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हर महिला अपनी जिंदगी में छोटी से लेकर बड़ी जंग लड़ती है। जब भी हम किसी स्ट्रॉन्ग वूमन की बात करते हैं तो सबसे पहले दिमाग में वही महिलाएं आती हैं जिन्होंने आवाज उठाई हो, प्रदर्शन किया हो या फिर बहुत बड़ी उपलब्धियां हासिल की हों लेकिन इसके अलावा ऐसी भी महिलाएं होती हैं जो हर दिन अपनी जिंदगी में जंग लड़ रही हैं। उनके लिए एक छोटी-सी चॉइस लेना भी जिंदगी की एक जंग जीतने के बराबर होता है तो आज हम बात करेंगे कि रेसिलियंस का मतलब हमेशा लाउड और बोल्ड होना नहीं है। जिंदगी के छोटे-छोटे फैसलों और पलों में भी एक बड़ी जंग जीती जाती है।
Resilience का मतलब सिर्फ आवाज़ उठाना नहीं, रोज़मर्रा की जंग जीतना भी है
हम मानते हैं कि अगर कोई महिला घर से बाहर जाकर काम कर रही है, बड़ी पोज़िशन पर है या समाज में बड़ा बदलाव लाई है तभी वह बोल्ड या स्ट्रॉन्ग है लेकिन तुम्हारे आसपास ही कितनी सारी महिलाएं हैं जिनके संघर्ष कभी लिखे नहीं जाते, जिनकी आवाज़ कोई नहीं सुनता फिर भी वे संघर्ष बहुत मायने रखते हैं और उनकी जिंदगी पर गहरा असर डालते हैं।
एक औरत का सिर्फ अपने खाली समय में चाय का कप लेकर खुद के साथ बैठना भी एक बड़ी चॉइस है। समाज को इससे भी दिक्कत होती है। उन्हें लगता है कि यह महिला कुछ नहीं करती, बस अपनी मर्जी से जी रही है। एक सिंगल मदर है जो काम भी कर रही है, बच्चे की देखभाल भी और फैमिली को भी साथ रख रही है लेकिन उसके लिए कोई तालियां नहीं बजाता। एक लड़की है जिसके लिए पढ़ना-लिखना ही बहुत बड़ी चुनौती है। घरवाले कहते हैं पढ़ाई की जरूरत नहीं, शादी कर देंगे।
एक हाउसवाइफ है जो सुबह सबसे पहले उठती है, सबसे बाद में सोती है, हर काम करती है, लेकिन सबकी नजर में इनविजिबल रहती है। फिर भी वह अपने काम में डिग्निटी ढूंढ लेती है और परिवार को ही अपनी जिंदगी मान लेती है। ये कुछ ऐसे उदाहरण हैं जिनकी कोई हेडलाइन नहीं बनती, कोई नोटिस नहीं करता लेकिन फिर भी ये महिलाएं सरवाइव करती हैं और जीती हैं।
रेसिलियंस सिर्फ तब नहीं होता जब हम सड़क पर उतरकर नारे लगाते हैं। यह तुम्हारी रसोई, क्लासरूम, वर्कप्लेस और घर के भीतर भी होता है। हमें जरूरत है इसे पहचानने और मान देने की जो महिलाएं समाज के दबाव के बावजूद डटी रहती हैं, अपनी जिंदगी किसी के सामने झुकने नहीं देतीं, वही असली बदलाव लाती हैं।
एक मां जिसने जिंदगी भर सब सहा, लेकिन चाहती है कि उसकी बेटी वैसी जिंदगी न जिए जैसी उसने जी, वह मां भी एक बड़ी लड़ाई लड़ रही है। ये बदलाव शायद छोटे दिखते हों, लेकिन इनका असर पीढ़ियों तक जाता है। इस पुरुषप्रधान समाज में आज भी महिला के लिए सरवाइव करना आसान नहीं है, क्योंकि हर बोझ और हर इल्ज़ाम उसी पर डाल दिया जाता है।