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Relationship Crimes Shraddha Murder And Indore Aase Analysis: जब हम प्यार और रिश्तों की बात करते हैं, तो दिमाग में एक खूबसूरत तस्वीर उभरती है, भरोसे, सम्मान और साथ निभाने की। लेकिन बीते कुछ सालों में जो घटनाएं सामने आई हैं, उन्होंने इस तस्वीर को झकझोर कर रख दिया है। श्रद्धा वाकर केस और इंदौर मर्डर केस दोनों ही ऐसी घटनाएं हैं, जो यह सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि आखिर रिश्तों में प्यार कम और हिंसा ज्यादा क्यों बढ़ रही है? क्या अब रिश्ते एक-दूसरे को संवारने के बजाय खत्म करने का जरिया बनते जा रहे हैं? क्या यह सिर्फ जेंडर की लड़ाई है या फिर एक बड़ी सामाजिक समस्या, जिसे हम नजरअंदाज कर रहे हैं?
श्रद्धा हत्याकांड से इंदौर मर्डर केस तक: क्या प्यार अब रिश्तों की कब्रगाह बन चुका है?
श्रद्धा और इंदौर केस में क्या समानता है, और यह हमें क्यों डराती है?
श्रद्धा वाकर केस में एक लड़की अपने लिव-इन पार्टनर के साथ थी, जिसे उसने प्यार किया था, भरोसा किया था, लेकिन वही रिश्ता उसकी मौत की वजह बन गया। आफताब ने न सिर्फ उसकी हत्या की, बल्कि उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके महीनों तक उन्हें ठिकाने लगाता रहा। इस घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। और अब इंदौर में एक और घटना सामने आई, जिसमें एक लड़की ने अपने लिव-इन पार्टनर को मार डाला। फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार पीड़ित लड़का था और आरोपी लड़की। लेकिन असली सवाल यह नहीं है कि हत्यारा कौन था, बल्कि यह कि रिश्ते में इतना जहर कहां से आ रहा है?
क्या यह लड़का बनाम लड़की की लड़ाई है, या फिर रिश्तों में जहरीली मानसिकता का नतीजा?
हर बार जब किसी रिश्ते में हिंसा की खबर आती है, तो समाज जेंडर डिबेट में उलझ जाता है। कुछ लोग कहते हैं कि महिलाएं हमेशा पीड़ित होती हैं, तो कुछ पुरुष अधिकारों की दुहाई देने लगते हैं। लेकिन क्या सच में यह लड़कों और लड़कियों के बीच की लड़ाई है? या फिर यह एक ऐसी मानसिकता है, जो किसी भी रिश्ते को जहरीला बना सकती है? श्रद्धा केस में आफताब ने रिश्ते को अपने नियंत्रण में रखने की कोशिश की, और जब श्रद्धा ने खुद को अलग करने की कोशिश की, तो उसने जान ले ली। इंदौर केस में भी झगड़ा बढ़ा, गुस्सा हावी हुआ, और एक जान चली गई।
दोनों मामलों में एक बात साफ है रिश्ते अब प्यार के बजाय कंट्रोल और पजेशन का खेल बनते जा रहे हैं। जब कोई अपने पार्टनर को एक स्वतंत्र इंसान के रूप में देखने के बजाय अपनी 'मालिकियत' समझने लगे, तो यही हश्र होता है। और यह सिर्फ महिलाओं के लिए नहीं, बल्कि पुरुषों के लिए भी उतना ही खतरनाक है।
क्या रिश्ते अब प्यार से ज्यादा डर और शक में बदल चुके हैं?
