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मानसिक स्वास्थ्य का मुद्दा बढ़ रहा है, बहुत सी कम्पनियाँ काउंसलिंग सर्विसेज़ देने के लिए टेक्नोलॉजी का प्रयोग करने का प्रयास कर रहीं हैं। हमने जन्नत बैल से उनके वेंचर बैबल मी के बारे में बात की, और जानने की कोशिश की कि अच्छी ऑनलाइन थेरेपी कैसे लोगों की मदद कर सकती है।
बैबल मी का उद्देश्य कुछ कॉमन मेन्टल डिसऑर्डर्स जैसे कि चिंता, डिप्रेशन और स्ट्रेस के साथ होने वाली परेशानियों पर काम करना है। वे आपको अपनी आवश्यकताओं के अनुसार एक थेरेपिस्ट से ऑनलाइन कनैक्ट करते हैं वो भी गुमनाम रूप से। कोई भी व्यक्ति इसमें टेक्स्ट या ऑडियोज़ का उपयोग करके ये बता सकता है कि वो कैसा महसूस कर रहा है। ये काम किसी भी समय एप्प के ज़रिये या वेबसाइट पर लॉगिन करके भी किया जा सकता है।
मैं यू.के. में पढ़ रही थी, और जब मैं वापस आई तो मुझे पता चला कि कितने लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के बारे में नहीं पता था। मैंने रिसर्च करनी शुरू की, और मुझे पता चला कि मेरे चारों ओर बहुत से लोग मानसिक स्वास्थय मुद्दों से गुज़र रहे थे। बहुत से लोगों को यह नहीं पता था कि मानसिक स्वास्थय क्या है, और वो किसी से बात करने से डरते थे। वे अच्छे खासे पढ़े-लिखे थे, लेकिन अभी भी इस धारणा के थे कि एक थेरेपिस्ट के पास जाना उनको नीचे दिखाना है। तब जाकर मैंने इस पोर्टल को डेवलप किया।
पश्चिम में जब आपको डॉक्टर बनना होता है, तो कुछ पैरामीटर हैं जिन्हें आपको पार करना होता है। साइकोलॉजी के लिए कोई ख़ास नियम कानून या योग्यता पैरामीटर नहीं हैं। हालांकि, यू.एस. और यू.के. में आपको क्वालीफाई होने के लिए अस्पताल में प्रैक्टिस करना अनिवार्य होता है। लेकिन यहाँ ये जानने करने के लिए कोई पैरामीटर नहीं है कि किसी थेरेपिस्ट को कितना ज्ञान है और वो अपने ज्ञान को किस प्रकार प्रयोग कर सकता है। उदाहरण के लिए, मैंने एक डिस्लेक्सिक बच्चे के माता-पिता के बारे में सुना जो एक छोटे शहर में एक साइकोलोजिस्ट के पास गए। वे बस इतना चाहते थे कि उनका बच्चा एक सामान्य जीवन जिए। उस साइकोलोजिस्ट ने कहा कि ये कभी नहीं होगा इसलिए उन्हें एक और बच्चे के बारे में सोचना चाहिए। अब आप खुद ही सोचिये कि उन माता-पिता को अपनी समस्या का ये कैसा समाधान मिला है?
मेरा एक थ्री-स्टेप प्रोसेस है। मैं एक ख़ास ट्रेनिंग देती हूँ जिसमे ये सिखाया जाता है कि लोगों से ऑनलाइन कैसे बात की जाती है। चैट थेरेपी में चीज़ें गलत भी समझी जा सकती हैं - आप टोन को समझ नहीं सकते - आपको यह समझना होगा कि एक मरीज से कैसे निबटना चाहिए।
मुझे लगता है की अधिक से अधिक लोग ऑनलाइन जा रहे हैं और ऑनलाइन होने से शर्मिंदा होने की समस्या दूर हो जाती है। मेरी वेबसाइट पर आप बिना नाम बताये भी आ सकते हैं - आप निश्चिन्त रह सकते हैं कि ये साइकोलोजिस्ट अच्छे और आज़माये हुए हैं। मैं ऑनलाइन काउंसलिंग की लिमिटेशंस को समझती हूँ, लेकिन यह किसी पीड़ित की मदद करने की ओर एक कदम है।
हाँ, मुझे लगता है कि यह घट रहा है। लेकिन जब भी लोगों को किसी थेरेपिस्ट के पास जाना होता है, तो उनको थोड़ी सहायता की ज़रूरत होती है कि कोई उन्हें हाथ पकड़ कर ले जाए। लोगों ने इसे एक जेन्युइन प्रॉब्लम समझना शुरू कर दिया है।
सबसे कॉमन समस्या जो मैंने लोगों में देखी है वह है चिंता। बहुत से लोग शब्दों को बिना जानकारी के इस्तेमाल कर लेते हैं। डिप्रेशन को भी लोग बहुत आम शब्द की तरह समझ लेते हैं। उन्हें ये नहीं पता कि उन्हें किसी भी एक प्रत्येक प्रकार की भावना यदि ६ हफ्ते से अधिक समय के लिए रहती है, तभी उस स्थिति को डिप्रेशन समझा जा सकता है और शायद यही कारण है कि लोगों को इस मुद्दे के बारे में शिक्षित करना महत्वपूर्ण है।
पढ़िए : वर्क-लाइफ बैलेंस: जानें की ये ५ महिलाएँ कैसे इसे प्राप्त कर रही हैं
बैबल मी का उद्देश्य कुछ कॉमन मेन्टल डिसऑर्डर्स जैसे कि चिंता, डिप्रेशन और स्ट्रेस के साथ होने वाली परेशानियों पर काम करना है। वे आपको अपनी आवश्यकताओं के अनुसार एक थेरेपिस्ट से ऑनलाइन कनैक्ट करते हैं वो भी गुमनाम रूप से। कोई भी व्यक्ति इसमें टेक्स्ट या ऑडियोज़ का उपयोग करके ये बता सकता है कि वो कैसा महसूस कर रहा है। ये काम किसी भी समय एप्प के ज़रिये या वेबसाइट पर लॉगिन करके भी किया जा सकता है।
डिप्रेशन को लोग बहुत आम शब्द की तरह समझते हैं। उन्हें ये नहीं पता कि उन्हें किसी भी एक प्रत्येक प्रकार की भावना यदि ६ हफ्ते से अधिक समय के लिए रहती है, तभी उस स्थिति को डिप्रेशन समझा जा सकता है।
बैबल मी तक पहुंचने की आपकी जर्नी कैसी थी?
