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Men's Talk: महिलाओं की परवरिश पर इतना जोर, मर्दों को क्यों नहीं सिखाया जाता?

जब से लड़का टीनएज उम्र में पहुंच जाता है तब से उसको किसी तरह की पूछताछ नहीं की जाती। उसके साथ परिवार या मां-बाप बैठकर समय व्यतीत नहीं करते। उनके साथ बातचीत नहीं की जाती है। कोई भी पुरुष बचपन से टॉक्सिक नहीं होता। हमारा समाज उन्हें ऐसा बना देता है।

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Rajveer Kaur
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Toxic Masculinity

(Image Credit: Today Online)

Gap In Upbringing Of Men But Women: हमारे समाज में महिलाओं की परवरिश पर बचपन से ही जोर दिया जाता है। परवरिश का मतलब यह नहीं है कि उनका पालन पोषण बहुत अच्छे से किया जाता है। इसका मतलब यह है कि उनसे हर बात की रिपोर्ट मांगी जाती है। उन्हें कहा जाता है कि बिना बताए घर से बाहर नहीं निकलना है। हर छोटी बात की उन्हें डिटेल देनी पड़ती है। इसके साथ ही उन्हें यह भी बताया जाता है कि यह काम करने हैं और यह नहीं। उनके लिए सब कुछ पहले से ही तय किया हुआ है। 

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Men's Talk: महिलाओं की परवरिश पर इतना जोर लेकिन मर्दों को क्यों नहीं सिखाया जाता?

दूसरी तरफ लडकों से कोई कुछ नहीं पूछता। अब यहां पर दो चीजें आती है। एक हम इस बात को इस बात के साथ भी जोड़ देते हैं कि मर्दों को आजादी है। उन्हें किसी बात की जवाबदेही नहीं होती। वह औरतों की तरह रोककर जिंदगी नहीं बल्कि अपनी मर्जी से जिंदगी को जीते हैं। वहीं, इसका दूसरा पहलू भी है। समाज का मर्द के प्रति ऐसा रवैया उनके लिए खतरनाक या नुकसानदायक बन जाता है। 

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जब से लड़का टीनएज उम्र में पहुंच जाता है तब से उसको किसी तरह की पूछताछ नहीं की जाती। उसके साथ परिवार या मां-बाप बैठकर समय व्यतीत नहीं करते। उनके साथ बातचीत नहीं की जाती है जैसे लड़कियों को हर चीज की डिटेल देनी पड़ती है वैसे लड़कों को कभी नहीं पूछा जाता है।

बचपन से टॉक्सिक नहीं होते लड़के

कोई भी पुरुष बचपन से टॉक्सिक नहीं होता। हमारा समाज उन्हें ऐसा बना देता है। उन्हें सही और गलत के बारे में नहीं बताया जाता जिसके परिणाम स्वरूप वह आसपास जो देखते हैं उसे ही अपनी सोच बना लेते हैं। इसलिए मां-बाप को चाहिए कि जब लड़का बड़ा हो रहा हो लड़की की तरह उसके साथ भी पेरेंट्स को यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि उनका बेटा क्या सोचता है? उसे भी इमोशनल सपोर्ट की जरूरत है। इसके लिए पहले अपने दिमाग से यह निकालें कि लड़के इमोशनली स्ट्रांग होते हैं। हर किसी को लाइफ में भावनात्मक सहारा चाहिए। इसके लिए लडकों के लिए ऐसी कंडीशनिंग बना दी है या ऐसा माहौल पैदा कर दिया है कि लड़के इस बात के लिए शर्म मानते हैं। उन्हें लगता है कि ऐसे वो कमजोर लगेंगे और उनका मजाक बनाया जाएगा।

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महिला की रिस्पेक्ट करना नहीं सिखाया जाता

लड़कों को बड़ा यह बताकर किया जाता है कि महिला तुमसे कमजोर है। तुम उसे किसी भी तरीके से इस्तेमाल कर सकते हो। शादी में भी मर्द और औरत में भेदभाव किया जाता है। मर्द को औरत से ऊपर का दर्जा दिया जाता है। महिला मर्द के पर निर्भर होती है, अपने पति की जी हजूरी करती है, सब काम करती है।  लड़कों को कभी महिला की रिस्पेक्ट करना नहीं सिखाया जाता। उसे यह नहीं सिखाया जाता कि कंसेंट भी बहुत जरूरी है। अगर आप महिला को टच भी कर।

अब हमें अपनी सोच बदलने की जरूरत है। मर्दों के बारे में भी बात करनी बहुत जरूरी है। उनके भी हार्मोनल चेंज होते हैं। टीनएज की उम्र में वह भी बहुत सारे मानसिक और शारीरिक बदलाव से गुजरते हैं। उन्हें भी ऐसा लगता है कि कोई उनके साथ बैठे और समय व्यतित करें। उनकी मेंटल हेल्थ के बारे में बात करें। उन्हें भी कंधे की जरूरत है जिस पर सिर रखकर  वह रो सकें।

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