Friendship Day: महिला मित्रता को हल्के में क्यों लिया जाता है?

ओपिनियन: हमारे समाज में महिलाओं की दोस्ती को अक्सर बहुत हल्के में लिया जाता है। जहाँ पुरुषों की दोस्ती को "जान तक देने वाली दोस्ती" जैसे भारी-भरकम शब्दों से नवाज़ा जाता है, वहीं महिलाओं की दोस्ती को उतनी गंभीरता या गहराई नहीं दी जाती।

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Rajveer Kaur
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हमारे समाज में महिलाओं की दोस्ती को अक्सर बहुत हल्के में लिया जाता है। जहाँ पुरुषों की दोस्ती को "ब्रोमांस", "बिरादरी", और "जान तक देने वाली दोस्ती" जैसे भारी-भरकम शब्दों से नवाज़ा जाता है, वहीं महिलाओं की दोस्ती को उतनी गंभीरता या गहराई नहीं दी जाती।

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लड़कियों को बचपन से ही यह सिखाया जाता है कि उनकी ज़िंदगी का असली मकसद शादी करना है। उन्हें दोस्त बनाने, नए अनुभव लेने, और खुद को समझने का वैसा अवसर नहीं मिलता जैसा लड़कों को मिलता है। दोस्ती तो तब बनती है जब हम घर से बाहर निकलें, अलग-अलग जगहों पर जाएं, और लोगों के साथ समय बिताएं। लेकिन सामाजिक संरचनाएं महिलाओं के लिए ये मौके सीमित कर देती हैं।

Friendship Day: महिला मित्रता को हल्के में क्यों लिया जाता है?

मीडिया की भूमिका

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टीवी शो और फिल्मों में महिलाओं की दोस्ती को या तो बेहद सतही दिखाया जाता है जैसे सिर्फ शॉपिंग, गॉसिप या मेकअप तक सीमित या फिर उन्हें एक-दूसरे की दुश्मन दिखा दिया जाता है। यह सोच और गहरी हो जाती है जब बार-बार कहा जाता है कि महिलाएं एक-दूसरे से जलती हैं, एक-दूसरे को नीचे गिराने की कोशिश करती हैं, और सच्ची दोस्त नहीं बन सकतीं।

लेकिन सच्चाई इससे बिल्कुल उलट है 

महिला मित्रता में अपनापन होता है, इमोशनल गहराई होती है, बिना शर्त समझ और समर्थन होता है। जब एक महिला किसी ब्रेकअप से गुज़रती है, तो सबसे पहले एक दूसरी महिला ही उसे संभालती है — उसे सुनती है, समझती है और उसकी भावनाओं को वैलिडेट करती है। जब कोई महिला मां बनती है, तो उसे सही मायनों में भावनात्मक सहारा एक दूसरी महिला ही देती है — चाहे वह उसकी मां हो, दोस्त हो, या कोई सहयोगी।

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महिला दोस्ती केवल बातचीत नहीं, एक बहुत ही प्रैक्टिकल और पावरफुल नेटवर्क है करियर में उतार-चढ़ाव, रिश्तों की जटिलताएं, मेंटल हेल्थ या पर्सनल ग्रोथ, इन सब में महिला-मित्रता लाइफलाइन बन सकती है। कई बार ये दोस्ती जीवन में दिशा देने वाली होती है, और कई बार जीवन बचाने वाली।तो फिर महिला दोस्ती को "ड्रामा", "ओवर", या "भावुकता की अति" कहकर क्यों खारिज कर दिया जाता है? शायद इसलिए क्योंकि यह उस सिस्टम को हिला देती है जो महिलाओं को अकेला, प्रतिस्पर्धी और दबा हुआ देखना चाहता है।

सशक्त महिला दोस्ती उस ढांचे के खिलाफ जाती है जो चाहता है कि महिलाएं एक-दूसरे को सपोर्ट न करें।लेकिन अब वक़्त है इस सोच को बदलने का। महिलाएं अब एक-दूसरे का सहारा बन रही हैं, साथ खड़ी हो रही हैं, और अपने रिश्तों को पूरी गरिमा और सम्मान दे रही हैं।क्योंकि महिला दोस्ती सिर्फ भावनाओं की साझेदारी नहीं, यह क्रांति है।