Why is Adopting Kids Still Judged by the Society: बच्चों को गोद लेना एक ऐसा कदम है जो न केवल बच्चों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाता है, बल्कि परिवारों को भी संपूर्ण और समृद्ध बनाता है। इसके बावजूद, समाज में गोद लेने को लेकर कई नकारात्मक धारणाएँ और पूर्वाग्रह हैं। यह लेख गोद लेने से जुड़े विभिन्न सामाजिक मुद्दों और धारणाओं पर प्रकाश डालेगा।
Adoption: बच्चों को गोद लेने पर समाज में अब भी क्यों होती है आलोचना
परंपरागत धारणाएँ और रूढ़िवादिता
भारतीय समाज में पारंपरिक धारणाएँ और रूढ़िवादी विचार अभी भी प्रबल हैं। समाज अक्सर यह मानता है कि असली परिवार वही होता है जिसमें बच्चे जैविक रूप से संबंधित होते हैं। इस धारणा के कारण गोद लिए हुए बच्चों को परिवार का सच्चा हिस्सा नहीं माना जाता, और इसे एक असामान्य कदम समझा जाता है। समाज में गोद लेने को लेकर कई प्रकार की टिप्पणियाँ और सवाल होते हैं। लोग अक्सर गोद लेने वाले माता-पिता से यह पूछते हैं कि उन्होंने अपने बच्चे को क्यों नहीं पैदा किया। ऐसे सवाल और टिप्पणियाँ गोद लेने की प्रक्रिया को कठिन बना देते हैं और माता-पिता को मानसिक रूप से प्रभावित करते हैं। यह सामाजिक दबाव और आलोचना गोद लेने के निर्णय को चुनौतीपूर्ण बना देती है।
वंश और विरासत का महत्व
भारतीय समाज में वंश और विरासत को बहुत महत्व दिया जाता है। लोग यह मानते हैं कि परिवार की सम्पत्ति और नाम को आगे बढ़ाने के लिए जैविक संतानों का होना जरूरी है। गोद लिए हुए बच्चों को वंश का हिस्सा नहीं माना जाता, जिससे उनके प्रति भेदभाव किया जाता है। इस कारण गोद लेने वाले माता-पिता और बच्चे दोनों को समाज की नकारात्मक प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ता है।
कई लोग यह सोचते हैं कि गोद लिए हुए बच्चे परिवार में सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाएंगे। यह धारणा इस अविश्वास पर आधारित है कि बच्चा अपने नए परिवार के साथ तालमेल नहीं बिठा पाएगा। इसके साथ ही, गोद लिए हुए बच्चों के स्वास्थ्य, अतीत, और जीन से जुड़े सवाल भी उठते हैं, जो अनिश्चितता और अविश्वास को बढ़ाते हैं।
पारिवारिक समर्थन की कमी
कई बार गोद लेने के फैसले को परिवार से पूरा समर्थन नहीं मिलता। माता-पिता को अपने परिवार के सदस्यों से ही नकारात्मक प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ता है। यह पारिवारिक समर्थन की कमी गोद लेने के निर्णय को और भी मुश्किल बना देती है और माता-पिता को अकेलापन महसूस होता है।
गोद लिए हुए बच्चों को अक्सर समाज में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। उन्हें दूसरे बच्चों के समान नहीं माना जाता और उनके साथ अजीब व्यवहार किया जाता है। यह भेदभाव बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। समाज का यह व्यवहार बच्चों को अलग-थलग महसूस कराता है और उनके आत्मविश्वास को कमजोर करता है।
समाज में गोद लेने को लेकर कई नकारात्मक धारणाएँ और पूर्वाग्रह हैं, जो इसे कठिन और चुनौतीपूर्ण बना देते हैं। परंपरागत धारणाएँ, वंश और विरासत का महत्व, अनिश्चितता और अविश्वास, सामाजिक दबाव और टिप्पणियाँ, पारिवारिक समर्थन की कमी, और गोद लिए हुए बच्चों के साथ भेदभाव - ये सभी कारण गोद लेने को समाज में जज किए जाने का आधार बनते हैं।
इन धारणाओं और पूर्वाग्रहों को बदलने के लिए समाज को जागरूक और संवेदनशील बनाना जरूरी है। गोद लेने के सकारात्मक पहलुओं को उजागर करना, सही जानकारी और शिक्षा का प्रसार करना, और गोद लिए हुए बच्चों और माता-पिता को समर्थन देना आवश्यक है। जब समाज इन धारणाओं को बदलने में सफल होगा, तब गोद लेने को सही मायनों में अपनाया जा सकेगा और इसे जज करने की बजाय एक नेक और मानवीय कदम के रूप में देखा जाएगा।