Duty Is Duty, Why Gender Bias In It? हमारे समाज में आज भी कई ऐसी बातें हैं जो लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देती हैं। इन्हीं में से एक है घर के कामों को लैंगिक आधार पर बाँट देना। अक्सर हम सुनते हैं कि ‘लड़कियों का काम है खाना बनाना, घर साफ करना और लड़कों का काम है बाहर जाकर पैसा कमाना’। ये सोच कितनी गलत है? क्या ड्यूटी करने के लिए किसी का लैंगिक पहचान मायने रखता है?
ड्यूटी तो ड्यूटी है, उसमें जेंडर बॉयस क्यों?
इस बात को समझने के लिए हमें सबसे पहले इस सोच को बदलना होगा कि घर के काम केवल महिलाओं का काम हैं। घर सभी का है, तो उसकी जिम्मेदारी भी सभी की होनी चाहिए। चाहे वह खाना बनाना हो, बर्तन धोना हो, घर साफ करना हो या फिर बच्चों की देखभाल करना हो। हर काम में सभी को योगदान देना चाहिए।
जब हम लड़कों को घर के कामों में शामिल करते हैं तो हम उन्हें सिर्फ काम नहीं सिखा रहे हैं बल्कि उन्हें ज़िम्मेदार भी बना रहे हैं। उन्हें ये एहसास हो जाता है कि घर चलाने में उनका भी योगदान है। इससे न सिर्फ उनके और उनके परिवार के बीच रिश्ते मजबूत होते हैं बल्कि समाज में लैंगिक भेदभाव को भी कम करने में मदद मिलती है।
कई लोग ये कहते हैं कि लड़कों को घर के कामों में शामिल करने से उनकी मर्दानगी कम हो जाती है। लेकिन ये सोच बिल्कुल गलत है। मर्दानगी किसी के काम के आधार पर नहीं तय होती है बल्कि उसके चरित्र और व्यवहार के आधार पर होती है। एक असली मर्द वो होता है जो अपने परिवार की ज़िम्मेदारियों को समझता है और उनको पूरा करता है।
अगर हम चाहते हैं कि हमारे समाज में लैंगिक समानता आए तो हमें सबसे पहले घर से ही शुरुआत करनी चाहिए। हमें लड़कियों को सिर्फ घर के कामों में नहीं बल्कि बाहर के कामों में भी बराबर का मौका देना चाहिए। साथ ही लड़कों को भी घर के कामों में शामिल करना चाहिए और उन्हें ये एहसास दिलाना चाहिए कि घर चलाना उनका भी काम है। तभी हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर पाएंगे जहाँ लैंगिक भेदभाव न हो और सभी को बराबर का सम्मान और मौका मिले।