Why Are Assertive Women Called Bossy And Controlling? हमारे भारतीय समाज में हमेशा से ही लैंगिक तौर पर भेदभाव किया गया है। यह समाज आज भी कहीं ना कहीं पितृसत्ता प्रथाएं से जुड़ी हुई हैं। इस पितृसत्ता समाज में पुरुष और महिला के लिए अलग-अलग मापदंड है। यहां हर कार्य और विचार को पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग मापदंड के तौर पर रख कर देखा जाता है।
हमेशा से ही इस समाज ने स्त्री को चुप रहने की हिदायत दी है। यह बोलकर कि ‘तुम एक स्त्री हो, कायदे में रहना सीखो’ लेकिन जब इसी समाज में एक लड़का अपनी बात को किसी और पर जबरदस्ती मानने पर जोर देता है, तो उसे लीडर क्वालिटी का टैग दे दिया जाता है। वहीं जब एक लड़की किसी बात पर अपना विचार रखती है, या इसी तरह व्यवहार करती है तब उसे बड़ी आसानी से यह समाज बॉसी और कंट्रोलिंग आदि नाम से उसका नामकरण कर देता है। यह इसलिए क्योंकि हमारे समाज में आक्रामकता, मुखरता और समझौता न करने की जिद्द सामान्यतः पुरुषों से ही जुड़ा हुआ हैं। यही कारण है कि जब भी एक महिला अपने नेतृत्व में लीडरशिप की भूमिका निभानी आती है, तो उसे यह रूढ़िवादी सोच कई कदम पीछे धकेल देता है।
क्यों मुखर महिलाओं को बॉसी और कंट्रोलिंग कहा जाता है?
क्या एक महिला अपने लिए आवाज नहीं उठा सकती? क्या उनके पास खुद के लिए बोलने का कोई भी अधिकार नहीं होता? सिर्फ इसलिए क्योंकि वो एक पुरुष नहीं है। जब भी वो इन लैंगिक मानदंडों को तोड़ने का साहस करती हैं, तो अक्सर उनकी आलोचना की जाती है। ऐसे नाम से उन्हें पुकारा जाता है, जो उन्हें आगे बढ़ने से रोकते हैं। पुरुष से जब पूछने पर कि आप एक पार्टनर के तौर पर एक महिला में क्या देखते हैं? तो उनके पास जवाब के तौर पर कई तरह के विकल्प रहते हैं। किसी को सुंदर, तो किसी को परिवार संभालने वाली, कुछ को सेंस ऑफ ह्यूमर वाली, तो कोई केयरिंग जैसे कई शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन कोई भी ये नहीं कहता कि उन्हें एक स्ट्रांग वूमेन चाहिए।
शायद वो इस शब्द का अर्थ भी नहीं समझते, क्योंकि अक्सर उन्होंने महिलाओं को दबे और सहमे हुए ही देखा हैं। ज्यादातर पुरुष एक मजबूत महिला के साथ तब तक ही रह सकता है जब तक वो सही मायने में उसका अर्थ नहीं समझ जाते क्योंकि हर स्ट्रांग महिला आपको चाहती तो ज़रूर है, लेकिन आप उनके लिए उतने जरूरी नहीं होते। वो खुद अपना जीवन सवांरना जानती है। ऐसे में उन्हें अच्छा महसूस करने के लिए किसी पुरुष की पुष्टि की जरूरत नहीं होती है। यही कारण है कि जब एक स्ट्रांग महिला खुद का चुनाव करती है, खुद का सोचती है तब ये पितृसत्ता समाज उन्हें बॉसी और कंट्रोलिंग का टैग दे देते हैं, क्योंकि उनके नजर में सही मायने में एक महिला की परिभाषा वहीं होती जो इस पितृसत्ता प्रथा को स्वीकार कर सहमी और दबी हुई अपनी जीवन का गुजारा करें।