हमारे समाज में हर चीज़ में दोगलापन है। ख़ासकर लड़कियों की बात करें तो समाज की उनकी प्रति सोच अलग है। अगर लड़का बीच पर कपड़े उतार ले तो उसे सामान्य माना जाता है लेकिन वहीं औरत बीच पर जाकर बिकनी पहने तों उसका शोषण किया जाता उनके साथ भद्दा मज़ाक़ बनाया जाता है।
यहाँ पर तो अगर विराट कोहली मैच में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहा तो उस पर भी अनुष्का शर्मा को दोषी माना जाता है।ऐसे और भी बहुत सी उदहारणें आपको मिल जाएगी जो समाज के डबल स्टैंडर्ड्ज़ दिखती है।
ट्रेडिशनल और वेस्टर्न कपड़ों में भी होता है भेदभाव
अगर किसी औरत ने साड़ी का ब्लाउस पहना है तो वहीं दूसरी तरफ़ क्रॉप टॉप पहना है। समाज उस औरत के कपड़ों पर सवाल उठाएगा जिसने क्रॉप टॉप पहना। इस पर लोग बातें बनायेंगे कि कैसे कपड़े पहने है। इसे तो कपड़े पहनने की अक़्ल नहीं है। आजकल तों लड़कियाँ कपड़े उतारने को फिर रहीं है। वहीं दूसरी और उस औरत पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगा जिसने ब्लाउस पहना और उसका शरीर क्रॉप टॉप से ज़्यादा दिख रहा हो।बात यह नहीं है कि शरीर ज़्यादा दिख रहा या कम बल्कि मसला यह है कि समाज अपने डबल स्टैंडर्ड्ज़ शो करता है।
ड्राइविंग मर्दों के लिए होती है
यह भी अक्सर कह दिया जाता है महिलाओं को तो गाड़ी चलाना नहीं आता। इनको तो गाड़ी चलानी ही नहीं चाहिए। सोशल मीडिया पर ऐसे कितने ही मीमस बनाए जाते है जिसमें औरतों का ड्राइविंग को लेकर मज़ाक़ बनाया है।
बॉडी हेयर
बॉडी हेयर को शेव करना या नहीं यह किसी भी औरत की व्यक्तिगत मर्ज़ी है। लेकिन बहुत से लोग औरतों को इस बात पर शर्मिंदा करते है, नीचा दिखाते है।लेकिन वहीं दूसरी तरफ़ मर्दों को इस बात के लिए शर्मिंदा नहीं किया जाता।
माँ-बाप रोल
हमारे समाज में यह भी एक डबल स्टैंडर्ड है कि बच्चा सम्भालना सिर्फ़ माँ की ज़िम्मेदारी है और मर्द की ज़िम्मेदारी बच्चे के खर्चे उठाना है। बच्चे के लिए माँ को नौकरी छोड़ने के लिए जाता है लेकिन कभी पिता को नहीं कहा जाता कि तुम नौकरी छोड़कर घर पे बच्चा सम्भालो।
कैसे इनको ख़त्म किया जाए
ऐसे और भी बहुत से डबल स्टैंडर्ड्ज़ है जो हमारे समाज में प्रचलित है।इनको ख़त्म किया जा सकता है अगर हम अपने आने वाली पीढ़ियों को आगे यह चीजें न सिखाए। उन्हें बराबरी की बात सिखाए। उन्हें कभी यह ना कहे कि औरत का काम सिर्फ़ परिवार पालना और बच्चे सम्भालना है या। फिर मर्द को ही सिर्फ़ कमाकर लाना है। उन्हें औरत की इज़्ज़त करना सिखाए।ऐसे ही हमारे समाज में बदलाव आ सकता है।