Periods Without Shame: स्कूलों में लड़कियों के लिए पीरियड फ्रेंडली माहौल कब बनेगा?

पीरियड आज भी टैबू टॉपिक है। इसके बारे में ज्यादा बातचीत नहीं की जाती है। सोशल मीडिया ने टॉपिक को काफी नॉर्मलाइज किया है लेकिन जमीनी स्तर पर अभी भी बहुत लंबा रास्ता तय करना बाकी है।

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Rajveer Kaur
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Image Credit: The Better India

Breaking Down Barriers to Menstrual Health in Schools: आज के समय हमें यह बहुत सुनने को मिलता है कि महिलाएं आजाद हो चुकी हैं या फिर उनके साथ कोई भेदभाव नहीं होता है लेकिन जब हम अपने आसपास बुरी खबरें देखते हैं तब लगता है कि शायद अभी बदलाव की बहुत ज्यादा जरूरत है। हम महिलाओं पर बात करना बंद नहीं कर सकते। हम बहुत आगे आ चुके हैं लेकिन मंजिल अभी भी बहुत दूर है। पीरियड आज भी टैबू टॉपिक है। इसके बारे में ज्यादा बातचीत नहीं की जाती है। सोशल मीडिया ने टॉपिक को काफी नॉर्मलाइज किया है लेकिन जमीनी स्तर पर अभी भी बहुत लंबा रास्ता तय करना बाकी है।

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स्कूलों में लड़कियों के लिए पीरियड फ्रेंडली माहौल कब बनेगा?

समाज से बाहर रखा जाता है 

बहुत सारे ऐसे समुदाय हैं जहां पर आज भी पीरियड्स के बारे में बात नहीं होती। ऐसे विषयों को समाज की बातचीत का हिस्सा नहीं बनाया जाता है जिस कारण इनके बारे में ज्यादा जानकारी फैल नहीं पाती। ऐसी बहुत सारी महिलाएं हैं जिनका पीरियड आने के बाद स्कूल छुड़वा दिया जाता है। क्या यह सही है? इसके साथ ही अगर किसी महिला के कपड़े पर खून का दाग या धब्बा लग जाता है तो उसे भी बहुत शर्मनाक माना जाता है। पीरियड की वजह से महिलाओं को धार्मिक और सामाजिक कार्यों में शामिल नहीं किया जाता है। मंदिर में उनकी एंट्री को बैन कर दिया जाता है। महिलाओं के पास पीरियड को मैनेज करने के लिए पर्याप्त साधन नहीं होते हैं। आज भी पैड खरीदना बहुत सारी महिलाओं के लिए बड़ा इशू है।

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स्कूलों में सहज माहौल नहीं 

हमारे स्कूलों में महिलाओं को वैसा माहौल नहीं दिया जाता है जिनकी उन्हें पीरियड के दिनों पर जरूरत होती है। महिलाओं को आज भी अगर स्कूल में पीरियड आ जाते हैं तो उनके पास पैड या फिर पीरियड प्रोडक्ट्स की कोई सुविधा नहीं होती है। उनके लिए रिलैक्स करने के लिए कोई खास रूम नहीं होते हैं। उन्हें स्कूलों में स्वच्छ बाथरुम नहीं मिलते हैं। उन्हें इसके बारे में किसी को बताने नहीं दिया जाता है। आज भी स्कूलों में लड़कों की तरफ से लड़कियों का मजाक बनाया जाता है। अगर उनके कपड़ों पर कोई दाग लग जाता है तो इसके लिए उन्हें बुरा महसूस करवाया जाता है। कई बार टीचर्स भी महिलाओं के लिए उतना सहज या सुरक्षित माहौल नहीं पैदा करते हैं या फिर उनकी पेन को रद्द कर दिया जाता है।

सबसे जरूरी बात करना है 

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छोटी उम्र से ही महिलाओं को पीरियड के डर और दर्द के साथ रहना सिखाया जाता है। हमारे आसपास ऐसी बहुत कम महिलाएं हैं जो पीरियड के दौरान मदद मांगती हैं या फिर वह स्कूल में किसी को इसके बारे में बताती हैं क्योंकि ऐसा माहौल ही नहीं दिया जाता है। अगर हम महिलाओं को के लिए सुरक्षित और सहज माहौल बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें पीरियड को लेकर बात करनी शुरू होगी। यह एक ऐसा समय है जब हमें समझना पड़ेगा कि यह एक बायोलॉजिकल प्रोसेस से बढ़कर कुछ भी नहीं है। हमें इससे जुड़ी भ्रांतियों को तोड़ना होगा और सही जानकारी और पीरियड अवेयरनेस के ऊपर काम करना होगा तभी हम समझ में एक बड़ा बदलाव देख सकते हैं।

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