Mother Should Change Herself To Protect Her Daughter: माँ अपनी बेटी के लिए एक रोल-मॉडल की तरह काम करती है। हर बेटी अपनी माँ की परछाई जैसी होती है। अगर आज की हर माँ अपनी बेटी की परवरिश खुले दिल से करे तो कल आने वाली बेटियाँ भी ज़िंदादिली से जीना सीख पाएंगीं।
बेटी के लिए माँ को करने होंगे ख़ुद में कुछ बदलाव
हमारे समाज में महिलाओं के प्रति बढ़ रहे क्राइम को कम करने में पहला कदम माएं उठा सकती हैं। चाहे वो घरेलू हिंसा हो या फिर बलात्कार, अगर एक माँ अपनी बेटी के लिए सशक्त महिला की एग्ज़ैम्पल सेट करेगी तो बेटी हर ज़ुल्म को सहने से इंकार करेगी और जितना हो सके बुराई के खिलाफ खड़ी होगी। वहीं, दूसरी ओर अगर माँ डरी-सहमी औरत के रूप में अपनी बेटी के सामने आएगी तो बेटी भी आने वाले समय में डरी-सहमी रहेगी और अपने साथ हो रहे ज़ुल्म के खिलाफ कभी आवाज़ नहीं उठा पाएगी। आज हम ऐसी ही कुछ उदहारणों के बारे में बात करेंगे।
1. घरेलु हिंसा को बढ़ावा
अगर पति अपनी पत्नी को बच्चों के सामने पीटता है तो उसे यह याद रखना होगा कि वो अपनी बेटी को भी इस चीज़ के लिए त्यार कर रहा है। इसमें माँ का रोल भी उतना ही है जितना कि पिता का। माँ अपनी बेटी को जाने-अनजाने में यह सिखा रही होती है कि जो उसके साथ हो रहा है वो नार्मल है और इसमें कुछ गलत नहीं। इसी से बेटी आने वाले समय में अपने पति से मार खाने के लिए त्यार रहेगी और कभी आवाज़ नहीं उठा पाएगी। इसलिए माँ को अपनी बेटी के सामने अच्छी एग्ज़ैम्पल सेट करने के लिए उस मारपीट का जवाब देना शुरू करना होगा।
2. अपने सपनों को छोड़ देना
अगर एक माँ अपनी बेटी को घर-परिवार, बच्चों और गृहस्थी के लिए अपने सपनों को छोड़ देने की कहानियाँ सुनाती है तो इसमें कोई महानता नहीं है। आप अपनी बेटी को समझा रहे हैं कि वो औरत ही होती है जिसे ज़रूरत पड़ने पर किसी भी तरह का बलिदान देना पड़ता है जहाँ तक कि अपने सपने भी छोड़ देने पड़ते हैं। ऐसा सोचने के बाद आपकी बेटी सपने देखेगी लेकिन उनको पूरा करने का कदम कभी नहीं उठा पाएगी। इसके लिए आप अपनी बेटी को उसके सपने पूरे करने के किए प्रेरित करते रहें।
3. सवाल पूछने पर टोकना
अगर आप माँ होने के नाते अपनी बेटी को यह सिखा रही हैं कि बड़े जो बोलें उसे बिना सवाल-जवाब किए ही सवीकार कर लेना चाहिए तो आप अपनी बेटी कि सोच और बुद्धि पर ताला लगा रही हैं। इस तरह की सीख से आपकी बच्ची कभी रैशनली नहीं सोच पाएगी और अपनी ज़िंदगी के फैसले लेने के लिए उसे दूसरों पर डिपेंड होना पड़ सकता है। इसलिए अपनी बेटी के सवालों को टोकने की बजाय उन सवालों के जवाब दें।
4. किस्मत का रोना
कई बार औरतें अपने साथ हो रहे बुरे व्यवहार का कारण अपनी बुरी किस्मत को मानती हैं और इसी चीज़ का रोना अपने बच्चों के सामने भी रोती हैं। इस तरह से आप अपनी बच्ची को अपनी ज़िंदगी पूरी तरह से किस्मत के हवाले करना सिखा रही हैं और फ्यूचर में वो लड़की अपने बुरे हालातों से लड़ने की कोशिश भी नहीं करेगी क्योंकि उसकी सोच के हिसाब से किस्मत उसकी ज़िंदगी की प्राइम कंट्रोलर होगी। इससे बचने के लिए अपनी बेटी को अपनी किस्मत से लड़ना सिखाएं और आपसे अच्छी एग्ज़ैम्पल उसके लिए दूसरी क्या हो सकती है!