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Mother's Day: सदियों से माँ होने की क़ीमत अदा कर रही हैं महिलाएं

पितृसत्तात्मक समाज में मदर होना बिल्कुल भी आसान नहीं है। हमारे घरों में अगर आप माँ को देखेंगे तो वह एक ऐसी महिला है जिसकी 'जरूरत' सबको है लेकिन वह किसी के लिए 'जरूरी' नहीं है। हमारा मकान से अगर घर बना है तो सिर्फ उसकी वजह से है।

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Rajveer Kaur
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Motherhood

(Image Credit: Wikipedia)

Being A Mother In Patriarchal Society Is Not An Easy Role: अभी कुछ दिनों में मदर्स डे आने वाला है। हम सब सोशल मीडिया पर अपनी मदर के साथ तस्वीरें पोस्ट करेंगे। उनके लिए सरप्राइस भी प्लान किया जाएगा। इस दिन सब का अपनी मदर की तरफ ध्यान जाएगा। हर कोई FOMO से बचते हुए सोशल मीडिया पर पोस्ट लगाना नहीं भूलेगा। इसके साथ ही अपनी मां को फूल भी देंगे, उनके साथ बाहर खाना खाने जा सकते हैं और केक काटा जाएगा लेकिन यह सिर्फ एक दिन के लिए ही क्यों है? क्या यह भी एक दिखावा है? महिलाओं के साथ जो मदर होने पर अत्याचार हो रहा है, उसके ऊपर कब बात होगी?

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Mother's Day: सदियों से माँ होने की क़ीमत अदा कर रही हैं महिलाएं

पितृसत्तात्मक समाज (Patriarchal Society) में मदर होना बिल्कुल भी आसान नहीं है। हमारे घरों में अगर आप माँ को देखेंगे तो वह एक ऐसी महिला है जिसकी 'जरूरत' सबको है लेकिन वह किसी के लिए 'जरूरी' नहीं है। जिस दिन हमारी माँ बीमार पड़ जाती है तो हमारे घर का सिलसिला खराब हो जाता है। उसे दिन हमें अपनी मदर की वैल्यू पता चलती है और उसे हमें एहसास होता है कि उसके कंधों पर कितना ज्यादा बोझ है। हमारा मकान से अगर घर बना है तो सिर्फ उसकी वजह से है। उसने ही सब कुछ समेट कर रखा है। इसके पीछे उसने अपनी मेंटल, फिजिकल और इमोशनल हेल्थ को कुर्बान कर दिया है। उसने कभी अपनी खुशी नहीं देखी। उसके लिए कभी सास-ससुर, पति और बच्चे प्रायोरिटी है लेकिन वह कभी खुद के लिए प्रायोरिटी बन ही नहीं पाई।

हम सब बड़ी आसानी से अपनी माँ को यह बात बोल देते हैं कि तुम करती क्या हो? लेकिन जो वो करती है हम उसका आधा भी नहीं कर सकते हैं। हमने जैसे अपनी मदर को सहन करते हुए देखा है तो हमारी सोच भी वैसी ही बन जाती है कि शायद माँ होना ऐसा ही होता है। क्यों मां बनने के बाद उस महिला की ख्वाहिश खत्म हो जाती है? क्यों उसे अपनी मातृत्व को दिखाने के लिए अपने आप को बलिदान ही करना पड़ता है? क्यों उसके करियर पर रोक लग जाती है? क्यों उसे सुपर मॉम ही बनना है? क्यों हमें वह माँ अच्छी लगती हैं जो घर भी अच्छे से संभाल रही है, अपनी सेहत को भी मेंटेन किया हुआ है, ऑफिस भी जा रही है और बच्चे को भी सम्भाल रही है। हमें हमेशा माँ का हद से ज्यादा काम करना ही अच्छा लगता है। 

क्या हमने पुरुष पर कभी परफेक्ट होने का दबाव डाला है? इस मदर्स डे हमें इन सब बातों पर सोचने की जरूरत है कि कब तक हम अपनी मदर्स के साथ ऐसा करते जाएंगे? हम कभी उनकी स्थिति को समझने की कोशिश ही नहीं करते। हमें लगता है कि माँ ऐसे ही होती है। यह सब करना तो उसकी ड्यूटी है। 

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