अकेले रहने वाली महिलाओं को किन-किन मुसीबतों का सामना करना पड़ता है

आज भी बहुत सी महिलाओं के लिए स्वतंत्र होना एक सपने जैसा है।उनके पास इतनी एजेंसी नहीं होती कि वे अपने फैसले खुद ले सकें या अपने लिए सही-गलत चुन सकें। आज भी उनके ऊपर पिता, भाई या पति का साया होता है जो उन्हें बताते हैं

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Rajveer Kaur
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आज भी बहुत सी महिलाओं के लिए स्वतंत्र होना एक सपने जैसा है।उनके पास इतनी एजेंसी नहीं होती कि वे अपने फैसले खुद ले सकें या अपने लिए सही-गलत चुन सकें। आज भी उनके ऊपर पिता, भाई या पति का साया होता है जो उन्हें बताते हैं कि उन्हें अपनी ज़िंदगी में क्या करना चाहिए। ऐसे में जो महिलाएं अकेले रह रही हैं, उनकी ज़िंदगी भी आसान नहीं होती, क्योंकि समाज ऐसी महिलाओं को स्वीकार नहीं कर पाता।

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अकेले रहने वाली महिलाओं को किन-किन मुसीबतों का सामना करना पड़ता है

जो महिलाएं अकेले रहती हैं, उन्हें लगातार जजमेंट का सामना करना पड़ता है। समाज उनसे पूछता है कि "अकेली क्यों रह रही हो?", "अब तक शादी क्यों नहीं की?", "मां-बाप को छोड़कर इतनी दूर क्यों रह रही हो?" समाज मानता है कि लड़कियां घर संभालते हुए ज्यादा अच्छी लगती हैं। ऐसा कहा जाता है, "अब तो तुम्हारी शादी की उम्र हो गई है", "अकेले कब तक चलाओगी ज़िंदगी?", "आखिर में तो तुम्हें किसी का साथ चाहिए ही होगा।" ये सवाल बार-बार सुनकर कई बार महिलाओं की मानसिक स्थिति प्रभावित होने लगती है।

भारतीय समाज में महिलाओं की सुरक्षा एक गहरा मुद्दा है, जिस पर बहुत कम बात होती है जो महिलाएं अकेले रहती हैं, वही जानती हैं कि वे किस डर के साथ जी रही होती हैं। उनके पास भले ही आज़ादी होती है, लेकिन मन में हमेशा एक डर बना रहता है। कहीं कोई उनके घर में घुस न आए, उनके साथ कुछ गलत न हो जाए। उन्हें हमेशा कुछ न कुछ ऐसा अपने पास रखना पड़ता है जो ज़रूरत पड़ने पर काम आ सके। इस तरह डर में जीना बहुत कठिन होता है। अकेली महिलाओं को घर मिलना भी कई बार बहुत मुश्किल हो जाता है।

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कई बार मकान मालिक यह कहकर मना कर देते हैं कि "अगर तुम सिंगल हो और तुम्हारी शादी नहीं हुई है, तो हम तुम्हें घर नहीं दे सकते।" वे कहते हैं कि ऐसी लड़कियां समाज का माहौल खराब करती हैं, रात-रात बाहर घूमती हैं, या उनके पास लड़के आते हैं। इस तरह की बातों को लेकर उन्हें जज किया जाता है, जबकि हकीकत यह होती है कि वे महिलाएं सक्षम होती हैं और अपने लिए खुद फैसले ले सकती हैं। 

हमारा समाज स्वतंत्र महिलाओं को बर्दाश्त करने की ताकत नहीं रखता। इसलिए वह हमेशा मौके की तलाश में रहता है कि कब उनकी कोई गलती निकाली जाए।महिलाओं पर यह दबाव बनता है कि वे कोई गलती न करें, सब कुछ परफेक्ट हो। यह मानसिक दबाव उन्हें लगातार परेशान करता है और उन्हें लगता है कि उनकी ज़िंदगी में गलती की कोई गुंजाइश नहीं है।