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भारतीय समाज LGBTQ+ लोगों के बारे में इतनी गलत सोच क्यों रखता है

ओपिनियन: हमारे भारतीय समाज में एलजीबीटीक्यू+ लोगों बहुत ही नीची नज़र से देखा जाता है लोग उनके साथ एस व्यवहार करते हैं जैसे वो कोई अपराधी हों। भारतीय समाज में एलजीबीटीक्यू+ लोगों के बारे में गलत धारणाओं के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं। अधिक पढ़ें इस ब्लॉग में-

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Priya Singh
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LGBTQ+(News18Hindi)

Why Indian Society Has Such Misconceptions About LGBTQ Plus People (Image Credit - News18Hindi)

Why Indian Society Has Such Misconceptions About LGBTQ+ People: हमारे भारतीय समाज में एलजीबीटीक्यू+ लोगों बहुत ही नीची नज़र से देखा जाता है लोग उनके साथ एस व्यवहार करते हैं जैसे वो कोई अपराधी हों। भारतीय समाज में एलजीबीटीक्यू+ लोगों के बारे में गलत धारणाओं के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं जिनमे प्रमुख रूप से ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक कारक जिम्मेदार हैं। भारतीय समाज अपने जटिल सामाजिक और सांकृतिक विश्वास के लिए जाना जाता है और इस समाज में पुराने समय से जेंडर के नाम पर सिर्फ स्त्री और पुरुष को ही मान्यता दी गई है लोग बस दो ही जेंडर मानते हैं उनके हिसाब से इसके आलावा कोई भी जेंडर नहीं है। लेकिन यह गलत फहमी है और इसके कई कारण हैं कि लोग ऐसा सोचते हैं। हालाकि पिछले कई वर्षों में एलजीबीटीक्यू+ कम्युनिटी के बारे में बातें हो रहीं हैं और कानूनी तौर पर भी उन्हें मान्यता मिल रही है लेकिन इसके बावजूद भी इन्हें अपनाने को बहुत कम तैयार होते हैं। आइये जानते हैं कि भारतीय समाज में एलजीबीटीक्यू+ लोगों के बारे में ऐसे विचार क्यों हैं।  

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जानिए क्यों भारतीय समाज एलजीबीटीक्यू+ लोगों के बारे में गलत विचार रखता है

1. रूढ़िवादी परंपराएँ और सामाजिक मानदंड 

भारतीय समाज पारंपरिक रूप से पारिवारिक मूल्यों, विवाह और लिंग भूमिकाओं पर ज़ोर देने वाला रूढ़िवादी रहा है। LGBTQ+ पहचान और रिश्ते इन मानदंडों को चुनौती देते हैं, जिससे गलतफहमी और प्रतिरोध होता है। इसी कारण से भारतीय समाज में उन्हें ओछी निगाह देखा जाता है।

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2. धार्मिक मान्यताएँ 

भारत एक धार्मिक रूप से विविधतापूर्ण देश है जहाँ विभिन्न आस्थाएँ हैं, प्रत्येक की लिंग और कामुकता के प्रति अपनी-अपनी व्याख्याएँ और दृष्टिकोण हैं। एलजीबीटीक्यू+ व्यक्तियों के खिलाफ भेदभाव को उचित ठहराने के लिए धार्मिक ग्रंथों की कुछ रूढ़िवादी व्याख्याओं का उपयोग किया गया है।

3. सांस्कृतिक कारण

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भारत के कई हिस्सों में, सेक्स और कामुकता के बारे में चर्चा वर्जित मानी जाती है। इससे विविध सेक्सुअल थिंग्स और लिंग पहचानों के बारे में सीमित जागरूकता और समझ पैदा होती है, जो गलत धारणाओं और गलत सूचनाओं को बढ़ावा देती है।

4. बदलाव होने का डर 

सामाजिक परिवर्तन को प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है, विशेषकर रूढ़िवादी समुदायों में। LGBTQ+ व्यक्तियों की स्वीकृति लंबे समय से चली आ रही मान्यताओं को चुनौती देती है और इसे पारंपरिक मूल्यों के लिए खतरे के रूप में भी देखा जाता है।

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5. सेक्स एजुकेशन का अभाव 

भारतीय समाज के एक बहुत बड़े हिस्से में पर्याप्त यौन शिक्षा का अभाव है। जिसमें विभिन्न सेक्सुअल थिंग्स और जेंडर के बारे में जानकारी भी शामिल है। जागरूकता की यह कमी गलत धारणाओं और अज्ञानता को बढ़ावा देती है।

6. कलंक और भेदभाव 

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भारत में एलजीबीटीक्यू+ व्यक्तियों को महत्वपूर्ण कलंक और भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिससे उन्हें मुख्यधारा के समाज से हाशिए पर धकेल दिया जा सकता है। इससे ग़लतफ़हमी और पूर्वाग्रह का सर्कल बना रहता है।

7. कानूनी स्थिति

हालाकि भारत ने LGBTQ+ अधिकारों की दिशा में कुछ कदम उठाए हैं, जैसे कि 2018 में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करना, LGBTQ+ अधिकारों की कानूनी मान्यता और सुरक्षा अभी बहुत सीमित है। यह इस धारणा को बढ़ावा दे सकता है कि एलजीबीटीक्यू+ व्यक्ति किसी तरह "कम" हैं या समान अधिकारों के योग्य नहीं हैं।

8. औपनिवेशवाद के कारण  

ब्रिटिश औपनिवेशिक युग के दौरान ब्रिटिश शासकों ने अपने विक्टोरियन-युग के मूल्यों को पेश किया और लागू किया जो ज्यादातर समलैंगिकता और स्त्री और पुरुष लिंग के अलावा अन्य लिंग पहचान के प्रति शत्रुतापूर्ण थे। ये दृष्टिकोण कानूनी और सामाजिक ढांचे में शामिल हो गए हैं और अभी भी बहुत हद तक कायम हैं।

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