कैसे आज भी महिला पर शादी को लेकर दबाव बनाया जाता है?

बचपन से ही महिलाओं को शादी करके सेटल होने की सलाह दी जाती है। उन्हें हमेशा यह बताया जाता है कि शादी उनकी ज़िंदगी का अल्टीमेट गोल है। क्या एक महिला की पहचान सिर्फ़ किसी की पत्नी बनना है?

author-image
Rajveer Kaur
New Update
HAPPY MARRIAGE

Photograph: (hindustantimes) Representative Image Only

बचपन से ही महिलाओं को शादी करके सेटल होने की सलाह दी जाती है। उन्हें हमेशा यह बताया जाता है कि शादी उनकी ज़िंदगी का अल्टीमेट गोल है। क्या एक महिला की पहचान सिर्फ़ किसी की पत्नी बनना है? क्या उसकी अपनी पहचान की कोई वैल्यू नहीं है? एक महिला किसी की बहन, पत्नी, माँ या बेटी होने से पहले ख़ुद है, लेकिन हमारे समाज ने हमेशा उसे दूसरों के लिए सैक्रिफ़ाइस करना ही सिखाया है। यह बातें बार-बार दोहराई जाती हैं, लेकिन आज भी उनका असर समाज में साफ़ दिखाई देता है।

कैसे आज भी महिला पर शादी को लेकर दबाव बनाया जाता है?

शादी की उम्र और पूछे जाने वाले सवाल

Advertisment

महिलाओं को हमेशा कहा जाता है कि एक तय उम्र में शादी हो जानी चाहिए। अगर वह उस उम्र तक शादी नहीं करतीं, तो उन्हें कहा जाता है कि अब उनसे कोई शादी नहीं करेगा या फिर वह शादी की उम्र पार कर चुकी हैं। पुरुषों पर कभी भी ऐसा दबाव नहीं डाला जाता। अगर किसी महिला की शादी नहीं हुई है या वह शादी नहीं करना चाहती है, तो उसके चरित्र पर सवाल उठाए जाते हैं। यहाँ तक कि यह तक कह दिया जाता है कि उसमें ही कोई कमी होगी, तभी कोई लड़का उससे शादी नहीं कर रहा।

महिलाओं की आज़ादी पर अंकुश

महिलाओं से हमेशा यही अपेक्षा की जाती है कि उन्हें शादी करनी ही है। कई बार लोग इतनी जल्दबाज़ी में उनकी शादी कर देते हैं कि उनके सपने बीच में ही रह जाते हैं। इस तरह से हम महिलाओं की आज़ादी छीन लेते हैं। यह सवाल कोई नहीं करता कि क्या वह महिला शादी करना चाहती थी या नहीं, या फिर क्या वह अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी कर रही है। आज भी कई जगह बिना लड़की की मर्ज़ी के उसकी शादी कर दी जाती है और लड़का-लड़की के बीच की कंपैटिबिलिटी पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जाता।

शादी में ‘एडजस्टमेंट’ और मानसिक स्वास्थ्य

आज भी लड़कियों को शादी में “एडजस्ट” करना सिखाया जाता है। हमारे समाज में एक मरी हुई लड़की का चेहरा देखना ज़्यादा अच्छा माना जाता है, बजाय एक तलाकशुदा लड़की के। हर शादी में कुछ एडजस्टमेंट होते हैं, लेकिन अगर सारी जिम्मेदारी सिर्फ़ महिला पर डाल दी जाए और यह कहकर समझाया जाए कि “तुम्हारे जेंडर की वजह से तुम्हें सहना ही पड़ेगा, हर घर में ऐसा होता है”, तो इसका महिला की मानसिक और शारीरिक सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ता है। बहुत सारी महिलाएँ बहुत कुछ सहती हैं लेकिन उसके बारे में बोलती नहीं, क्योंकि उन्हें डर होता है कि लोग उन्हें जज करेंगे या कहेंगे कि वह अपना घर बिगाड़ रही हैं। समाज में यह धारणा गहरी है कि “अच्छी औरतें” अपने घर की बात बाहर नहीं करतीं।

शादी एक व्यक्तिगत चॉइस है

Advertisment

शादी एक चॉइस है। यह फ़ैसला हर व्यक्ति का व्यक्तिगत अधिकार होना चाहिए। अगर कोई महिला शादी नहीं करना चाहती है, तो यह उसकी पर्सनल चॉइस है। उसके इस फ़ैसले को जबरन बदलना या उसके लिए उसे जज करना बिल्कुल ग़लत है। किसी महिला की पहचान या उसकी वैल्यू शादी से तय नहीं होती। असली बराबरी तभी होगी जब महिला को यह अधिकार मिलेगा कि वह अपनी मर्ज़ी से अपना पार्टनर चुने, और अगर वह शादी न करना चाहे तो भी उसके इस फ़ैसले का सम्मान किया जाए।