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Sexual Abuse and Assault Against Women
महिला के साथ यौन उत्पीड़न होने पर उसको ही कसूरवार ठहराया जाता हैं। यह समाज का औरतों के प्रति व्यवहार हैं। समाज आज भी मर्द प्रधान हैं सब जितना मर्ज़ी इस बात को कह ले कि लड़कियों को उनके अधिकार मिलते हैं वे अपनी मर्ज़ी से लाइफ का व्यतीत करती हैं लेकिन नहीं असल में उस को ही पता हैं कि किन चीज़ों का सामना करना पड़ता हैं।
Sexual Abuse and Assault Against Women: क्यों औरत को ही दोषी माना जाता है?
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अभी कुछ दिन पहले श्रद्धा मर्डर केस हुआ हर तरफ से श्रद्धा को गलत दिखाया गया हैं अगर वे लिव इन रिलेशन में नहीं रहती अपने पेरेंट्स की बात मन लेती तो उसके साथ ये सब कुछ नहीं होता हैं। जिसका मतलब है समाज औरत को गलत मानता हैं चाहे उसके पार्टनर ने उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए जो लड़की उससे प्यार करती थीं उसने उसे तक नहीं छोड़ा। उस पर जरा भी दया नहीं दिखाई फिर भी समाज उसे ही गलत दिखा रहा हैं क्योंकि उसने बागी होकर एक फैसला लिया। समाज जो लिव इन रिलेशन को अच्छा नहीं मानता उसके विरोध में वह गई यह गलती थी श्रृद्धा की।
हम बात कर रहे हैं महिलाओं के खिलाफ यौन शोषण और हमला की उसमें भी दोषी औरत को माना जाता हैं क्योंकि लड़के होने पर समाज में ये अधिकार मिल जाता हैं कि वह कुछ भी कर सकते हैं गलती तो महिला कि मानी जाएँगी। आप चाहे रेप केस देख लीजिए, घरेलू हिंसा, दहेज समस्या कोई भी हो उसका दोषी औरत को माना जाएगा। मान लीजिए लड़की के साथ रेप हुआ लेकिन उसका कसूर महिला में निकला जाएगा कि इसने कपडे छोटे पहने होंगे,रात को बहार घूमने गई होगी, शराब पी होगी, ज्यादा बोलती होगी लेकिन क्या इन सबसे लड़के को इस बात अनुमति मिल जाती है कि वे लड़की का रेप कर दे? इस तरह हम हिंसा में देखे तब भी कह दिया जाता है थप्पड़ ही तो था इतना क्या ड्रामा कर रही हैं ? इतना तो पति मरते हैं। आजकल तो औरतों में सहनशीलता ही नहीं हैं।
इन सब में सिर्फ शख्स कि गलती हैं जिसने यह जुर्म किया हैं औरत की इसमें कोई गलती और न ही इसके लिए उसे गिलटी महसूस करने की जरूरत हैं। वह व्यक्ति गलत हैं जिसने क्राइम किया हमें नहीं, उसे शर्मांदा होने की जरूरत हैं।