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एक महिला जब मां बनती है, तो उसका जीवन पूरी तरह बदल जाता है। उसकी प्राथमिकताएं, दिनचर्या, और सोचने का तरीका सब बदल जाता है, और यह बदलाव स्वाभाविक भी है। लेकिन सबसे बड़ा बदलाव जो समाज उस पर थोपता है, वह उसकी पहचान का सिमट जाना है। अचानक से वह केवल "मां" बनकर रह जाती है, और उसकी बाकी पहचान चाहे वह एक प्रोफेशनल हो, कलाकार हो, दोस्त हो, या बस एक इंसान हो धुंधली हो जाती है।
मां बनने के बाद महिलाओं की पहचान सिर्फ़ "मां" क्यों रह जाती है?
समाज की नजर में मां की परिभाषा क्यों सीमित है?
समाज में मां को त्याग और बलिदान का प्रतीक बना दिया गया है। ऐसा लगता है कि अगर कोई महिला मां बन गई, तो उसका खुद के लिए जीने का हक खत्म हो गया। अगर वह अपनी इच्छाओं को प्राथमिकता देती है, करियर पर ध्यान देती है, या थोड़ी भी आजादी चाहती है, तो उसे स्वार्थी करार दे दिया जाता है। "अब तुम मां हो, तुम्हें अपने बच्चे के बारे में सोचना चाहिए" यह वाक्य हर उस महिला को सुनने को मिलता है जो अपने लिए कुछ करना चाहती है।
पिता बनने पर पहचान क्यों नहीं बदलती?
दिलचस्प बात यह है कि जब कोई पुरुष पिता बनता है, तो उसकी पहचान पर कोई असर नहीं पड़ता। उसे अब भी उसका नाम, उसकी प्रोफेशनल पहचान और उसका व्यक्तित्व वैसे ही बना रहता है। उसे नहीं कहा जाता कि अब वह सिर्फ "पापा" है और बाकी चीजें छोड़ दे। लेकिन महिलाओं के साथ ऐसा क्यों होता है? क्या एक महिला के जीवन का सबसे बड़ा और अंतिम लक्ष्य मां बनना ही है?
खुद को खोने और फिर तलाशने की जद्दोजहद
मां बनने के बाद कई महिलाएं खुद को खो देती हैं। उनकी प्राथमिकताएं बदलती हैं, लेकिन यह बदलाव अक्सर उनकी पसंद से ज्यादा समाज की उम्मीदों का नतीजा होता है। धीरे-धीरे वे अपने शौक, सपने और इच्छाओं से दूर होती चली जाती हैं। जब बच्चे बड़े हो जाते हैं, तब उन्हें एहसास होता है कि वे खुद को कहां छोड़ आई हैं। लेकिन तब तक, कई बार बहुत देर हो चुकी होती है।
क्या मां बनने का मतलब खुद को खत्म कर देना है?
मां होना गर्व की बात है, लेकिन यह एकमात्र पहचान क्यों होनी चाहिए? मां बनना जीवन का हिस्सा है, न कि पूरी पहचान। महिलाओं को यह समझने और समाज को यह स्वीकार करने की जरूरत है कि एक मां के पास भी अपनी अलग इच्छाएं और सपने हो सकते हैं। वह मां होने के साथ-साथ एक लेखक, डॉक्टर, इंजीनियर, बिजनेसवुमन, यात्री या कुछ भी हो सकती है।
मां की पहचान का विस्तार जरूरी है
समाज को यह स्वीकार करना होगा कि मां बनना किसी महिला के जीवन का अंत नहीं, बल्कि एक नया अध्याय है। यह जरूरी है कि महिलाएं खुद को सिर्फ एक भूमिका तक सीमित न करें और अपनी बाकी पहचानों को भी बनाए रखें। मां होने का मतलब त्याग करना नहीं, बल्कि एक नया अनुभव जीना है और यह अनुभव तभी बेहतर होगा, जब महिलाओं को अपनी बाकी पहचानों के साथ जीने का हक भी मिलेगा।
तो क्या मां बनने के बाद महिलाओं की बाकी पहचान खो जानी चाहिए, या उन्हें अपनी पहचान को बनाए रखने का पूरा अधिकार है?