटकार लगाई जहाँ तलाक के मामले में महिला को "नाजायज पत्नी" और "वफादार मालकिन" बोला गया था। इसके साथ ही इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया। बेंच में जस्टिस ए.एस.ओका, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे। उन्होंने ने बॉम्बे हाई कोर्ट के 2003 के फैसले पर आपत्ति जताई जहां महिलाओं के लेकर ऐसे शब्द बोले गए थे।
बेंच ने कहा, ऐसे शब्द महिला विरोधी हैं। इसके साथ ही शून्य विवाह की पत्नी को नाजायज पत्नी नहीं कहना चाहिए था। यह "बहुत अनुचित" था।
Live Law के अनुसार, कोर्ट ने फटकार लगाई और कहा, "भारतीय संविधान की धारा 21 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन जीने का मौलिक अधिकार है। किसी महिला को “अवैध पत्नी” या “वफादार मालकिन” कहना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उस महिला के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना जाएगा। इन शब्दों का उपयोग करके किसी महिला का वर्णन करना हमारे संविधान के लोकाचार और आदर्शों के विरुद्ध है। कोई भी व्यक्ति ऐसी महिला का उल्लेख करते समय ऐसे विशेषणों का उपयोग नहीं कर सकता है जो शून्य विवाह में पक्षकार है"।
आलोचना के साथ-साथ, सुप्रीम कोर्ट ने पुष्टि की कि Permanent Alimony उन मामलों में भी दी जा सकती है, जहाँ हिंदू विवाह 1955 अधिनियम की धारा 11 के तहत विवाह को अमान्य घोषित किया जाता है। यह फैसला वैवाहिक स्थिति की परवाह किए बिना वित्तीय सहायता के महत्व को उजागर करता है। बेंच ने कहा, 1955 अधिनियम की धारा 25 के चलते एक पति या पत्नी दूसरे पति या पत्नी से Alimony की हकदार हैं।