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Women Behind Closed Doors: आखिर महिलाएं कब तक रहेगी घर तक सीमित

समाज महिलाओं को चारदीवारी में अपना जीवनयापन करने को फोर्स करता है और ऐसे में वे अपने वजूद को खो बैठती हैं तथा समाज के जंजाल में फस कर रुक जाती हैं।

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Swati Bundela
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Women Behind Closed Doors

Women Behind Closed Doors

महिलाओं ने विपरीत हालात का सामना करते हुए यह साबित कर दिया है कि वे पुरुषों से कतई कम नहीं हैं। वे पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर नएनए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं। वर्तमान दशक में 66% लड़कियां वर्किंग हैं जबकि इस के पहले के दशक में 50% लड़कियां ही कामकाजी थीं। जिस देश में लड़कियों की सुरक्षा और सम्मान की अनदेखी होती है वह देश कभी तरक्की नहीं कर सकता है।

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आज की आधुनिक लड़कियां जीवन को शोध या रिसर्च की तरह लेना चाहती हैं। जीवन की चुनौतियों और संघर्षों को वे अपनी मौलिक और स्वतंत्र विचारधारा की शैली में देखना परखना चाहती हैं। बेहद महत्त्वाकांक्षी होने के कारण वे साहसी और निर्भीक हैं। आज के युग में लड़कियां बहुत तरक्की कर चुकी हैं परंतु उन पर बढ़ती बंदिशें उन्हें पांव की बेड़ियों की तरह पीछे खींचती रहती है। यह बंदिशें उनपर समाज एवं समाज के लोग लगाते हैं जिनमें शायद हम भी शामिल हैं हम उनसे यह उम्मीद करते हैं कि वह एक नियमित आधार एवं एक नियमित रूप से अपने जीवन को चलाएं।

महिलाओं पर पड़ता असर 

समाज महिलाओं को चारदीवारी में अपना जीवनयापन करने को फोर्स करता है और ऐसे में वे अपने वजूद को खो बैठती हैं तथा समाज के जंजाल में फस कर रुक जाती हैं। लेकिन आज के दिन भी ऐसे वातावरण, ऐसे दमघोंटू समाज में भी रहकर कुछ महिलाएं एवं लड़कियां आज भी जाबांजी है। हम सभी ने हरियाणा की गीता बबीता के हौसले के बारे में तो सुना ही है। 

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समाज में न जाने कितने ही लोगों ने उन पर ताने कसे लेकिन वह टस से मस न हुई और अपने सपनों को बस छूते ही चली गई। इतना ही नहीं समाज के ठेकेदारों ने गंदी-गंदी टिप्पणियां की साथ ही साथ उनके परिवार को भी उकसाया गया ताकि उनको खुलकर ना उड़ने दे और  समाज में चलती आ रही लड़की की छवि को बनाए रखें। यह कहानी आज हमारे समाज की हर एक लड़की की है चाहे वह मीराबाई चानू, किरण बेदी, पीवी सिंधु, साक्षी मलिक, मानुषी छिल्लर, टीना डाबी, पीटी उषा या दीपा करमाकर ही क्यों ना हो। लेकिन अब वह समय दूर नहीं जब हमारे समाज की लड़कियां एवं महिलाएं आजादी मांगेगी नहीं बल्कि आजादी नहीं मिलने पर उसे छीन लेंगी।

कैसे बदलेगी सोच?

समझना होगा लड़कियां लड़कों के समान है उतनी ही अधिकार है जितना कि लड़कों को है यदि हमारे समाज में सभी लोग इस बात को कैसे समझ पाएंगे तो इस समाज का उत्थान हो सकेगा। इस चीज के लिए सरकार को भी सजग कदम उठाने होंगे सरकार को भी ऐसी पॉलिसी लानी होगी जिससे सरकारी कामों में‌ महिलाओं की भागीदारी अधिक हो सके एवं महिलाएं अपने कामों के लिए और जागरूक बन सके। सरकार को एक ऐसे समाज का निर्माण करना होगा यहां महिलाएं उनके अपने भावों को व्यक्त कर सकें एवं बिना किसी डर के अपने जीवन को जी सकें।

अंततः हम सारा काम सरकार के ऊपर भी नहीं छोड़ सकते। हमें समाज में एवं अपने लड़कों को समझाना होगा कि हम लड़कियों को बराबर समझे एवं उन्हें बराबर का स्थान दें। अपनी लड़कियों को यह समझाना होगा कि वह बढ़-चढ़कर चीजों में भागीदारी दिखाएं एवं अपने सपनों की उड़ान को कम ना होने दें।

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