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कैसे समाज और परिवार देता है लैंगिक असमानता को बढ़ावा?

हम जिस समाज का हिस्सा हैं और जिस परिवार में हमें जन्म मिला है, हमारा पालन-पोषण होता है। यही परिवार और समाज हमारे जीवन में लैंगिक असमानता लेकर आता है। कोई भी लड़का या लड़की के लिए जन्म लेते ही यह डिसाइड नही हो जाता है कि वह क्या करेगा और क्या नही।

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Priya Singh
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How do society and family promote inequality?

How do Society And Family Promote Gender Inequality?: हम जिस समाज का हिस्सा हैं और जिस परिवार में हमें जन्म मिला है जहां हमारा पालन पोषण होता है। यही परिवार और समाज हमारे जीवन में लैंगिक असमानता लेकर आता है। कोई भी लड़का या लड़की के लिए जन्म लेते ही यह डिसाइड नही हो जाता है कि वह क्या करेगा और क्या नही। ना तो कोई लड़की महिलाओं के काम जन्म से सीखकर आती है और ना ही कोई लड़का मर्द पैदा होता है। यह सब कुछ हमारा परिवार और समाज ही करता है। आइये जानते हैं कि कैसे समाज और परिवार देता है लैंगिक असमानता को बढ़ावा?

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कैसे समाज और परिवार देता है लैंगिक असमानता को बढ़ावा?

समाज और परिवार ही लैंगिक असमानता को जन्म देने के लिए जिम्मेदार होते हैं। एक लड़का जो जन्म लेता है उसे यदि सिर्फ यह ना सिखाया जाए कि उसे परिवार की जिम्मेदारी उठानी है, उसे रोना नही है, उसे कठोर बनना है, तो वह मर्द नहीं एक नॉर्मल इंसान बनेगा लेकिन ऐसा नही किया जाता है। परिवार अक्सर लड़कों को नॉर्मल लाइफ जीना सिखाता ही नही है। वहीं दूसरी ओर बचपन से ही उनके साथ भेदभाव का माहौल क्रिएट किया जाता है। उनके खिलौने खेलने की जगहें और परिवार में कब बात करनी है, कब नही करनी है और क्या बात करनी है, क्या नही करनी है यह सीमाएं तय कर दी जाती हैं। जिससे पुरुष कभी सामान्य पुरुष बनता ही नही है वह गुस्से वाला कठोर और इमोशनलेस मर्द बन जाता है।

वहीं महिलाओं के साथ हो रहा भेदभाव भी इसी कड़ी में आता है। जन्म के बाद बचपन से ही उन्हें सेंसिटिव और घरेलू बनाने की कोशिश की जाने लगती है। परिवार और समाज पुराने समय से चली आ रही रुढियों को उन पर थोपना शुरू कर देते हैं। घर के काम करना, गुड़ियों के साथ खेलना, घर के अन्दर खेलना और पता नही क्या-क्या।

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हम सभी हर किसी को यह कहते हुए सुनते हैं कि समाज में लैंगिक असमानता है लेकिन विचार करने पर आपको यह पता चलेगा कि आखिर यह लैंगिक असमानता आती कहाँ से है? कोई इस बात पर विचार नही करता है। एक माँ जिसने अपनी कोख से एक बेटे और बेटी को जन्म दिया है वह क्यों बेटी को सिर्फ घर के काम सिखाती है और बेटे को पढ़ना और बाहर के काम करना। क्या दोनों को बराबर ट्रीट करना इतना कठिन है या ऐसा करने की कोई मजबूरी है? यह स्वेच्छा से और पारम्परिक रुढियों को आगे से बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह जानते हुए भी कि ऐसा करना गलत है।

क्या लैंगिक असमानता को खत्म करना बहुत कठिन है? 

लैंगिक असमानता को खत्म करने के लिए अख़बारों में छपे लेख और टीवी में होने वाले शो और कुछ गिने-चुने लोगों द्वारा इस पर बात की जाती है और फिर निष्कर्ष निकलता है कि यह एक कठिन मुद्दा है और इसे आसानी से नही खत्म किया जा सकता है। लेकिन यह सम्भव है। समाज, परिवारों से मिलाकर बनता है, लोगों से मिलकर बनता है, अगर इसकी शरुआत घर के लोगों से हो तो यह एक आसान काम है। लेकिन अगर सिर्फ डिबेट में किया जाता है तो यह आज भी कठिन है और हमेशा कठिन ही रहने वाला है।

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कैसे किया जा सकता है लैंगिक असमानता को खत्म?

बचपन से ही माता-पिता और परिवार के सदस्य लड़कों और लड़कियों को मर्द और औरत बनाने की जगह इंसान बनाएं तो यह संभव है। दोनों को घर के काम सिखाएं। दोनों को पढ़ने-लिखने का बराबर अवसर दें साथ ही दोनों को अपने इमोशन को साझा करना सिखाएं और अपने आस-पास बराबरी का माहौल बनाएं। सिर्फ पिता कमाकर नही लायेगा और सिर्फ माँ खाना नही बनाएगी। दोनों ही लोगों को दोनों काम बराबर आने चाहिए और दोनों ही लोग सारे काम बराबर करते हैं। ऐसे में बच्चे स्वयं समानता से जीना सीख जायेंगे। उदाहरण ऐसे होने चाहिए कि बच्चों में कभी यह भावना ही उत्पन्न न हो कि वो लड़की है इसलिए घर के काम करेगी या मै लड़का हूँ इसलिए मै घर के काम नही कर सकता हूँ।

असमानता कि शुरुआत हमेशा परिवार और समाज से होती है और समाज का निर्माण लोगों से होता है लोगों को खुद में बदलाव लाने होंगे तभी असमानता को खत्म किया जा सकता है। यदि परिवार बदलाव को स्वीकार किये बिना लड़कों को मर्द बनाते रहेंगे तो लड़कियों का औरत बन जाना सामान्य है। इसलिए परिवार की जिम्मेदारी है कि अपने बच्चों को इंसान बनाएं और हर चीज में बराबरी से जीना सिखाएं।

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