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घरेलू कामों का नाता लड़कियों के जीवन से जुड़ा हुआ है। आज भी भले कोई भी लड़की हो किसी भी परिवार या समाज में जन्मी हो जैसे-जैसे उसका जीवन आगे बढ़ता है घरेलू काम उसके जीवन में एक-एक कर के पाँव पसारते जाते हैं और फिर जब वह बड़ी हो जाती है, तब उसके सर पर पूरे परिवार की देखरेख और हर एक घरेलू काम की जिम्मेदारी आ जाती है। हमारे समाज में महिलाओं की कंडिशनिंग कुछ ऐसे हो रही है कि जब लड़कियां घर के काम नहीं करती हैं तो उन्हें खुद ही यह महसूस होने लगता है जैसे उन्होंने वह न करके कोई गलती की है। किसी भी परिवार में एक ही उम्र के लड़के और लड़की को क्या सिखाया जाना चाहिए और क्या नहीं यह डिसाइड कर दिया जाता है। आज भी पित्रसत्तात्मक समाज इस बात पर जोर देता है कि लड़कियां अपनी लाइफ में चाहे जो कुछ भी हासिल कर लें लौटकर उन्हें घर आकर तो घरेलू काम करने ही हैं। आइये समझते हैं कि घर के काम सिर्फ लड़कियों कि जिम्मेदारी क्यों हैं और इसमें बदलाव लाने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए।
क्या ये ठीक है? सिर्फ लड़कियों के लिए घर के काम करना जरूरी क्यों?
हमारे समाज में हमेशा से यह मान्यता रही है कि लड़कियाँ स्वाभाविक रूप से घरेलू काम के लिए ही बनी होती हैं। जो कि लैंगिक भूमिका के रूप में आज भी अपनी जड़ें जमाए हुए है। महिलाओं को अक्सर घरेलू स्थानों तक ही सीमित रखा जाता था और पुरुष घर के बाहर के काम करते थे। यही वजह है कि आज भी लड़कियों को घर के काम करना बचपन से ही सिखाया जाता है लेकिन लड़कों को घर के काम करना नही सिखाया जाता है और ना ही उनपर इसके लिए किसी तरह का दबाव होता है।
लेकिन घरेलू कामों की ज़िम्मेदारी केवल लड़कियों पर डालना सही नहीं है। यह प्रथा उनकी क्षमता को सीमित करती है और इस विचार को मजबूत करती है कि जीवन में उनकी प्राथमिक भूमिका दूसरों की देखभाल करना है। यह उन्हें शिक्षा, शौक और उनके विकास के लिए समय से वंचित करती है। यही कारण है कि वह जीवन में अक्सर पीछे रह जाती हैं। यह असमानता घर के भीतर और व्यापक समाज में लैंगिक समानता प्राप्त करने की दिशा में उनकी प्रगति को रोकती है।
क्या घर के काम सिर्फ़ लड़कियों के लिए हैं?
अक्सर हम सभी इस चीज का सामना करते हैं कि घर के सभी काम लड़कियों को सिखाए जाते हैं और लड़कों को इससे दूर रखा जाता है तो सवाल ये उठता है कि क्या यह काम सिर्फ लड़कियों के लिए ही हैं? लेकिन अगर ठीक प्रकार से सोचा जाए तो नहीं, घर के काम सिर्फ़ लड़कियों के लिए नहीं हैं। घर की ज़िम्मेदारियाँ उसमे रहने वाले हर एक सदस्य की हैं। जो हर किसी को उठानी भी चाहिए चाहे वो लड़का को या लड़की। ऐसा नही है कि लड़के घर का काम करने, कपड़े धुलने, खाना बनाने में सक्षम नहीं हैं यदि वे समान रूप से सारे काम कर सकते हैं तो लड़कियों पर बोझ डालना जरूरी क्यों है। घर के काम सिर्फ लड़की करेगी और लड़का कमाएगा इस पुरानी अवधारणा को चुनौती देने और बदलने की ज़रूरत है।
घर के कामों का बोझ लड़कियों को कैसे नुकसान पहुँचा रहा है?
अगर बात की जाए लड़कियों पर पड़ने वाले घरेलू कामों के बोझ की और उससे होने वाले नुकसान की तो यह बहुत बड़ा है। यह उनके उस समय को छीन लेता है जिसे वे अपनी शिक्षा पर खर्च कर सकती थीं। रिसर्च से पता चला है कि दुनिया के कई हिस्सों में, लड़कियाँ लड़कों की तुलना में घर के कामों में काफ़ी ज़्यादा समय बिताती हैं, जिससे स्कूल के काम या अन्य चीजों के लिए उन्हें कम समय मिलता है। जिसका उनके जीवन पर प्रभाव देखने को मिलता है। साथ ही घर के कामों का बोझ जीवन में कई चुनौतियाँ पैदा करता है। जैसे अत्यधिक काम करने की वजह से खुद की देखभाल न कर पाना, शारीरिक समस्याएं और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं।
कैसे आएगा बदलाव?
समय के साथ इस दिशा में बदलाव हुए हैं लेकिन अभी भी एक बहुत बड़ी जनसंख्या ऐसी है जहां कोई बदलाव नहीं है। अभी भी लड़कियों को बचपन से यह सिखाया जा रहा है कि घर के काम करने आवश्यक हैं। जीवन में तुम कुछ भी हासिल करो लेकिन वो हासिल करने से पहले घर के काम को सिख लो। जो कि अब बदलना चाहिए। स्कूलों, माता-पिता और समुदायों को मिलकर इस दिशा में काम करना चाहिए लड़के और लड़कियों दोनों को सिखाया जाये कि घर के काम एक साझा ज़िम्मेदारी है। जब बच्चे ऐसे घरों में बड़े होते हैं जहाँ काम बराबर बाँटे जाते हैं, तो बड़े होने पर भी वे इस व्यवहार को जारी रख सकते हैं। जिससे लड़कियों के जीवन में एक बड़ा बदलाव आ सकता है और वे अपनी लाइफ में सिर्फ घरेलू कामों तक सीमित ना रहकर अपने विकास पर काम कर सकती हैं।
लेकिन असल बदलाव तब आएगा जब समाज घरेलू कामों को महिलाओं का काम समझना बंद कर देगा और उन्हें आवश्यक कार्य के रूप में पहचानना शुरू कर देगा, जिसे जेंडर की परवाह किए बिना सभी को करना होगा।