Anupma Proves Adoption Is Right: मां बनने की कोई उम्र नहीं होती है

author-image
New Update

स्टार प्लस के धारावाहिक अनुपमा को लोगों द्वारा बहुत पसंद किया जाता है। यह अभी टीआरपी की लिस्ट में सबसे ऊपर है। इसका ऊपर होना पूरी तरह जायज भी है क्योंकि यह महिलाओं के सशक्तिकरण की कहानी है। यह धारावाहिक दूसरे सभी धारावाहिकों से बहुत अलग है। अधिकतर धारावाहिक आज तक एक ऐसी लड़की या महिला का चित्रण करते आए हैं जिससे अपनी सुरक्षा के लिए एक हीरो की जरूरत होती है।

Advertisment

लेकिन अनुपमा उन सभी स्टीरियोटाइप को तोड़कर लोगों के सामने एक नई प्रकार की महिला और नई सोच का चित्रण करती है। वह एक ऐसी महिला है जो 3 बड़े बच्चों की मां है लेकिन उसके पति ने उसे कभी इज्जत नहीं दी। आखिरकार अनुपमा ने अपने लिए आवाज उठाई और अपनी पसंद से अनुज से शादी की।

एडॉप्शन नहीं है गलत

ऐसा माना जाता है कि बच्चा अडॉप्ट वह लोग करते हैं जिनका खुद का कोई बच्चा नहीं हो पाता। भारतीय समाज एडॉप्शन के पक्ष में ज्यादा नहीं है और गोद लिए हुए बच्चों को स्वीकारता भी नहीं। लेकिन बच्चा अडॉप्ट करने का फैसला माता-पिता का होता है ना कि इस समाज का।

अनुपमा ने अनु नाम की एक 6 साल की लड़की को गोद लिया है। पूरे देश में प्रसारित होने वाला यह धारावाहिक लोगों की सोच में परिवर्तन लाने की पहल है जिसमें यह कामयाब हो रहा है। सभी लोगों के विरोध के बावजूद भी अनुपमा अनु को गोद लेती है। एडॉप्शन कोई गलत चीज नहीं होती बल्कि यह किसी बच्चे की जिंदगी को सवार सकता है।

Advertisment

मिस यूनिवर्स सुष्मिता सेन बात की जीती जागती उदाहरण हैं कि एडॉप्शन कोई गलत चीज नहीं होती है। लोग खुद तो इस काबिल नहीं होते हैं फिर भी दूसरों को जज करते हैं। 

अनुपमा जैसी महिलाओं का हमारे देश में होना बहुत जरूरी है। वे दूसरों के लिए मिसाल बनती हैं और महिलाओं को सिखाती है कि एक महिला का आत्मसम्मान कितना महत्व रखता है।

मां बनने की कोई उम्र नहीं होती

जैसा कि हमने आपको बताया कि अनुपमा 3 बड़े बच्चों की मां है, तलाकशुदा है और अब वह अनुज से शादी कर चुकी है। हमारे समाज में कहां जाता है की शादी करने और बच्चे करने की एक उम्र होती है। लेकिन अनुपमा ने इन सभी स्टीरियोटाइप को तोड़कर यह सीख दी है कि किस तरह एक व्यक्ति की खुशी इन सभी स्टीरियोटाइप्स से बढ़कर है।

Advertisment

जब अनुपमा बच्ची को गोद लेकर घरवालों से मिलवाने लाती है तो उसकी सास कहती है कि यह उसकी मां बनने की उम्र नहीं। लेकिन मां बनने की निश्चित उम्र क्या होती है? यह उम्र का पैमाना कौन तय करता है? कोई भी नहीं, यह समाज की सोच में बसा हुआ है।

हमें इस रूढ़िवादी समाज की सोच को पीछे छोड़कर आगे निकलने की जरूरत है। यह समझने की जरूरत है कि एडॉप्शन कोई गलत चीज नहीं और उम्र किसी काम को करने का पैमाना नहीं हो सकता। 

मां बनना और एक बच्चे की जिम्मेदारी संभालना एक महिला की पर्सनल चॉइस है। किसी को अधिकार नहीं है कि वह उस महिला की चॉइस पर सवाल उठाए। मां बनने कि कोई निश्चित उम्र नहीं होती है। यह उस महिला पर निर्भर करता है जो मां बनना चाहती है।

धारावाहिकों में बदलाव है ज़रूरी

Advertisment

टीवी पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक दर्शकों की सोच और उनके व्यवहार को बहुत प्रभावित करते हैं। इसलिए यह लोगों को गलत और सही चीजों में अंतर समझाने का एक अच्छा माध्यम है। हमें इस माध्यम का सदुपयोग करना चाहिए। धारावाहिकों में लोगों को वह चीजें दिखानी चाहिए जो वास्तविकता में सही है।

अनुपमा