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Photograph: (Freepik)
सोशल मीडिया पर हर दिन लाखों महिलाएं अपनी ज़िंदगी की छोटी-बड़ी झलकें शेयर करती हैं। कभी सेल्फी, कभी ट्रिप की तस्वीरें, बच्चों के जन्मदिन, रिश्तों के अपडेट, या रोज़मर्रा के पल। लेकिन सोशल मीडिया पर जो “normal sharing” लगता है, वही आज महिलाओं की सुरक्षा पर सबसे बड़ा डिजिटल खतरा बन रहा है। आज हर फोटो, हर reel और हर लाइफ अपडेट सिर्फ ‘content’ नहीं है, बल्कि एक परमानेंट डेटा बन चुका है। जिसे कोई भी व्यक्ति, किसी भी तकनीक से कभी भी आपके खिलाफ इस्तेमाल कर सकता है। और यह चिंता सिर्फ काल्पनिक नहीं है, ये डॉक्यूमेंटेड रिएलिटी है।
Digital Threat: ऑनलाइन शेयरिंग कैसे महिलाओं की डिजिटल सेफ्टी छीन रहा है
हर पोस्ट एक डेटा पॉइंट: महिलाएं बनती हैं आसान टार्गेट
अक्सर कहा जाता है कि ज़्यादातर महिलाएँ ऑनलाइन कंटेंट शेयर करती हैं, पर असल समस्या शेयरिंग नहीं है। प्रॉब्लम यह है कि इंटरनेट उस शेयरिंग को कैसे consume करता है। क्योंकि AI सिस्टम आपके किसी भी फोटो से लोकेशन, बैकग्राउंड, कपड़ों, रूटीन और यहाँ तक की आपके चेहरे के माइक्रो-डिटेल्स तक पढ़ सकता है। जितनी ज़्यादा photos महिलाएं शेयर करती हैं, उतना ही आसान होता है किसी अजनबी के लिए उनकी डिजिटल प्रोफाइल बनाना। समस्या तब और गंभीर होती है जब ये harmless uploads deepfake बनाने के raw material की तरह इस्तेमाल होने लगते हैं।
सिर्फ कुछ तस्वीरें और तैयार हो सकता है Deepfake
आज AI आपके सिर्फ कुछ images के आधार पर बेहद convincing deepfake फोटो और वीडियो बना सकती है। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि लगभग 20 images से AI किसी भी महिला का चेहरा पूरी तरह reconstruct कर सकता है। यही वजह है कि ऑनलाइन उपलब्ध 95% deepfakes non-consensual सेक्सुअल कंटेंट हैं, और उनमें 99% टार्गेट महिलाएं होती हैं। यह सिर्फ प्राइवेसी का नहीं, बल्कि मेंटल हैल्थ, dignity और सेफ्टी का भी मुद्दा है। ऐसे में यह साफ़ हो जाता है कि डिजिटल वाइलेंस अब कोई rare क्राइम नहीं, बल्कि एक मेनस्ट्रीम ऑनलाइन रिएलिटी है।
Parents सोचते कुछ और हैं, इंटरनेट करता कुछ और
महिलाओं के साथ बच्चों की ऑनलाइन सेफ्टी भी उतनी ही चिंताजनक है। कई माता-पिता जो अक्सर अपने बच्चों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर करते रहते हैं। कुछ स्टडीज़ बताती हैं कि क्रिमिनल forums पर मिलने वाली आधी से ज़्यादा चाइल्ड इमेजेस, सीधे पेरेंट्स की पब्लिक पोस्ट्स से ली गई होती हैं। मतलब साफ़ है कि अनजाने में ही सही लेकिन लोग खुद ही अपने बच्चों की digital vulnerability बढ़ा देते हैं। आप अपने बच्चों की इन्फ़ॉर्मेशन रॉ मटेरियल के तौर पर ग़लत हाथों तक पहुंचा देते है।
सेलिब्रिटी से लेकर आम महिलाएं, कोई सुरक्षित नहीं
हाल ही में एक्ट्रेस गिरिजा ओक ने बताया कि उनके Deepfake इमेजेस सर्क्युलेट हो रहे हैं, और उन्हें डर है कि कभी उनका बच्चा इन से सामना न कर ले। लेकिन यह डर सिर्फ सेलिब्रिटी का नहीं है, हर महिला जिनकी इमेजेस पब्लिकली शेयर्ड है misuse के खतरे में रहती हैं। डिजिटल अब्यूज़ तेजी से बढ़ रहा है और पॉलिसीज़ अभी भी डेंजरसली स्लो हैं। मजबूत लॉ या पॉलिसीज़ की कमी इसे और अनकंट्रोल्ड बना रही है। ऐसे में कानून से पहले डर झेलना पड़ता है, और जवाबदेही अक्सर महिलाओं से ली जाती है कि “इतना online क्यों डालती हो?”
ओवरशेयरिंग: वुमन सेफ्टी का सबसे underestimated threat है
एक ऐसी दुनिया में जहां हर अपलोड permanent footprint छोड़ता है, महिलाएं अनजाने में अपनी ही डिजिटल vulnerabilities बढ़ा देती हैं। सोशल मीडिया पर ओवरशेयरिंग आज सिर्फ लाइफस्टाइल चॉइस नहीं है। यह एक सीरियस digital threat बन चुका है, जिसकी कीमत कई बार महिलाओं को अपनी सुरक्षा, privacy और mental peace से चुकानी पड़ती है।
हम कितना भी digital-savvy क्यों न हों, सच यही है कि इंटरनेट ना तो वुमेन फ्रेंडली है ना ही वुमन- अवेयर। और जब तक सोशल मीडिया को सिर्फ सेल्फ एक्सप्रेशन समझा जाएगा, तब तक digital exploitation नॉर्मलाइज़्ड ही रहेगा। इसका सॉल्यूशन महिलाओं को अपनी स्टोरीज़ शेयर करने से रोकना नहीं है, लेकिन ऑनलाइन क्या, कब और कितना दिखाना है। यह समझना आज सेल्फ केयर का हिस्सा बन चुका है। यह caution नहीं, consciousness है। सेफ्टी से बड़ा कोई एंपावरमेंट नहीं।
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