Facial Features & Racism: नाक-होंठ और आंखों पर क्यों होता है रंगभेदी नजरिया? जानें रंग, नस्ल और सुंदरता के जाल को

Facial Features & Racism: दुनिया भर में सुंदरता की परिभाषा अलग हो सकती है, लेकिन ज़्यादातर समाजों में गोरी त्वचा, पतली नाक, हल्की आंखें और पतले होंठ को ही खूबसूरती का मापदंड माना जाता है।

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Tamnna Vats
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Why is there a colorist attitude towards the nose, lips, and eyes? Understand the web of color, race, and beauty: दुनिया भर में सुंदरता की परिभाषा अलग हो सकती है, लेकिन ज़्यादातर समाजों में गोरी त्वचा, पतली नाक, हल्की आंखें और पतले होंठ को ही खूबसूरती का मापदंड माना जाता है। ये सोच न सिर्फ़ सुंदरता को सीमित करती है, बल्कि इसके पीछे रंगभेद और नस्लवाद भी छिपा होता है। सवाल ये है कि किसी के चेहरे की बनावट ही उसके मूल्य और पहचान का पैमाना क्यों बन जाती है?

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Facial Features & Racism: नाक-होंठ-आंखों पर क्यों होता है रंगभेदी नजरिया? जानें रंग, नस्ल और सुंदरता के जाल को

सुंदरता की सांस्कृतिक परिभाषा

हर समाज में सुंदरता के कुछ तय मापदंड होते हैं जैसे, नुकीली नाक, पतले होंठ, बड़ी आंखें और गोरी त्वचा। ये मानक ज़्यादातर पश्चिमी देशों से आए हैं और फिल्मों, फैशन व विज्ञापनों के ज़रिए फैलते हैं। भारत जैसे विविध देश में भी इन्हें सुंदरता का आदर्श मान लिया जाता है। इससे जो लोग इन मानकों से अलग होते हैं, उन्हें कमतर समझा जाने लगता है।

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पश्चिमी सौंदर्य मानकों का असर

पश्चिमी देशों के बनाए सौंदर्य मानकों का असर पूरी दुनिया पर पड़ा है। इनमें गोरी त्वचा, तीखी नाक, पतली काया और हल्की आंखों को सुंदर माना जाता है। इसी वजह से कई लोग, खासकर जहां त्वचा का रंग या चेहरा अलग होता है, खुद को बदलने की कोशिश करते हैं, जैसे कॉस्मेटिक सर्जरी, स्किन लाइटनिंग क्रीम या मेकअप का सहारा लेकर।

टीनएजर्स और बच्चों पर असर

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जब बच्चे और किशोर हर जगह एक जैसे "सुंदर" चेहरे देखते हैं, तो वे खुद से तुलना करने लगते हैं। अगर उनका चेहरा वैसा नहीं होता, तो उन्हें हीन भावना होने लगती है। इससे आत्मविश्वास[ घटता है और डिप्रेशन जैसी मानसिक परेशानियां हो सकती हैं।

मीडिया और ब्यूटी इंडस्ट्री की भूमिका

मीडिया और ब्यूटी इंडस्ट्री इस सोच को बढ़ावा देती हैं। विज्ञापनों में गोरे मॉडल्स को ज़्यादा दिखाया जाता है और स्किन-लाइटनिंग प्रोडक्ट्स को सफलता से जोड़ा जाता है। साथ ही, ब्यूटी फिल्टर्स और फोटो एडिटिंग टूल्स भी लोगों को अपनी असली पहचान छुपाने के लिए प्रेरित करते हैं।

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बदलाव लाने की ज़रूरत

अब वक्त है कि हम सुंदरता की परिभाषा को और inclusive बनाएं। चेहरे की बनावट कोई कमी नहीं, बल्कि विविधता का प्रतीक है। हर रंग और फीचर को बराबर सम्मान मिलना चाहिए। शिक्षा, मीडिया और समाज को मिलकर समझाना होगा कि सुंदरता कोई तय मानक नहीं, बल्कि हर किसी का अपना अनुभव है।

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