Fathers Who Believe In Gender Equality Should Take These Steps: पितृसत्ता समाज ने घर की सारी जिम्मेदारियां पिता के हिस्से दे रखी है, इसलिए आज भी समाज में पिता के दर्जे का प्रभाव बरकरार है। ऐसे में अगर कोई पिता अपने ही घर में लैंगिक असमानता दिखाने लगे और अपनी बेटियों पर हावी हो जाएं तो उस दौरान सभी को मौका मिल जाता है, बेटियों की आवाज को दबाने में। जिस कारण उनकी पूरी जिंदगी संघर्ष करते बीत जाती है। उन्हें कभी भी अपने हक के लिए आवाज नहीं उठाने दिया जाता। उनके जीवन से जुड़े सारे फैसले अक्सर घर के पुरुषों द्वारा लिए जाते हैं। उनके हर बात पर उन्हें एहसास दिलाया जाता है कि तुम एक लड़की हो।
लेकिन इन सबके परे जब हम बदलाव की बात करते हैं, तब हमें शिक्षा से भी पहले अपने परिवार और पिता के समर्थन की ज़रूरत महसूस होती है, क्योंकि उनकी एक पहल भी समाज में बेटियों को अपना हक दिला सकता है, जिससे उनमें आत्मविश्वास का विकास हो पाएगा। अब समय बदल चुका है, यहां समय के साथ-साथ अब बेटियों की स्थिति को भी बदलना होगा। इसके लिए सबसे पहले लैंगिक समानता में विश्वास रखने वाले पिता को अपने उठाए हुए कदम से समाज की रूढ़िवादी सोच को खत्म करने के लिए खुद को प्रोत्साहित करना होगा, तभी जाकर महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन की नई उम्मीद दिखेगीं।
लैंगिक समानता पर विश्वास रखने वाले पिता को उठाने चाहिए ये कदम
1. बेटी को बेटी ही बोलें
अक्सर देखा जाता है कि घरों में पिता नाज़ से अपनी बेटियों को बेटा कहते हैं, जो कि गलत है, क्योंकि यह बात अनज़ाने में ही दर्शा देती है कि बेटे बेहतर होते हैं। जब हमें बेटियों को बेहतर बनाना है तो हमें बेटा शब्द का सहारा क्यों लेना पड़े? ऐसे में तो यह लैंगिक असमानता दर्शाती है कि लड़के लड़कियों से बेहतर होते हैं। हमें इस शब्द से बचना चाहिए, क्योंकि बेटियों को अपना खुद का अस्तित्व चाहिए ना कि किसी बेटे शब्द की उपमा का सहारा, इसलिए ज़रूरी है कि हम बेटियों को बेटी ही कह कर पुकारें ताकि उनका हर स्तर पर विकास हो सकें।
2. आत्मसम्मान को करें मजबूत
समाज में बेटियों के आत्मसम्मान को हमेशा नज़रअंदाज़ किया जाता है, जिसका नतीजा यह होता है कि जब कोई महिला घरेलू हिंसा की शिकार होती है, तब वह खुद में ही कमी को तलाशने लगती है। उन्हें ऐसा महसूस होता है कि उनकी ही कोई गलती रही होगी। हालांकि इसके पीछे वज़ह उनमें आत्मसम्मान की कमी है, जो कि बचपन से ही अनदेखा किया जाता है, इसलिए आप अपनी बेटी को आत्मसम्मान के प्रति जागरूक कर खुद के लिए लड़ना सिखाएं ताकि वह अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो पाएं।
3. संवाद रखें बरकरार
जब बेटियां छोटी रहती हैं, तो वह सबसे करीब अपने पिता की ही होती है, लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ी होती जाती उस रिश्ते में दूरियां आनी शुरू हो जाती हैं। इसके पीछे की वजह प्यार की कमी नहीं, बल्कि पितृसत्तात्मक सोच है, जो एक पिता को अपने बेटी के पास जाने से बांधे रखता है। यही कारण है की बड़ी होने पर बेटियां अपने बात को डर से खुलकर सामने नहीं रख पाती हैं तो ऐसे में कोशिश करें कि आप अपनी बेटी के साथ स्वस्थ संवाद का आजीवन रिश्ता बनाएं ताकि वह अपने किसी भी बात को बोलने से पहले किसी भी तरह का मन में कोई हिचक ना लाएं।