The Ugly Truth: क्यों अपराधी को दोषी मानने की बजाय पीड़िता का चरित्र परखा जाता है?

इस सीरीज में हम उन असहज पहलुओं को उजागर करेंगे जिन पर बात नहीं होती। जानिए क्यों महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार में पीड़िता के चरित्र को ही कटघरे में खड़ा किया जाता है।

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Rajveer Kaur
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Photograph: (Freepik)

How Society Judges Women's Responses to Abuse: हमारे समाज के कड़वे सच बहुत ज्यादा है लेकिन उनके ऊपर कोई बात नहीं करता है लेकिन इस सीरीज के अंदर हम आपके साथ ऐसे मुद्दों के ऊपर बात करेंगे जो समाज के असहज पहलू को उजागर करते हैं। जब भी हमारे समाज में किसी महिला के साथ कोई दुर्व्यवहार या फिर अपराध होता है तो अपराधी को दोषी ठहराने की बजाय पीड़िता के चरित्र पर सवाल उठाए जाते हैं। ऐसा क्यों है? क्यों जब बात महिलाओं की होती है तो हमेशा उन्हें ही गलत ठहराया जाता है। चलिए आज हम इस कड़वे सच के ऊपर बात करते हैं-

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क्यों अपराधी को दोषी मानने की बजाय पीड़िता का चरित्र परखा जाता है?

क्या आप जानते हैं कि जब किसी महिला के साथ कोई दुर्व्यवहार होता है तो परिवार के लोग कानून की मदद क्यों नहीं लेते हैं या फिर उस बात को दबा क्यों देते हैं? क्योंकि उन्हें पता होता है कि कटघरे में उनकी बेटी को ही खड़ा किया जाएगा, इज्जत उसकी ही उछाली जाएगी या फिर सवाल या उंगलियां उसके उपर ही उठेंगी। इसलिए उनके लिए सबसे आसान रास्ता उस समय सब कुछ सहन कर जाना और चुप रहना होता है। समाज को इसमें ही मजा आता है। अगर कोई मां-बाप अपनी बेटी को सपोर्ट करते हैं या फिर कोई महिला अपने साथ हुए जुर्म के बारे में को बात करते है तो उन्हें भी चुप कराने की कोशिश की जाती है। इसके लिए महिला के चरित्र पर उंगलियां उतनी शुरू हो जाती हैं।

जब ऐसे केस कोर्ट में पहुंचते हैं तब भी महिला विरोधी रवैया देखा जाता है। Bar and Bench के आर्टिकल में अपर्णा भट्ट द्वारा न्यायिक दृष्टिकोण के बारे में भी बात की गई कि कैसे अलग-अलग केस में न्यायिक प्रणाली का व्यव्हार महिलाओं को ही कटघरे में खड़ा करता है।

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आरिफ इकबाल इमरान बनाम राज्य मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि वह महिला की जिम्मेदारी है कि वह अपने सम्मान, गरिमा और शील की रक्षा करे। अपनी पवित्रता, शुद्धता और सद्गुणों को बनाए रखना उसका काम है।

मुसाउद्दीन अहमद बनाम असम राज्य मामले में अभियोक्ता की आयु 14 वर्ष थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे "एक अनैतिक महिला" और "सरल गुणों वाली महिला" कहा था।

इस समाज में सबसे घिनौना काम महिला के चरित्र पर उंगलियां उठाना है और यह सबसे आसान है। समाज में हमेशा ही महिला को दबाने के लिए या फिर उसे चुप करवाने के लिए उसके चरित्र पर उंगलियां उठाई जाती हैं।  अगर किसी महिला के साथ रेप हुआ है तो उससे पूछा जाता है कि उस समय क्या समय हुआ था, कैसे कपड़े पहने थे,  किसके साथ थी और क्यों थी? लेकिन उस अपराधी से कोई नहीं पूछता है कि तुम्हें यह करने का अधिकार किसने दिया? आज भी महिलाओं को दबाना बहुत आसान है क्योंकि पुरुष प्रधानता अभी भी हमारे समाज में मौजूद है।

ऐसे व्यवहार से पता चलता है कि महिलाओं के प्रति अगर हम समाज का रवैया सकारात्मक चाहते हैं तो सबसे पहले हमें सोच को बदलना होगा। यह मसला सोच का है। जब तक हम अपनी सोच में महिलाओं के बारे में अच्छा नहीं सोचेंगे या फिर उन्हें कम नहीं समझेंगे तब तक समाज में कोई बदलाव नहीं देखने को मिलेगा।

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