हर रिश्ता शुरुआत में खूबसूरत लगता है, लेकिन धीरे-धीरे जब शक, कंट्रोल, और गुस्सा बढ़ने लगता है, तब चीजें जहरीली होने लगती हैं। रिश्तों में छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करना, पजेसिव होना, अपने पार्टनर की हर हरकत पर नजर रखना यह सब शुरुआत में प्यार की निशानी लग सकता है, लेकिन यह धीरे-धीरे एक खतरनाक रूप ले सकता है। जब प्यार में इज्जत और आज़ादी की जगह नहीं बचती, तब वही रिश्ता एक जाल बन जाता है, जिससे निकल पाना मुश्किल हो जाता है। और यही जाल कभी-कभी जानलेवा साबित होता है।
समाज की सोच कब बदलेगी, और क्या यह घटनाएं सिर्फ 'केस स्टडी' बनकर रह जाएंगी?
हर बार जब इस तरह की कोई घटना होती है, मीडिया में चर्चा होती है, सोशल मीडिया पर हैशटैग ट्रेंड करते हैं, लोग गुस्सा जाहिर करते हैं, लेकिन कुछ हफ्तों बाद सब कुछ सामान्य हो जाता है। लेकिन सवाल यह है कि कब तक? कब तक हम इस तरह की खबरें सुनते रहेंगे और सिर्फ अफसोस जताते रहेंगे? कब तक रिश्तों को प्यार की बजाय डर और पजेसिवनेस का खेल बना रहने दिया जाएगा? समाज में लड़कों और लड़कियों दोनों को यह सिखाने की जरूरत है कि रिश्ता कोई पिंजरा नहीं होता। किसी पर हावी होना, उसे कंट्रोल करना, या जबरदस्ती अपनी शर्तें थोपना यह प्यार नहीं, बल्कि एक जहरीली मानसिकता है, जो धीरे-धीरे रिश्तों को खत्म कर देती है।
क्या हमें रिश्तों में 'Red Flags' को पहचानने की जरूरत है?
हर हिंसक रिश्ते की शुरुआत में कुछ संकेत होते हैं, लेकिन अक्सर लोग उन्हें नजरअंदाज कर देते हैं। जब कोई पार्टनर जरूरत से ज्यादा पजेसिव हो, बार-बार गुस्सा करे, हर चीज में रोक-टोक लगाए, या इमोशनल ब्लैकमेल करने लगे, तो यह संकेत हैं कि वह रिश्ता सही दिशा में नहीं जा रहा। श्रद्धा केस में भी यही हुआ शुरुआती संकेत थे, लेकिन उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया। इंदौर केस में भी कुछ ऐसा ही हुआ होगा। अगर शुरुआत में ही इन संकेतों को समझ लिया जाए, तो शायद कई जिंदगियां बच सकती हैं।
अब वक्त है रिश्तों को लेकर सोच बदलने का
श्रद्धा और इंदौर केस कोई पहली घटनाएं नहीं हैं, और अगर हमने कुछ नहीं सीखा, तो यह आखिरी भी नहीं होंगी। प्यार सिर्फ एक एहसास नहीं, बल्कि जिम्मेदारी और सम्मान का नाम है। अगर रिश्ते में डर, शक, हिंसा और पजेसिवनेस शामिल हो जाए, तो उसे प्यार कहना सबसे बड़ी भूल होगी। समाज को यह समझने की जरूरत है कि रिश्ते सिर्फ इसलिए बनाए नहीं जाने चाहिए क्योंकि 'अब तक इतना समय साथ बिता लिया है' या 'लोग क्या कहेंगे' बल्कि इसलिए कि वे आपको खुशी और सुरक्षा दें।
अगर किसी रिश्ते में आपको अपनी आज़ादी खोने का अहसास होने लगे, अगर आप अपने ही पार्टनर से डरने लगें, तो यह वक्त है बाहर निकलने का। क्योंकि कोई भी रिश्ता आपकी जान से ज्यादा कीमती नहीं हो सकता।
आपका क्या कहना है?
क्या आपको लगता है कि रिश्तों में बढ़ती हिंसा सिर्फ जेंडर आधारित बहस तक सीमित रह गई है, जबकि असली समस्या मानसिकता की है? क्या हमें रिश्तों को लेकर अपनी परवरिश और सोच में बदलाव लाने की जरूरत है? अपने विचार कमेंट में साझा करें!