Holi 2025: ब्रज में विधवा महिलाओं ने फ़ूलों और गुलाल के साथ खेली होली

भारत के बृज क्षेत्र खास तौर पर वृंदावन में, विधवाएँ रंगों के जीवंत त्योहार होली मनाकर सदियों पुरानी परंपराओं को तोड़ रही हैं। आज ब्रज में विधवा महिलाओं ने होली खेली। वृंदावन के गोपीनाथ मंदिर में विधवा महिलाओं ने फूल और गुलाल से होली मनाई।

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Rajveer Kaur
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Widows Celebrate Holi At Vrindavan: होली हम सबका पसंदीदा त्योहार है लेकिन कुछ लोगों को होली मनाने नहीं दी जाती है जिसमें विधवा महिलाएं भी शामिल हैं। हमारे समाज में सदियों से ही विधवा महिलाओं की जिंदगी को हमेशा ही मुश्किल बनाया गया है। उनकी जिंदगी के सभी रंग छीन लिए जाते हैं और किसी भी खुशी के मौके में उन्हें शामिल नहीं किया जाता है लेकिन वृंदावन में सदियों पुरानी इस रवायत को तोड़ा गया है क्योंकि यहां पर विधवाओं को भी होली मनाने दी जाती है। 

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ब्रज में विधवा महिलाओं ने फ़ूलों और गुलाल के साथ खेली होली

भारत के ब्रज क्षेत्र खास तौर पर वृंदावन में, विधवाएँ रंगों के जीवंत त्योहार होली को मनाकर सदियों पुरानी परंपराओं को तोड़ रही हैं। आज यानि 12 मार्च, 2025 को ब्रज में विधवा महिलाओं ने होली खेली। वृंदावन के गोपीनाथ मंदिर में विधवा महिलाओं ने फूल और गुलाल से होली मनाई। DB के अनुसार, इसके लिए 20 क्विंटल फूल और 25 क्विंटल गुलाब का प्रबंध किया गया। विधवा महिलाओं के साथ विदेशी महिलाओं ने भी होली के इस उत्सव का लुत्फ उठाया। उनके लिए यह बिल्कुल नया अनुभव था।  

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होली ने इन विधवा महिलाओं को खुलकर जिंदगी जीने का मौका दिया जहां पर उन्होंने एक दूसरे को रंग लगाए और हजारों औरतों ने एक साथ नृत्य भी किया। ऐसे मौके पर विदेश से भी महिलाएं होली देखने के लिए पहुंची और उन्होंने इन विधवा महिलाओं को ज्वाइन किया। यह उनके लिए एक बिल्कुल ही नया अनुभव था। उन्होंने भी खूब रंग उड़ाए, होली के गानों पर डांस किया और सेल्फी भी ली।

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होली का यह त्यौहार विधवा महिलाओं के लिए सिर्फ खुशी का उत्सव नहीं है बल्कि उन्हें जिंदगी जीने की उम्मीद देता है। एक दूसरे को रंग लगाने से उनकी खुद की जिंदगी भी रंगों से भर उठती है और उन्हें अपनी जिंदगी जीने का मजा आता है।

भारतीय समाज में विधवा होना आसान नहीं था,। आज भी कुछ जगह पर विधवा महिलाओं के साथ भेदभाव होता है। उन्हें ऐसे उत्सवों में भाग लेने से रोक दिया जाता था। सोशल स्टिग्मा के कारण उन्हें केवल सफ़ेद कपड़े पहनने, सांसारिक सुखों का त्याग करने और होली जैसे खुशी के उत्सवों से दूर रहने के लिए मजबूर किया जाता था, क्योंकि उनकी उपस्थिति को अशुभ माना जाता था लेकिन जब से वृंदावन में होली का उत्सव विधवा महिलाओं की तरफ से मनाया जाने लगा है तब से यह सोशल स्टिग्मा कम हो रहा है और उन्हें भी अपनी जिंदगी जीने का मौका मिल रहा है।

सुलभ इंटरनेशनल जैसे संगठनों और कानूनी कदमों की वजह से 2012-2013 के आसपास विधवाओं की स्थिति में बदलाव शुरू हुआ। 2013 से शुरू हुए इस उत्सव ने लोगों का ध्यान खींचा। अब इसमें शामिल होने वाले लोग, फोटोग्राफर और विदेशी मेहमान भी आते हैं, जो पुरानी दमनकारी परंपराओं के खिलाफ इस बदलाव को देखते हैं। यह आंदोलन विधवाओं को समाज में दोबारा जोड़ने की बड़ी कोशिश को दिखाता है और उन पुराने रिवाजों को चुनौती देता है, जो उन्हें हमेशा दुखी रखते थे।

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