Why Do Families Not Consider It Necessary To Take Girls Consent In Their Decisions?: भारतीय परिवारों में आज भी लड़के का स्थान लड़की से ऊपर है। कुछ परिवारों में अब ऐसा नहीं होता होगा लेकिन बहुत से परिवार अभी भी ऐसे है जो ऐसा व्यवहार करते हैं। उनके व्यवहार में लड़का और लड़की के लिए साफ अंतर दिखाई देता है। लड़का चाहे कितना भी बुरा व्यवहार करें या अपनी मर्जी से लाइफ को जिएं फिर भी उसके ऊपर सवाल नहीं उठाए जाते। दूसरी तरफ लड़कियों को खुलकर जीने की बात तो दूर उसके बारे में सोच नहीं सकती। इसके बारे में सोचना उनके लिए गुनाह हो जाता है। आज भी बहुत सारे परिवार लड़कियों को बिना पूछे ही उनकी लाइफ के बड़े फैसले ले लेते हैं जिसका प्रणाम लड़कियों को भुगतना पड़ता है।
क्यों परिवार लड़कियों के फैसले में उनकी सहमति लेना जरूरी नहीं समझते?
सबसे बड़े फैसले जो लड़कियों से बिना पूछे लिए जाते हैं उसमें से एक शादी है। ऐसे बहुत कम परिवार है जो लड़कियों की मर्जी से उनकी शादी करते हैं या उन्हें पूछते हैं कि उन्हें शादी करनी है या नहीं। बहुत सारे परिवार बिना पूछे ही लड़कियों की शादी तय कर देते हैं। उन्हें कोई नहीं पूछता कि उन्हें अभी शादी करनी थी, किसी तरह का लड़का चाहिए था, उनकी सेक्सुअलिटी क्या है, वह उस लड़के के साथ सहज है। उन्हें सिर्फ इस बात का पता है कि लड़की की शादी की उम्र हो गई है बस शादी कर दी जाए। उसकी क्या चॉइस है ? लड़की तैयार है या नहीं? इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता।
लड़के के लिए नजरिया अलग
वही बात जब लड़के की आती है तो परिवार लड़के से बिना पूछे एक कदम भी नहीं उठा पाते क्योंकि राजा बेटा के खिलाफ कैसे जा सकते हैं। वह घर का चिराग है। उनके बिना घर का वंश आगे नहीं बढ़ सकता। ऐसी कितनी लड़कियां है जिनकी चॉइस के बिना ही उनकी शादी हो जाती है। उसके बाद मैरिटल रेप, सेक्सुअल हैरेसमेंट और डोमेस्टिक वायलेंस का शिकार होती है। उसके बारे में कोई बात नहीं करना चाहता। इसके साथ ही कई लड़कियां दहेज की बली भी चढ़ जाती है क्योंकि परिवार वाले ऐसी जगह रिश्ता कर देते हैं वह सामने से दहेज की बात करते हैं फिर परिवार वाले उसे पूरा करने भी लग जाते हैं। जब डिमांड पूरी नहीं हो पाती तो लड़कियों को हरास करते हैं। उनके साथ मारपीट होती है और कई बार लड़कियां अपनी जान दे देती है। इतना सब होने के बावजूद भी दोष लड़कियों के ऊपर निकाला जाता है।
कहा जाता है अगर यह हमारे घर पैदा ना हुई होती तो हमें इन सब चीजों का सामना नहीं करना पड़ता लेकिन बात सिर्फ इतनी सी है आप लड़के वालों के सामने आवाज नहीं उठाते। आप अपनी लड़कियों के लिए स्टैंड नहीं लेते, उन्हें एजुकेट नहीं करते, उनके फैसलों की इज्जत नहीं करते और दोष फिर भी लड़कियों के ऊपर आता है। ऐसी दोगली सोच क्यों है? क्यों हम लड़कियों को नहीं समझते। उनकी भावनाओं और चॉइस की कदर करना हमें इतना कठिन क्यों लगता है? क्यों हम यह नहीं समझ पाते कि एक लड़की के अंदर भी दिल है, उसे भी कुछ महसूस होता है। हमें सिर्फ एक लड़की दिखती है जो हमें बोझ लगती है और उस बोझ से हम सिर्फ मुक्त होना चाहते हैं।