UNICEF की रिपोर्ट के अनुसार Covid-19 ने साउथ एशिया में 600 मिलियन बच्चों को एफेक्ट किया है।
भले ही टेक्नोलॉजी का पढ़ाई में यूज़ होर हा है पर बहुत सारे बच्चे इस डिस्टेंट लर्निंग से पढ़ाई नहीं कर पारहे हैं क्योंकि 24% घरों में इंटरनेट कनेक्शन की सुविधा नहीं है।
इस डेटा के अनुसार UNICEF ने बताया कि इस इंटरनेट एक्सेस में भी एक बहुत बड़ा जेंडर और रूरल(गांव) अर्बन(शहर) गैप है।
असर हुआ है गहरा
भारत में स्कूल बंद होने की वजह से 247 मिलियन बच्चों की एलिमेंट्री और सेकेंडरी एजुकेशन इम्पैक्ट होरही है।28 मिलियन बच्चे जो आंगनवाड़ी में पढ़ाई कर रहे थे उनपर भी असर हुआ है।
ये आंकड़ा उन 6 मिलियन बच्चों के addition में हैं जो पहले ही स्कूल से निकल चुके थे covid19 क्राइसिस शुरू होने से पहले।
टेक्नोलॉजी है बेहद बड़ा चैलेंज
आगे बताया गया कि सरकार ने अलग अलग तरीकों से एजुकेशन जारी रखने की पूरी कोशिश की है। जैसे वेब पोर्टल, टी वी चैनल, रेडियो और पॉडकास्ट प्लेटफार्म दीक्षा, स्वयं प्रभा टी वी चैनल्स , e-पाठशाला और National Repository of Open Educational Resources के द्वारा।
"बच्चों की पढ़ाई के लिए किताबें घर तक पहुंचाने का काम भी किया जारहा है चाहे घर कहीं भी हो। NCERT ने भी कक्षा 1 से 12 तक के लिए एक अलग अल्टरनेटिव कैलेंडर बनाया है जो घर से लर्निंग एक्टिविटीज़ सजेस्ट करता है।"
लेकिन UNICEF ने टेक्नोलॉजी को सबसे बड़ा चैलेंज बताया है।
300000 बच्चे हैं मौत के मुंह में
टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार लांसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित जॉन होपकिन्स (ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ) की स्टडी के अनुसार अगले 6 महीनों में 3,00,000 बच्चों का देहांत भारत में हो सकता है।
क्योंकि रूटीन हेल्थ सर्विस कवरेज कम होगया है, immunisation एक्टिविटीज़ में भी कमी आगयी है और बच्चों को खाने की कमी की वजह से उचित वेट ना प्राप्त कर पाने(child wasting) की समस्या बढ़ गयी है।
एक वजह रही माइग्रेंट क्राइसिस
बच्चों के गंभीर स्टेट में एक वजह माइग्रेंट क्राइसिस की भी रही है। UNICEF INDIA के representative यास्मीन हक कहती हैं
"रिवर्स माइग्रेशन जो शहरों से गांवों की तरफ हुआ है उसमें 118 मिलियन लोगों ने अपनी नौकरी गंवाई है जिसकी वजह से लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।"
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