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Double Standards: क्यों महिलाओं की Piercing और Tattoo समाज के लिए संस्कारी नहीं?

डबल स्टैंडर्ड भरपूर है जब बात महिलाओं की आती है तब समाज का नजरिया एकदम से बदल जाता है। एक बात जो पुरुषों के लिए सही मानी जाती है अगर वहीं महिलाएं कर दे तो गलत हो जाती है। यह एक बड़ा सवाल है जो अक्सर समाज से पूछा जाता है -

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Rajveer Kaur
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piercing and tatto

(Image Credit: Pinterest & Freepik)

Double Standards Of Society: हमारे समाज में डबल स्टैंडर्ड भरपूर है जब बात महिलाओं की आती है तब समाज का नजरिया एकदम से बदल जाता है। एक बात जो पुरुषों के लिए सही मानी जाती है अगर वहीं महिलाएं कर दे तो गलत हो जाती है। यह एक बड़ा सवाल है जो अक्सर समाज से पूछा जाता है लेकिन समाज का एक ही जवाब होता है कि लड़कियों को यह सब करना सूट नहीं करता है। यह चीज उनके करने के लिए नहीं है। उनके ऊपर घर और खानदान की इज्जत है। इसलिए वह चीज नहीं कर सकती लेकिन यह सब वैलिड और लॉजिक जवाब नहीं है। ऐसा ही एक डबल स्टैंडर्ड है कि जब लड़के टैटू बनवाते हैं तब तब उसे अच्छा मानते हैं। उसकी कोई आलोचना नहीं होती लेकिन वही जब वहीं टैटू महिला बनवा लेती है तब उसके चरित्र पर सवाल उठने लग जाते हैं। ऐसा क्यों है?

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क्यों महिलाओं की Piercing और Tattoo समाज के लिए संस्कारी नहीं?

टैटू या फिर पियर्सिंग करवाना हर एक व्यक्ति की एक पर्सनल चॉइस है। इस पर हम किसी को भी जज नहीं कर सकते हैं। एक बात हम सबको समझनी होगी कि अगर महिला टैटू या पियर्सिंग करवाती है तो इसमें कुछ भी गलत बात नहीं है। इससे आप उस महिला का चरित्र डिफाइन नहीं कर सकते हैं और न ही आपके पास अधिकार है कि आप उसके निजी जीवन को सिर्फ एक टैटू से जज करें लेकिन यह हमारे समाज में बहुत आम है। जिन महिलाओं ने टैटू बनवाए हैं या फिर पियर्सिंग करवाई है, उन्हें इन सब बातों से गुजरना पड़ता है।

अब आप लोग कहेंगे कि पियर्सिंग तो महिलाएं ही करवाती हैं लेकिन हमारे समाज में जब कोई महिला नाक और कान की करवाती है तब उसे शुभ माना जाता है और इसे इसकी सब सराहना भी करते हैं। आमतौर पर सभी महिलाएं नाक और कान की ही करवाती हैं और ज्यादातर महिलाओं की गहने भी इसी प्रकार से डिजाइन किए जाते हैं। अब जब बात नेवल पियर्सिंग की आती है या फिर बॉडी के दूसरे हिस्सों की आती है तब समाज के विचार नेगेटिव हो जाते हैं। यह सब उन्हें अच्छा नहीं लगता ह। सवाल यह है कि उसमें क्या बुराई है?

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हमें अपनी इस सोच को बदलना होगा। महिला के पियर्सिंग या फिर उनकी बॉडी पर टैटू से उनकी वर्थ डिसाइड नहीं होती है। इससे ना ही कोई महिला गलत सही और न ही गलत हो जाती है। जैसे हम पुरषों को जिंदगी जीने का अधिकार देते हैं ऐसे ही हमें औरतों को देना चाहिए। डबल स्टैंडर्ड के कारण बहुत सारी महिलाएं आगे नहीं बढ़ पा रही हैं क्योंकि उन्हें डर लगता है। इसके साथ ही महिलाओं के परिवार के लोग भी महिलाओं का साथ नहीं देते हैं क्योंकि समाज में लड़की के साथ-साथ उसके परिवार को भी टारगेट किया जाता है। हमें महिलाओं के लिए सुरक्षित जगह बनाने की जरूरत है यहां पर वह अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जी सकें।

Piercing double Standards Tattoo Society
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