Why Husbands Should Think About Their Wife’s Financial Empowerment? समाज में महिलाओं की स्थिति में ना तो बदलाव आए हैं और ना शायद आ पाएंगे, लेकिन हां अगर सामाजिक, पारिवारिक और वैचारिक तौर पर बदलाव आए तो शायद महिलाओं की समस्या कम होंगी। अक्सर महिलाओं को कहा जाता है कि ‘तुम पैसे कमा कर क्या ही करोगी? तुम बाहर कमाने पर नहीं, बल्कि अपने घर और परिवार पर ध्यान देना सीखो। यह कथन ही हमारे पितृसत्ता समाज में महिलाओं की स्थिति को दर्शा देती हैं। उनको हमेशा से ही चहारदीवारी के अंदर रहने की हिदायत दी जाती है। वो एक ऐसे समाज में रहती है, जहां व्यवस्थित पितृसत्ता है। जहां एक स्त्री को अपने आर्थिक अवस्था के लिए अपने पिता व भाई और शादी के बाद अपने पुरुष पर निर्भर रहना पड़ता है। जिस कारण उनका अस्तित्व पूरी तरह से खत्म हो जाता है, इसलिए परिवार और खासकर जीवनसाथी का अपनी महिलाओं को आर्थिक रूप से सारे अधिकार देना ज़रूरी है।
क्यों ज़रूरत है पतियों को अपनी पत्नियों की वित्तीय सशक्तिकरण के बारे में सोचने की?
आजकल कई महिलाएं पितृसत्ता की सारी बेबुनियादी जंजीरों को तोड़कर अपने करियर का चुनाव कर रही है, लेकिन आज भी महिलाओं का एक बड़ा तबका इस रूढ़िवादी सोच के गिरस्त में है। ऐसे में उनकी जिंदगी शादी और अपने पति के इर्द-गिर्द ही रह जाती है और वह एक गृहिणी पत्नी बनकर रह जाती है। जिस कारण वो आर्थिक रूप से अन्य कामकाजी महिलाओं की तरह उतनी मजबूत नहीं हो पाती, इसलिए हाउसवाइफ पत्नियों को सशक्त बनाने के लिए हर पति को अपने वित्तीय संसाधनों को उनके साथ साझा करना चाहिए, क्योंकि उनके पास सशक्त बनने के लिए आय का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं होता है।
वित्तीय सशक्तिकरण रहने पर एक महिला खुद को अपने परिवार में सुरक्षित महसूस करती है। आमतौर पर महिलाओं को हमारे समाज में पैसे बचाने वाली माना जाता है। अमूमन जितना संभव हो सके भारतीय गृहीणी से हमेशा पैसा बचाने की उम्मीद की जाती है। इतना कुछ करने के बाद भी एक पत्नी को अपने निजी खर्चों के लिए पति या उसके परिवार पर निर्भर रहना पड़ता है। कई बार तो उनके खर्च के अनुरोध को भी स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया जाता है। ज्यादातर पतियों को तो अपनी पत्नियों की निजी खर्चों के बारे में समझ भी नहीं होती है। ऐसे में यदि कोई पत्नी अपने पति से कुछ कहती है, तो पितृसत्तात्मक सोच और व्यवहार क्षण भर में उन्हें चुप करा देता है।
जब एक ग्रहणी को आर्थिक रूप से मजबूत नहीं किया जाता है, तो एक ग्रहणी को पैसे के लिए अपने पति पर निर्भर रहना ही पड़ता है इसलिए हर पति को अपनी पत्नियों को आर्थिक रूप से मजबूत करना होगा, ताकि वो गरिमापूर्ण जीवन जी सकें। पति का फर्ज़ बनता है, कि वह समाज को समझाएं की पत्नियों को वित्तीय पहुंच देना कोई आर्थिक शोषण नहीं है, बल्कि यह उनका मौलिक अधिकार है। जब तक वो आर्थिक रूप से सशक्त नहीं होगीं, तब तक वह पूरी तरह से सशक्त नहीं हो पाएगीं, इसलिए पतियों को अपनी वित्तीय मामले में अपनी पत्नियों को शामिल करना चाहिए। जिससे उनको गरिमापूर्ण जीने का मौका मिलें और उनमें आत्मविश्वास के विकास के साथ-साथ वो खुद के निर्णय लेने में भी सक्षम महसूस कर सकें।