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ट्रांसजेंडर को लेकर सभी जगह धीरे धीरे अवेयरनेस बढ़ रही है
झारखण्ड में भी इस से पहले ट्रांसजेंडर समुदाय ने अस्पतालों में अलग वार्ड की मांग की थी। अप्रैल 12 को सभी ट्रांसजेंडर समुदाय ने झारखंड में अस्पतालों में अलग वार्ड की मांग की।
अमरजीत किन्नर जो कि बोक्रो से हैं उन्होंने कहा कि ट्रांसजेंडर न तो पुरुष और न ही महिला के साथ कॉफ़र्टेबल महसूस करते हैं। इसलिए उनके इलाज के लिए अलग से व्यवस्थाएं करना चाहिए। इन्होंने बताया कि जितने भी ट्रांसजेंडर दूसरे स्टेट्स से यहां झारखण्ड में आए हैं उनको महिलाओं के साथ रखा गया है जिस से कि वो परेशान हैं।
दिल्ली ने कैसे की ट्रांसजेंडर के लिए अच्छी शुरुवात ?
थर्ड जेंडर बहुत समय से बेसिक चीज़ों के लिए भी परेशान होता आया है जैसे कि उनके लिए पब्लिक टोलेट या सीट। दिल्ली में इनके लिए एक नयी शुरुवात की गयी और शास्त्री भवन के पास प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में इनके लिए टॉयलेट बनायी गयी। टॉयलेट का उद्धघाटन नई दिल्ली म्युनिसिपल कॉउंसिल के सेक्रेटरी और चेयरमैन ने किया।
कब मिली थी थर्ड जेंडर को उनकी पहचान ?
ऐसी पहल से समझ आता है कि देश इस जेंडर के बारे में भी सोच रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में थर्ड जेंडर टर्म घोषित किया था और इनको एक इनकी खुद की पहचान दी थी। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इनके लिए सेपरेट टॉयलेट बनाने का आर्डर भी दिया था। कहा जा रहा है कि आगे इनके लिए और भी टॉयलेट बनाएं जायेंगे और इनके लिए सरकारी ओफिसिस में भी टॉयलेट बनाने की बात की गयी है।