मैं यू.के. में पढ़ रही थी, और जब मैं वापस आई तो मुझे पता चला कि कितने लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के बारे में नहीं पता था। मैंने रिसर्च करनी शुरू की, और मुझे पता चला कि मेरे चारों ओर बहुत से लोग मानसिक स्वास्थय मुद्दों से गुज़र रहे थे। बहुत से लोगों को यह नहीं पता था कि मानसिक स्वास्थय क्या है, और वो किसी से बात करने से डरते थे। वे अच्छे खासे पढ़े-लिखे थे, लेकिन अभी भी इस धारणा के थे कि एक थेरेपिस्ट के पास जाना उनको नीचे दिखाना है। तब जाकर मैंने इस पोर्टल को डेवलप किया।
क्या भारत में मानसिक स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर और लैंडस्केप के विषय में सबसे ज़्यादा कमी है?
पश्चिम में जब आपको डॉक्टर बनना होता है, तो कुछ पैरामीटर हैं जिन्हें आपको पार करना होता है। साइकोलॉजी के लिए कोई ख़ास नियम कानून या योग्यता पैरामीटर नहीं हैं। हालांकि, यू.एस. और यू.के. में आपको क्वालीफाई होने के लिए अस्पताल में प्रैक्टिस करना अनिवार्य होता है। लेकिन यहाँ ये जानने करने के लिए कोई पैरामीटर नहीं है कि किसी थेरेपिस्ट को कितना ज्ञान है और वो अपने ज्ञान को किस प्रकार प्रयोग कर सकता है। उदाहरण के लिए, मैंने एक डिस्लेक्सिक बच्चे के माता-पिता के बारे में सुना जो एक छोटे शहर में एक साइकोलोजिस्ट के पास गए। वे बस इतना चाहते थे कि उनका बच्चा एक सामान्य जीवन जिए। उस साइकोलोजिस्ट ने कहा कि ये कभी नहीं होगा इसलिए उन्हें एक और बच्चे के बारे में सोचना चाहिए। अब आप खुद ही सोचिये कि उन माता-पिता को अपनी समस्या का ये कैसा समाधान मिला है?
पढ़िए : जानिए कैसे बसंतिका बागरी शर्मा की ऑनलाइन कम्युनिटी माता-पिता की मदद करती है
तो आप अपने प्लेटफार्म पर कॉउंसलर्स कैसे चुनते हैं?
मेरा एक थ्री-स्टेप प्रोसेस है। मैं एक ख़ास ट्रेनिंग देती हूँ जिसमे ये सिखाया जाता है कि लोगों से ऑनलाइन कैसे बात की जाती है। चैट थेरेपी में चीज़ें गलत भी समझी जा सकती हैं - आप टोन को समझ नहीं सकते - आपको यह समझना होगा कि एक मरीज से कैसे निबटना चाहिए।
ऑनलाइन काउंसलिंग का भविष्य क्या है?
मुझे लगता है की अधिक से अधिक लोग ऑनलाइन जा रहे हैं और ऑनलाइन होने से शर्मिंदा होने की समस्या दूर हो जाती है। मेरी वेबसाइट पर आप बिना नाम बताये भी आ सकते हैं - आप निश्चिन्त रह सकते हैं कि ये साइकोलोजिस्ट अच्छे और आज़माये हुए हैं। मैं ऑनलाइन काउंसलिंग की लिमिटेशंस को समझती हूँ, लेकिन यह किसी पीड़ित की मदद करने की ओर एक कदम है।
क्या मानसिक स्वास्थय से जुड़ा कलंक कम हो रहा है?
हाँ, मुझे लगता है कि यह घट रहा है। लेकिन जब भी लोगों को किसी थेरेपिस्ट के पास जाना होता है, तो उनको थोड़ी सहायता की ज़रूरत होती है कि कोई उन्हें हाथ पकड़ कर ले जाए। लोगों ने इसे एक जेन्युइन प्रॉब्लम समझना शुरू कर दिया है।
सबसे कॉमन समस्या जो मैंने लोगों में देखी है वह है चिंता। बहुत से लोग शब्दों को बिना जानकारी के इस्तेमाल कर लेते हैं। डिप्रेशन को भी लोग बहुत आम शब्द की तरह समझ लेते हैं। उन्हें ये नहीं पता कि उन्हें किसी भी एक प्रत्येक प्रकार की भावना यदि ६ हफ्ते से अधिक समय के लिए रहती है, तभी उस स्थिति को डिप्रेशन समझा जा सकता है और शायद यही कारण है कि लोगों को इस मुद्दे के बारे में शिक्षित करना महत्वपूर्ण है।
पढ़िए : वर्क-लाइफ बैलेंस: जानें की ये ५ महिलाएँ कैसे इसे प्राप्त कर रही हैं