Symbolism Of Love By Lord Shiva And Goddess Parvati: दुनिया में पहला प्रेम विवाह करने वाले भगवान शिव और माता पार्वती ही थें। उनके अटूट प्यार के किस्से बचपन से हिंदुत्व धर्म में हम सुनते आए हैं। टीवी पर आते महादेव के सीरियल्स को भी कितना प्रेम और ध्यान से देखते थे घर परिवार वालों के साथ। दादा-दादी, नाना-नानी से हम इनके किस्से सुना करते थे। बचपन में शायद उतने गम्भरीता से इन कहानियों के असली अर्थ और नैतिक को हम समझ नहीं पाते थे लेकिन अब बड़े होते हुए में धीरे-धीरे कईं चीज़ों का अर्थ और उसके पीछे होने की वजहों को समझने लगे हैं हम।
शिव जी और पार्वती जी के रिश्ते से हमें क्या सीखना चाहिए?
महाशिवरात्रि आने को है और इस दिन को माता पार्वती और शिव जी के महा विवाह का दिन माना जाता है। उनके इस दिन को पूरा हिन्दू धर्म बहुत ही हर्षो उल्लास के साथ मनाता है। इस दिन की बहुत ही मान्यता होती है। माता पार्वती और शिव जी के प्यार से हम आजके जनरेशन को बहुत कुछ सीखना चाहिए। हमारे जनरेशन के प्यार का मतलब बहुत ही धुँधला और खोखला हो चुका है, स्वार्थी हो चुका है और बेसब्र हो चुका है।
प्यार की असली परिभाषा शिव-पार्वती जी ने दिया था। सती माता के जाने के बाद शिव जी उनका इंतज़ार करते रहें। वो घोर तपस्या में लीन रहें। कभी किसी और के तरफ देखा तक नहीं, केवल जन्म जन्मांतर तक इंतज़ार में रहें। माता पार्वती ने भी शिव जी के लिए 108 बार जन्म लिया जबतक शिव जी उनसे विवाह करने को राज़ी नहीं हुए। यह हमें एक बहुत ही ज़रूरी सीख देता है कि अपने असली प्यार के लिए इंतज़ार करना सीखना चाहिए। अपने प्यार के अलावा किसी और के लिए वफादारी नहीं भूलनी नहीं चाहिए।
माता पार्वती के रौद्र रूप में जब वो काली बनकर तहस नहस कर देती हैं और उन्हें रोकने के लिए महादेव को ज़मीन पर लेट कर अपना सीना उनके तलवे के नीचे रखना परता है। इसके बाद माता पार्वती अपने क्रोध में हुए अपराध को स्वीकार कर शांत हो जाती है। अपने पार्टनर के लिए भी ऐसी इज़्ज़त होना बहुत ही ज़रूरी कि भले ही कितना भी गुस्सा या क्रोध हो लेकिन कभी उनको इंसल्ट नहीं करना चाहिए।