How Much Has The Status Of Women Changed In Indian Society: किसी भी राष्ट्र की प्रगति का सर्वोत्तम थर्मामीटर होता है, वहां कि महिलाओं की स्थिति। महिलाओं की स्थिति ही किसी राष्ट्र की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को दर्शाती है। हमारे शास्त्रों में महिलाओं को आध्यात्मिकता का प्रतीक माना गया है, लेकिन वहीं अगर हम जब इतिहास के पन्नों को खंगालते हैं तो महिलाएं हमेशा से ही समाज में अपने अधिकारों और स्थान के लिए लड़ती रही हैं। कभी भी उनके साथ पुरुषों के समान व्यवहार नहीं किया गया। इन सारे तथ्यों के बावजूद अगर हम स्वतंत्र भारत में महिलाओं की स्थिति की बात करें तो निश्चित रूप से थोड़ा सुधार आया है।
भारत में संरचनात्मक और सांस्कृतिक परिवर्तनों ने महिलाओं के लिए शिक्षा, रोजगार और राजनीति के क्षेत्र में कई अवसर लाए हैं। आज महिलाएं चांद पर पहुंच गई हैं, फाइटर प्लेन उड़ा रही हैं, ओलंपिक पदक जीत रही हैं या राष्ट्रपति बनकर देश की बागडोर भी संभाल रही हैं, लेकिन इन सब के परे जब व्यावहारिक तौर पर देखा जाएं तो यह संख्या महिलाओं की आबादी का अंशमात्र ही है क्योंकि हमारे समाज में महिलाओं का एक बड़ा तबका आज भी पितृसत्तात्मक सोच की जंजीरों से जकड़ा हुआ है। उनका अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। वह अक्सर अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए पुरुषों का सहारा ढूंढती हैं।
महिलाओं की स्थिति को लेकर भारतीय समाज में कितना आया बदलाव?
1. साक्षरता दर
आज भी 21वीं सदीं में कई ऐसी लड़कियां है, जो शिक्षा के अधिकार से वंचित है। या यू कहें तो पढ़ाई के दौरान स्कूल छोड़ देने में लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या ज़्यादा है और इसके पीछे की वज़ह पितृसत्ता मानदंड है जो लड़कियों से उम्मीद करती है कि वह घर के कामकाज में मदद करें। इतना ही नहीं लड़कियों को शादी कब करनी है, किससे करनी है, यहां तक कि बच्चे कब पैदा करने हैं। यह सारी चीजें आज भी कहीं ना कहीं हमारी पितृसत्ता ही तय करती है। 2021 में औसत साक्षरता दर 77.70 प्रतिशत थी, जहां पुरुषों की साक्षरता दर 84.70% तो वहीं महिलाओं की 70.30% थी जो कि दर्शाता है कि आज भी महिलाओं की स्थिति में बदलाव की ज़रुरत है।
2. आर्थिक स्थिति
महिलाओं की अधिकांश समस्याओं का कारण आर्थिक रूप से अपने पिता भाई व पुरुष पर निर्भर होना है। जो एक बेहद चिंताजनक विषय है, क्योंकि कुल आबादी में 48 फ़ीसदी महिलाएं हैं। जिनमें से मात्र एक तिहाई महिलाएं ही रोजगार में हैं। यही कारण है कि जीडीपी में महिलाओं का योगदान केवल 18 फ़ीसदी ही है। अगर घर के अंदर और बाहर महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव को समाप्त किया जाए तो वह भी अर्थव्यवस्था में अपनी भागीदारी दे पाएंगी और सशक्त होंगी।
3. समाजीकरण
आज भी भारत के कई हिस्सों में खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग सामाजिक मानदंड है, जो दर्शाती है कि महिलाओं की स्थिति को लेकर समाजीकरण तौर पर कुछ खास बदलाव नहीं आया है। उनसे शांत और चुप रहने की अपेक्षा की जाती है। उनके बैठने और व्यवहार करने के सारे तौर-तरीके पितृसत्ता द्वारा ही तय किए जाते हैं। वहीं पुरुष अपने स्वेच्छानुसार कैसा भी व्यवहार प्रदर्शित कर सकते हैं। जिससे यह तय होता है कि आज भी महिलाएं को पुरुषों जितनी आजादी नहीं मिल पाई है।
आजादी से लेकर अब तक महिलाओं ने एक लंबा सफर तय किया है। जिसमें कई परिवर्तन भी देखने को मिले हैं, लेकिन आज भी वह अपनी मंजिल से कई मिलों दूर हैं और इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है पितृसत्तात्मक मानसिकता जो उन्हें आगे नहीं बढ़ने देती। तेजी से भागते हुए इस समय में हमारी रफ़्तार तभी आगे बढ़ेगी जब भारतीय समाज पितृसत्ता रूढ़िवादी सोच को नजरअंदाज कर पुरुषों के समान बराबरी का अधिकार महिलाओं को प्रदान करेगा, तभी भारतीय महिलाएं भी दुनिया के अन्य महिलाओं की तरह खुद में सशक्त होंगी और अपना विकास करने में सक्षम होंगी।